सच्चा धर्म (कविता)

February 1962

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सबसे करना प्रेम जगत में यही धर्म सच्चा है।
जो हैं जग में हीन पतित अति, उनको गले लगाओ।
जो हैं दीन दुखी व पीड़ित उनको धीर बंधाओ॥
जिन्हें न कोई त्राता जग में उनको जा अपनाओ।
जो रोते हैं उन्हें हंसाओ, सबसे प्रेम जताओ॥
सब में प्रभु का रूप निहारो, यही भाव अच्छा है।॥ सब से.॥

सबसे हिलमिल रहना सीखो, करो न द्वेष किसी से॥
सबसे मीठी वानी बोलो, होगा भला इसी से।
जो अनाथ हैं उन्हें सहारा देना बड़ी खुशी से॥
तुच्छ न समझो कभी किसी को, रखना नेह सभी से।
गिरे हुए हैं, उन्हें उठाओ यही मार्ग अच्छा है।॥सब से.॥

एक प्रभु के सब बालक हैं सब हैं उसके प्यारे॥
अहंकार से बने हुए हैं हम सब न्यारे न्यारे।
हिन्दू, मुस्लिम, जैन, पारसी, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई॥
सब भारत माता के जाये, सब हैं भाई भाई।
फिर भाई-भाई आपस में लड़ना क्या अच्छा है।॥ सब से.॥

जहाँ निराशा, उदासीनता का हो गहन अंधेरा॥
आलस, जड़ता, निष्क्रियता का जहाँ पड़ा हो डेरा।
वहाँ ज्ञान का दीप जलाकर नव प्रकाश फैलाओ।
सारा जग आनन्द मग्न हो, ऐसा राग सुनाओ॥
सबको सुख पहुँचाना, केवल यही कर्म अच्छा है।॥ सब से.॥

जो है अपने पास कला, विद्या या धन-संपत्ति।
सबके हित में उसे लगाओ यदि चाहते मुक्ति॥
मेरा मेरा मत कर भाई यहाँ नहीं कुछ तेरा।
छोड़ छाड़ सब चलना होगा, दुनियाँ रैन बसेरा॥
इसीलिये सेवामय जीवन जीना ही अच्छा है।॥ सब से.॥

—रामकुमार भारतीय

*समाप्त*


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