जीवनी−शक्ति का अपव्यय

February 1962

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फ्राँस की साइंस एकेडेमी के मनीषी प्रोफेसर डी. मोस्तोक ने एक बार अपने छात्रों को यह समझाया कि शरीर के भीतर जीवनी−शक्ति पर्याप्त हो, रक्त शुद्ध हो और सजीवता की कमी न पड़े तो बाहर की छूत, रोग कीटाणु या विपरीत परिस्थितियाँ भी मनुष्य का कुछ बिगाड़ नहीं सकती। उन्होंने हैजे के कीटाणुओं से भरी एक शीशी को सब के सामने पिया और दिखाया कि उनके शरीर पर उतनी अधिक मात्रा में कीटाणु विष पीने का भी असर नहीं हुआ। मोस्तोक महोदय सदा इस बात पर जोर देते थे कि आहार−विहार के नियमों पर पूरा ध्यान देकर अपनी पाचन−क्रिया को सक्षम रखा जाय, शक्तियों का अनावश्यक क्षरण न किया जाय, परिश्रम से जी न चुराया जाय और व्यसनों से बच जाय तो कोई गरीब आदमी मामूली−सा आहार लेकर भी शक्ति मान बना रह सकता है; मौत और बीमारी से करारी टक्कर ले सकता है।

स्वास्थ्य की सुरक्षा के सम्बन्ध में सबसे बड़ी सचाई यही है। आरोग्यशास्त्र का सारा रहस्य उपरोक्त सिद्धान्तों में सन्निहित है, पर कैसा दुर्भाग्य है कि हम इस ओर से आँखें बन्द करके दवादारु के द्वारा निरोगता प्राप्त करने की मृगतृष्णा में भटकते रहते हैं। अपने स्वास्थ्य का सत्यानाश करने वाली बुरी आदतें जब तक न छूटेंगी तब तक स्वास्थ्य को चौपट करने वाली परिस्थितियों से कैसे छुटकारा मिलेगा यह समझ में नहीं आता।

धूम्रपान के दुष्परिणाम

नशेबाजी को ही लीजिए—बीड़ी, पान, तमाकू, चाय, अफीम, गाँजा, भाँग, शराब आदि की खर्चीली और सत्यानाशी आदतें डाकिन की तरह हमें अपने चंगुल में बुरी तरह जकड़े हुए हैं और चुपके−चुपके हमारा सत निचोड़ कर जोंक की तरह सब कुछ चूसती रहती हैं।

लन्दन 15 जून का समाचार है कि फेफड़े के कैन्सर का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि—”सिगरेट के धुँए में 15 प्रतिशत अंश ‘फैनालिक इरिटेंट’ होता है जो कैन्सर पैदा करता है।” केनबरा 20 जुलाई का समाचार है कि—आस्ट्रेलिया की वायु सेना के निदेशालय ने चेतावनी दी है कि—‟सिगरेट पीने से उसका धुआँ रक्त की नालियों में मिल जाता है। उसके परिणामस्वरूप रक्त में आक्सीजन लेने की क्षमता कम होकर आँखों की रोशनी 20 प्रतिशत तक गिर जाती है।” न्यूयार्क 8 फरवरी का समाचार है कि—‟विश्व विख्यात नेत्र चिकित्सक डा. एच. एम. हैजस ने “वर्जिनिया मेडिकल मन्थली” में लिखा है कि—‟धूम्रपान से आँखें कमजोर हो जाती हैं। उठने−बैठते अन्धेरा सा छाने लगता है। ऐसे रोगी धूम्रपान छोड़े बिना बीमारी में छुटकारा नहीं पा सकते।’ विद्वानों का यह कथन सत्य ही है कि “पहले मनुष्य नशा पीता है फिर नशा मनुष्य को पी जाता है।”

जिन्दगी के साथ खिलवाड़

टोंरटो 22 मार्च का समाचार है कि—‟एक प्रसिद्ध अमरीका के वैज्ञानिक ने बताया है कि—प्रतिदिन एक पैकिट सिगरेट पीने वाला व्यक्ति अपनी आयु आठ वर्ष कम कर लेता है। और दो पैकिट रोज पीने वालों की आयु 18 वर्ष घट जाती है। नोबल पुरस्कार प्राप्त डा. पौलिंग ने यहाँ कहा कि सामान्यतः धूम्रपान करने वाला व्यक्ति जितना समय धूम्रपान में व्यय करता है उससे तीन गुना समय उसकी आयु में और कम हो जाता है।

मादक पदार्थों का शरीर और मन पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता है यह कोई अप्रकट बात नहीं है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ और नीतिवान लोग एक स्वर से इस बात का समर्थन करते हैं कि नशेबाजी शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन को बुरी तरह नष्ट करती है। आये दिन अनेकों दुर्घटनाऐं भी नशे से होती रहती हैं। गंगापुर (राजस्थान) का समाचार है कि खाजन्ना डूँगर पुलिस स्टेशन के दो सिपाही शराब पीकर एक−दूसरे से भिड़ पड़े। एक ने दूसरे को मार कर खुद ही अपने को गोली मार ली। कानपुर में होली के अवसर पर रेलवे क्वार्टर, जुही का एक रेलवे कर्मचारी शराब पीकर बुरी तरह लड़खड़ाकर गिर पड़ा और नाक तथा माथे पर चोट आने से थोड़ी ही देर में मर गया। मेरठ केण्ट का एक युवक मेहतर वेतन मिलते ही केसर गंज के सामने वाले ताड़ीखाने में पहुँचा और अपना सारा वेतन शराब में ही खर्च कर दिया। घर पहुँचते−पहुँचते उसकी मृत्यु हो गई। गुड़गाँवा (पंजाब) में हरिसिंह तथा करतारसिंह नामक दो युवकों की मृत्यु भाँग, शराब तथा गाँजा के अधिक सेवन करने से दिवाली के दिन हो गई।

प्राणघातक बुरी लत

शराब, अफीम, गाँजा, भाँग तो आगे की चीज हैं कईबार बीड़ी जैसा छोटा नशा भी प्राणघातक बन जाता है। भण्डारा में 8 जून को एक साहूकार के दो छोटे बच्चों ने एक कमरे में जाकर चुपके−चुपके बीड़ी पीने का प्रयास किया। बीड़ी के कारण वहाँ पड़ी−सूखी घास में आग लग गई। उसी में घुटकर दोनों बालक मर गये। भोपाल 2 जून का समाचार है कि—खराब तम्बाकू की बीड़ी पीने से तीन आदमी तुरन्त मर गये और बहुत से बेहोश हो गये। पुलिस ने 40 हजार बीड़ियों पर कब्जा कर लिया। दुर्घटना को सुनकर भोपाल के आसपास के शहरों के लोग बीड़ी पीना छोड़ने लगे हैं। कानपुर का समाचार है कि कल्याणपुर निवासी चाँद खाँ रात को लेटा हुआ बीड़ी पी रहा था कि अचानक झपकी लग गई। बीड़ी बिस्तरे पर गिरी तो आग की लपटों में बेचारा बुरी तरह जल गया। अस्पताल पहुँचते−पहुँचते उसकी मृत्यु हो गई। ऐसी दुर्घटनाऐं भी आये दिन सामने आती ही रहती हैं।

बढ़ती हुई दुष्प्रवृत्ति

इतना होते हुए भी कितना दुर्भाग्य है कि हम गरीब भारतवासी दिन−दिन नशेबाजी की आदत को और तेजी से अपनाते जा रहे हैं। सिनोही नगर की दो दुकानों का ठेका गत वर्ष 51 हजार में उठा था पर अब 1 लाख में उठा। हरद्वार का समाचार है कि—धनौरी गाँव का शराब ठेका गतवर्ष 222000 का था अब वही दुकान 45 हजार में नीलाम हुई है। रुड़की का ठेका जो 53 हजार का गतवर्ष था इस साल 1 लाख 20 हजार का हो गया। भगवानपुर में 12700 की जगह इस साल 25 हजार में नीलाम हुआ है। मेरठ का समाचार है कि जिले में देशी शराब और भाँग के ठेके से सरकार को 10 लाख रुपये से अधिक की आय हुई है। जिले में अवैध रुप से शराब भी खूब तैयार होती और खपती है। एक रिपोर्ट के अनुसार सुपरिन्टेन्डेण्ट पुलिस ने अवैध शराब बनाने वालों के पचास से अधिक चालान किये हैं। जिले में कुछ गाँव तो इसके लिए काफी बदनाम हैं।

जयपुर का समाचार है कि—स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा प्राप्त आँकड़ों के आधार पर इस वर्ष जनवरी से दिसम्बर तक अकेले जयपुर नगर में 412 आदमी फेफड़ों के रोगों से मरे हैं। गतवर्ष इस रोग से मरने वालों की संख्या नहीं के बराबर थी। उपरोक्त मृत्यु संख्या में क्षय रोगों से मरने वाले सम्मिलित नहीं हैं। फेफड़ों के रोग की वृद्धि का कारण शहर में शराब का अवैध व्यापार बताया जाता है। अवैध शराब तैयार करने वाले ‘डिनेचर स्प्रिट’ को छानकर उससे शराब तैयार करते हैं।

नशे का प्रसार और प्रचार किस प्रकार बढ़ रहा है इसका कुछ परिचय ऊपर के समाचारों से मिल सकता है। दुकानों के ठेके कई−कई गुनी कीमत पर नीलाम होने का अर्थ है कि ठेकेदारों का लाभ बढ़ता जाता है। और यह बढ़ोतरी तभी संभव है जब बिक्री अधिक हो। मादक द्रव्यों की अधिक बिक्री होना यह बताता है कि हम स्वास्थ्य को चौपट करने की सत्यानाशी सड़क पर किस तेजी से सरपट दौड़े जा रहे हैं। मनुष्य का मन जब दुष्प्रवृत्तियों के लिए उतारू हो जाता है तो वह कानूनी प्रतिबन्धों की भी परवाह कहाँ करता है। अवैध रुप से शराब का उत्पादन और अन्य नशों का व्यापार जिस तेजी से बड़ रहा है वह भी कम चिन्ता का विषय नहीं है।

अवैध व्यापार

एक जाँच समिति ने उत्तर−प्रदेश के बदायूँ और एटा जिलों में भ्रमण करके पाया कि अवैध शराब बनाने का काम इन जिलों में एक कुटीर उद्योग बना हुआ और वह दिन−प्रतिदिन उन्नति कर रहा है। दिल्ली नगर में यहाँ सन् 56 में पुलिस ने अवैध शराब बनाने की 40 भट्टियाँ पकड़ी थीं और 1269 व्यक्ति पकड़े थे अब गत वर्ष पकड़ी हुई भट्टियों की संख्या 208 और गिरफ्तार व्यक्तियों की संख्या 2045 पहुँच गई। यही प्रगति अन्यत्र भी रही होगी। अपराधियों में से पुलिस की पकड़ में बहुत थोड़े ही तो आ पाते हैं। नशेबाजी की बढ़ती हुई दुष्प्रवृत्ति के कारण इन चीजों का तस्कर व्यापार भी खूब पनपता है।

फारबिस गंज (बिहार) में आबकारी विभाग ने छह बैल गाड़ियों पर 36 बोरों में भर कर ले जाया जा रहा अवैध गाँजा रामपुर गाँव के पास पकड़ा। गाँजे की कीमत 70 हजार आँकी गई है। पटियाला पुलिस ने तीन मकानों की तलाशी ले कर 2 मन 32 सेर अफीम पकड़ी जिसकी कीमत एक लाख रुपया है। रामपुर (मध्य प्रदेश) में राजनांद गाँव में 3 मन 36 सेर अफीम पकड़ी। फिल्लोर (पंजाब) पुलिस ने रुड़का कलाँ के सरकारी ठेके पर छापा मारकर 65 बोरों में अफीम के 180 मन बीज पकड़े। इलाहाबाद पुलिस ने एक ठेकेदार के घर पर छापा मारकर 2.5 मन गाँजा पकड़ा जिसकी कीमत 17 हजार से अधिक है। लखीमपुर नेपाल की सीमा पर 30 हजार का अवैध गाँजा पकड़ा गया। लखनऊ पुलिस ने रेलवे पार्सल से जाता हुआ 20 हजार कीमत का 24 सेर चरस पकड़ा। इसी प्रकार बवीना स्टेशन पर 14 हजार का चरस पकड़ा गया। नीमच−इन्दौर बस में यात्रा करता हुआ एक यात्री टिफिन कैरियर में रखी रोटियों के बीच छह सेर अफीम छिपाये हुए पकड़ा गया। जयपुर पुलिस ने स्प्रिट से शराब बनाने का एक बड़ा कारखाना पकड़ा जिसमें 250 बोतल तैयार शराब और इतना सामान पकड़ा जिससे एक ट्रक भरा जा सकता था। बताया जाता है कि इस प्रकार तैयार की हुई शराब में डिनेचर स्प्रिट में पेवेडीन, केशेडीन, जला हुआ रबड़, हड्डी का कोयला आदि रासायनिक विषों का उपयोग होता है जिससे उसे पीने वाले गठिया, अन्धापन आदि रोगों के शिकार होकर बहुत जल्दी मर जाते हैं।

यह धन पौष्टिक भोजन में लगे तो?

धूम्रपान का प्रचलन हमारे गरीब देश की स्थिति को देखते हुए आश्चर्यजनक है। बताया जाता है कि प्रतिदिन दो करोड़ रुपये की अर्थात् साल में 720 करोड़ की तम्बाकू हम पी जाते हैं। यदि इतना रुपया बचाकर हम पौष्टिक खाद्य पदार्थों पर खर्च करें तो उससे राष्ट्रीय स्वास्थ्य की भारी सुरक्षा हो सकती है। एक ओर जहाँ हमारा नशेबाजी का खर्च बढ़ रहा है वहाँ दूसरी ओर पौष्टिक पदार्थों के सेवन की क्षमता गिरे हुए स्तर पर ही पड़ी है। इस दृष्टि से हम संसार के सबसे पिछड़े देशों में हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की खाद्य एवं कृषि संस्था की जाँच द्वारा उपलब्ध आँकड़ों द्वारा पता चलता है कि पोषक तत्वों की दृष्टि से भारतीयों का भोजन सबसे घटिया है। आयरलैण्ड निवासियों के भोजन में प्रतिदिन 3500 (कैलोरी) मात्रा में पोषक तत्व रहते हैं। न्यूजीलैण्ड में 3430, डेनमार्क में 3350, इंग्लैण्ड में 3260 आस्ट्रेलिया में 3200 स्वीटजरलैण्ड में 3110, अमेरिका में 3100, तुर्की में 2890, फारमोसा में 2830, जापान में 2200, पाकिस्तान में 2000 और भारत में वह मात्रा केवल 1800 है।

स्वास्थ्य समस्या जीवन की सब से प्रथम, सब से आवश्यक समस्या है उसके साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। नशेबाजी, माँसाहार, अभक्ष भोजन, शाक, फल एवं दूध जैसे पौष्टिक आहार की उपेक्षा, समय, कुसमय का ध्यान न रखा जाना, संयम का अभाव, श्रमशीलता में व्यतिरेक, चिन्ताऐं आदि अनेक कारण ऐसे हैं जिन्हें यदि दूर किया जा सके तो वर्तमान आर्थिक स्थिति की दुर्बलता होते हुए भी इस अपने स्वास्थ्य को इस योग्य रख सकते हैं कि शीत की लहर जैसे मामूली झटकों को सहन करने लायक हमारे शरीर की स्थिति बनी रहे। यदि हमें देर तक और आदमियों की तरह जीना है तो इन बातों पर विचार करने और गलती को सुधारने के लिए तैयार होना ही पड़ेगा।


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