अखण्ड ज्योति की भावी विधि व्यवस्था

November 1959

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(भगवती देवी शर्मा धर्म पत्नी पं. श्रीराम शर्मा आचार्य)

गत अंक में आचार्य जी के आगामी कार्य-क्रम तथा तपोभूमि एवं अखण्ड-ज्योति की व्यवस्था के संबंध में चर्चा थी। परम पूज्य आचार्यजी जो सोचते हैं या आयोजन करते हैं उसमें कोई दैवी सूक्ष्म प्रेरणा सन्निहित होती है, इसलिए मैं उनके आदेशों में कभी ननुनच नहीं करती। पिछले सहस्र कुण्डी गायत्री महायज्ञ की घोषणा उन्होंने अचानक प्रातःकाल उठते ही कर दी थी। इससे पहले न किसी से पूछा, न योजना बनाई, न बजट बनाया, न यह सोचा कि इतने बड़े आयोजन को किस प्रकार पूर्ण किया जा सकेगा। जब उनने घोषणा की तो इतने विशाल आयोजन और अपनी साधन हीनता की तुलना करने हुए मैंने उनके सम्मुख अपना संशय उपस्थित किया तो हंस कर बोले-”जिसका कार्य है वह स्वयं जो इसे करा रहा है, स्वयं सारी व्यवस्था करेगा। हम लोग निमित्त मात्र हैं, अपना कर्तव्य करें, चिन्ता के झंझट में क्यों पड़ें।” मेरे पास चुप होने के अतिरिक्त और कोई मार्ग न था। मन का संदेह बना रहा, भय चिन्ता और परेशानी बनी रही। पर जब यह महान कार्य अभूतपूर्व सफलता के साथ सम्पन्न होते आँखों से देख लिया, तब पश्चाताप हुआ कि व्यर्थ ही मैंने आशंका और चिन्ता को इतने दिन मन में दबाये रहने का क्लेश उठाया। आचार्यजी की इच्छाओं और योजनाओं के पीछे जो शक्ति काम करती है वह गलत मार्ग दर्शन नहीं करती।

अभी जो योजना उनने बनाई हैं, उसके अनुसार एक वर्ष में वे अपनी साधना और शोध को पूर्ण करने के लिए मथुरा से बाहर जाने वाले हैं। कितना समय लौटने में लगेगा इसके बारे में उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया। वह समय अभी अनिश्चित हैं। उनके कन्धों पर यों अनेकों उत्तरदायित्व हैं पर मथुरा में प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले उनके दो ही कार्यक्रम हैं। 1. गायत्री तपोभूमि 2. अखण्डज्योति कार्यालय। इनकी उनने व्यवस्था बनाई ही दी हैं।

जिन आत्म दानियों ने अपने जीवन धर्मसेवा के लिए दिये हैं। वे आचार्य जी के परखे हुए हैं आत्मिक सद्गुणों की, व्यक्तिगत आदर्शवादिता की एवं सेवा भावना की दृष्टि से वे परम विश्वस्त लोग हैं। उनने अब तक जिस लगन और निष्ठा का परिचय दिया हैं, उसे देखते हुए उन्हें विश्वास हो गया हैं कि धर्म जागृति का, युग निर्माण का, जो कार्य तपोभूमि में अपने कंधे पर उठाया हैं, उसे वे पूरी जिम्मेदारी से आगे बढ़ावेंगे। व्यवस्था की दृष्टि से संस्था का ट्रस्ट बना हुआ हैं जिसके कारण किसी आर्थिक गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं हैं। आत्मदानी बच्चों की भावना एवं कर्तव्य परायणता के देखते हुए संस्था के संकल्प की पूर्ति में कोई शिथिलता आने पावेगी ऐसी संभावना नहीं हैं। इस निश्चिन्तता के कारण वे धर्म प्रचार का, युग निर्माण का कार्य इन लोगों के कंधों पर डाल कर सन्तुष्ट हैं। उन्हें उसके भविष्य के उज्ज्वल एवं आशाजनक होने का विश्वास हैं।

अखण्ड ज्योति कार्यालय अभी तक तपोभूमि से अलग इसलिए रखा गया था कि आचार्य जी की चिरकाल में यह इच्छा रही हैं कि भारतीय महिला समाज में भी धर्म जागृति के लिए कुछ ठोस कार्य होने चाहिएं। वे सदा से इस बात के पक्ष में रहे हैं कि पुरुषों और स्त्रियों का कार्यक्षेत्र अलग अलग हैं और वह अलग-अलग ही रहना चाहिए। दोनों क्षेत्रों को जब भी सार्वजनिक जीवन में इकट्ठा करने का प्रयत्न किया गया हैं तभी उसके दुष्परिणाम उपस्थित हुए हैं। वे मुझ से यह आशा रखते रहे हैं कि मैं महिला समाज में धर्म जागृति का कार्य करूं। अपनी अयोग्यताओं के कारण मैं अब तक गिड़गिड़ाती रही उधर आचार्यजी भी अपने विगत महापुरश्चरणों की पूर्णाहुति के सप्त सूत्रों सप्त वर्षीय कार्यक्रम में लगे रहे। इसलिये अभी तक उस दिशा में कुछ प्रगति न हो सकी। पर अब वे अपने साधना और शोध कार्यों के लिए बाहर जाने के पूर्व उस कार्य का भी शुभारंभ कराना चाहते हैं। इसी योजना के आधार पर गायत्री तपोभूमि की भाँति उनने अखण्डज्योति कार्यालय का आगामी कार्यक्रम निर्धारित कर दिया है जिसकी कुछ चर्चा गत अंक में की जा चुकी हैं।

अखण्डज्योति कार्यालय आचार्यजी के चिर स्वप्नों के अनुसार अब महिला समाज में धर्म जागृति का केंद्र बनने जा रहा है। साथ ही अपने विशाल परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति एवं कठिनाइयों के समाधान के लिए जिस आत्मबल तथा तपबल की आवश्यकता पड़ती रहती हैं, उसकी उत्पत्ति एवं पूर्ति भी आवश्यक है। यह दोनों कार्य उन्होंने मेरे सामने छोड़े हैं इनको पूर्ण करने के लिए उनने वह कार्यक्रम बनाया है जो गत अंक में छपा है।

आचार्यजी चाहते हैं कि उनकी 30 वर्ष की कमाई का प्रतीक अखण्ड दीपक अभी 10 साल और जलता रखा जाय और 40 वर्ष का जो दीप अनुष्ठान होता है वह पूर्ण किया जाय। जिस प्रकार अखण्ड अग्नि की स्थापना पर उस अग्नि का भोजन यज्ञ रूप में नित्य होना आवश्यक है। उसी प्रकार अखण्ड दीपक के आगे भी उसका भोजन कम से कम 60 माला जप नित्य होना आवश्यक है। गायत्री तपोभूमि में अखण्ड अग्नि रहती हैं। वहाँ एक हजार आहुतियों का हवन नित्य होता है। अखण्ड ज्योति कार्यालय में जो अखण्ड दीप जलता है उसके सम्मुख हम दोनों मिलकर कम से कम 60 माला जप अवश्य कर लेते हैं। इस प्रकार एक वर्ष में 24 लक्ष्य पुरश्चरण हम लोग अभी भी अवश्य कर लेते हैं। छह वर्ष पूर्व तक अकेले आचार्यजी अपना एक महा पुरश्चरण एक वर्ष में स्वयं पूरा करते थे। जब उनके 24 पुरश्चरण पूर्ण हो गए और सप्त सूत्री कार्य-क्रम की पूर्णाहुति में वे लगे तब से हम और वह दोनों मिलकर एक वर्ष में एक पुरश्चरण पूरा करते रहे हैं। इसी से जो थोड़ा आत्मबल, तप बल उत्पन्न होता है उसे वे परिवार के अनेकों परिजनों को पुण्य प्रसाद के रूप में दान करके उनकी भौतिक एवं आत्मिक प्रगति में, कष्ट निवारण में सहायता करते हैं।

अब उनके बाहर चले जाने पर यह प्रक्रिया कैसे जारी रहे ? इसके लिए उनने अखण्ड दीप के आगे अखण्ड जप का आयोजन किया है। उनके शरीर द्वारा 60 माला के जितना तप बल उत्पन्न होता था, अब उनके अभाव में उतना तप बल तभी उत्पन्न हो सकेगा जब “अखण्ड जप” जारी रखा जाय। यह कार्य कैसे हो? गत अंक में इसका कुछ साफ स्पष्टीकरण नहीं किया गया था। विचार विनिमय के लिए वह बात रोक ली गई थी, पर अब उसका निर्णय हो गया है। यह अखण्ड जप कुमारी कन्याओं द्वारा पूर्ण होगा। गायत्री अनुष्ठानों की पूर्णाहुति में कन्या भोजन का स्पष्ट विधान है। इस उपासना में कन्याओं को सर्वोपरि महत्व दिया गया है। वैसे भी ब्राह्मण के समान ही हिन्दू धर्म में कन्याओं का पूज्य स्थान है। गौ के समान ही कन्याएं भी पूजनीय मानी गई हैं। उनमें धर्म तत्व सबसे अधिक होता है। तपस्वी और नैष्ठिक ब्राह्मणों के अभाव में यदि धर्म कार्य के उपयुक्त किसी का नम्बर आता है तो वह कन्या ही है। चूँकि न तो अब सच्चे नैष्ठिक ब्राह्मण दृष्टिगोचर होते हैं और न मेरे कंधे पर रखी गई महिला जागृति योजना में उनके प्रवेश का ताल मेल बैठता है। इसलिए यही उचित था कि अखण्ड जप कुमारी कन्याओं द्वारा सम्पन्न हो।

आगामी दस वर्ष वक यह अनुष्ठान जारी रखने का आचार्यजी का मेरे लिए आदेश हुआ है। तब तक खंड जप के चालू रहने पर 24 लक्ष के 24 पुरश्चरण पूर्ण किये जाने हैं। अभी इतनी ही योजना है। 12 कन्याएं दो दो घंटा प्रति दिन जप करके 24 घंटे का अखण्ड जप पूरा कर लेंगी। इस व्यवस्था के अनुसार 24 महापुरश्चरण 10 वर्ष में आसानी से पूरे हो जावेंगे। इतना तो होना ही हैं। पर मेरी इच्छा है कि बढ़े हुए गायत्री परिवार की अधिक सेवा सहायता हो सके तथा धर्म सेवकों को अधिक प्रेरणा मिल सके इसके लिए 24 महापुरश्चरण ही काफी नहीं हैं, उनकी संख्या 108 की जाय। यह बोझ काफी बड़ा हो जायगा इसलिए अभी 24 पुरश्चरण पूरे करने के लिए 12 कन्याओं की योजना ही बनाई गई हैं।

आगामी वसन्तपंचमी से यह अखण्ड पुरश्चरण जारी होगा। 12 वर्ष से अधिक आयु की जो कुमारी कन्याएं इसमें भाग लेना चाहें उनके अभिभावक उन्हें उस समय तक प्रसन्नतापूर्वक मथुरा पहुँचा दें। उनके शील, स्वास्थ्य एवं स्नेह तथा सब प्रकार की देख-रेख वैसी ही की जायगी जैसी कोई माता अपने पेट से उत्पन्न हुई लड़कियों के लिए कर सकती हैं। सभी कन्याओं के लिए साधकों जैसे भोजन वस्त्र का भी यहाँ प्रबंध रहेगा। हर कन्या को उसकी वर्तमान शिक्षा, से आगे की शिक्षा का भी प्रबंध रहेगा। दो घंटा जप के अतिरिक्त शेष सारा समय उनके पास बाकी है, इसमें उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था की जायगी।

सरकारी पाठ्यक्रम का आधार यहाँ की शिक्षा में न रखा जायगा। वह शिक्षा पद्धति नारी को आदर्श नारी, धर्म परायण नारी बनाने के लिए न तो उपयुक्त है न आवश्यक ! उसे पढ़कर जो प्रमाण पत्र प्राप्त होते हैं उन्हें लेकर वे नौकरी कर सकती हैं पर उन आदर्शों एवं सद्गुणों से वंचित ही रह जाती हैं जो भारतीय नारी की महानता को बनाये रखने के लिए आवश्यक हैं। मैं उसी शिक्षा व्यवस्था का आयोजन करने का प्रयत्न करूंगी जिसके आधार पर यहाँ से जाने के बाद कन्याएं सच्चे अर्थों में गृहलक्ष्मी सिद्ध हो सकें। उन्हें पढ़ाने लिखाने पर जितना समय लगाया जायगा उतना ही उन्हें आदर्शवादी, कर्तव्यपरायण, सेवाभावी, सहनशील, शिष्ट, नम्र, सुशील एवं सच्चरित्र बनाने पर लगाया जायगा। उन्हें सफल गृहणी, गरीब घर में भी जाने पर भी वहाँ स्वर्ग का साम्राज्य उत्पन्न करने वाली गृहलक्ष्मी बनाने के लिए प्रधान रूप से ध्यान दिया जायगा और यही यहाँ की शिक्षा का उद्देश्य होगा। इसके फलस्वरूप कन्याएं अपने भावी जीवन में सुख शान्तिदायक दिव्य परिणामों की आशा कर सकेंगी। उन्हें उत्तम घर वर मिलने में चिर सुहाग की प्राप्ति, सुसंगति एवं पारिवारिक जीवन में सुख शान्ति का आधार ऐसी साधनाओं से बहुत कुछ सम्बन्धित रहता है। इस उपासना में लगा हुआ कन्याओं का समय उनके भावी जीवन के लिए एक दैवी वरदान सिद्ध हो सकता है।

महान नारियों के चरित्रों का यहां के पाठ्यक्रम में प्रधान स्थान रहेगा। रामायण अनिवार्य होगी। स्वास्थ्य रक्षा, शिशु पालन, गृह व्यवस्था, घरेलू अर्थ शास्त्र, संगीत और सिलाई कताई शिक्षा के प्रमुख भाग रहेंगे। भाषा, व्याकरण, गणित, इतिहास, भूगोल आदि अन्य आवश्यक विषय भी रहेंगे। प्रत्येक कन्या की वर्तमान शिक्षा जहाँ तक है वहाँ से आगे की बाते उसे बताने के लिए हर कन्या का शिक्षण पृथक पृथक भी रहेगा पर साधारण सदाचार और धर्म शिक्षण एक ही होगा, इस प्रकार न केवल शिक्षा के आधार पर वरन् गायत्री उपासना के पुनीत तप द्वारा उनमें वह तत्व उत्पन्न करने का प्रयत्न होगा कि वे किसी प्रकार जीवन के दिन पूरे करने वाली भार भूत नारी न रह कर पार्वती, सावित्री, अनुसूया, सीता, गान्धारी, कौशल्या, देवकी, शैव्या, दमयन्ती, पद्मिनी, अहिल्याबाई, लक्ष्मीबाई की प्रति-मूर्ति बन सकें। अपना जीवन धन्य बनाते हुए संसार के इतिहास में उज्ज्वल उदाहरण उपस्थित कर सकें।

आगे चलकर इस शिक्षा व्यवस्था का बड़ा रूप बन सकता है। इन्हीं आदर्शों को लेकर एक बड़ा नारी विद्यालय चल सकता है देशव्यापी नारी उत्थान के कुछ अन्य ऐसे कार्यक्रम बन सकते हैं। जिनके अनुसार स्थान-2 पर? महिलाएं जाकर स्त्रियों के शिक्षण शिविर चलावें और उन्हें सफल नारी की स्थिति तक पहुँचाने का प्रयत्न हो। यह बातें आगे की हैं। पर उनमें वह सब स्वप्न सन्निहित हैं जो आचार्य जी नारी जागरण के लिए देखते रहते हैं। आगे क्या रूप बनेगा यह समय ही बतावेगा पर अभी तो उसका आरंभ अखण्ड जप के रूप में प्रारम्भ किया जा रहा है उसमें 12 कन्याओं की आवश्यकता होगी । जो सज्जन अपनी कन्याएं भेजना चाहें वे इसके लिए पत्र व्यवहार कर लें। कम से कम 6 महीने के लिए आना आवश्यक हैं। 12 वर्ष से कम आयु की कन्याएं नहीं ली जावेंगी।

अखण्ड ज्योति के सम्पादन के बारे में यही हैं कि मैं अपनी स्वल्प योग्यता को जानती हूँ, उससे चिंतित भी हूं। पर जो कार्य सौंपा गया है इसे ईश्वरीय आदेश मानकर शिरोधार्य करना ही ठहरा। युग निर्माण के लिए समाज सेवा और धार्मिक क्रान्ति के लिए जीवन यज्ञ का एवं गायत्री परिवार से संगठन के लिए गायत्री परिवार पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। उसे आत्मदानी बच्चे उत्साहपूर्वक चला रहे हैं। अखण्ड ज्योति का उद्देश्य अध्यात्म और साधना है, वह उत्तराधिकार मेरे कंधे पर आता है तो उसे भी आचार्य जी के आशीर्वाद और पाठकों के सद्भाव पर विश्वास करते हुए मुझे किसी प्रकार शिरोधार्य करना ही हैं।

अध्यात्म क्षेत्र के अविकारी पात्रों से भविष्य में अखण्ड ज्योति के उपयुक्त लेख बराबर भेजते रहने और उनकी परम्परा को यथावत् बनाये रखने का आचार्य जी स्वयं प्रबंध कर रहे हैं। वे स्वयं भी अब तक प्रकाश में न आये हुए गायत्री विज्ञान के अत्यंत रहस्यमय ग्रन्थ ‘विश्वामित्र कल्प’ में सन्निहित तत्वज्ञान पर प्रकाश डालने वाली एक लेख माला इसी जनवरी से आरंभ करेंगे। और वे कहीं भी रहें, हर महीने अध्यात्म विज्ञान के सूक्ष्म तत्व ज्ञान पर प्रकाश डालने वाला एक लेख देते रहेंगे। ‘विश्वामित्र कल्प’ एक रहस्य मय ग्रंथ है जिसके एक एक श्लोक में रहस्यमय भंडार भरा हुआ हैं। इस पर आज तक कोई भाष्य नहीं हो सका। उसका प्रत्येक मन्त्र गायत्री उपासकों के लिए एक पहेली बना हुआ है। इसके रहस्यों का उद्घाटन दक्षिणी मार्गी एवं वाममार्गी साधना क्षेत्र में एक आश्चर्य ही माना जायगा। इसी जनवरी से वह लेख माला चल पड़ेगी एवं आचार्य जी के सुविज्ञ सहचरों के लेख अखण्ड ज्योति में आने लगेंगे तो मेरा सम्पादन कार्य-भार बहुत कुछ सरल हो जायगा।

यों अखण्ड ज्योति अब भी अध्यात्मिक है। अध्यात्म विषय रूखा होता है। उसमें सबकी रुचि नहीं होती। आगामी योजना के अनुसार तो वह और भी अधिक अध्यात्मिक हो जायगी। ऐसी दशा में जिनकी अभिरुचि इस मार्ग में कम है या जो मनोरंजन के लिए अखबार खरीदते और पढ़ते हैं, उनके लिए वह और भी अधिक रूखी हो जायगी। ऐसी दशा में ग्राहक संख्या अब की अपेक्षा उसकी और भी घटेगी। यह बहुत ही अच्छा और सुविधाजनक होगा कि आगे से अखण्ड ज्योति के ग्राहक वे ही रहें जो अध्यात्म मार्ग के सच्चे जिज्ञासु हैं। मनमौजी लोग इसकी सदस्यता छोड़ दें। उनके कारण यहाँ की व्यवस्था में भी बड़ी गड़बड़ी पड़ती हैं। हर साल ढेरों ग्राहक टूटते बड़ते हैं। इस झंझट में ढेरों पत्रिकाएं अधिक छप जाती हैं जो बेकार जाती हैं, कभी कभी कोई अंक कम पड़ जाता है और ग्राहकों को शिकायतें करनी पड़ती हैं।

मेरी अनुभवहीनता की स्थिति में वही उपयुक्त होगा कि अगले वर्ष से पाठकों में से केवल वे ही ग्राहक रह जावें जो हर साल उथल-पुथल न किया करें। चंदा उनका देर सवेर में आवे तो भी पत्रिका भेजना उनके लिए बन्द न करना पड़ा करे। ऐसे ही स्थिरचित्त के ग्राहक अब अभीष्ट होंगे। हमारी आर्थिक स्थिति खराब हो गई, हमें पढ़ने की फुरसत नहीं मिलती आदि बहाने बताकर कई ग्राहक अपनी अध्यात्मिक अरुचि के कारण सदस्यता छोड़ देते हैं। इस उथल-पुथल में पते छप नहीं पाते, हाथ से लिखे जाते हैं उनमें भूल रहने से किसी किसी के अंक भी गुम होने की संभावना रहती हैं। अगले वर्ष जनवरी से स्थायी ग्राहकों के पते छपा लिये जायेंगे और यह आशा की जायगी कि जो थोड़े बहुत ग्राहक रहें वे स्थिर मति और व्यवस्थित रुचि के हों। इस दृष्टि से अखंड ज्योति के वर्तमान ग्राहकों से यह अगले वर्ष में अपने ग्राहक रहने न रहने का निश्चय सूचित कर दें ताकि जनवरी का अंक उतनी ही संख्या में छपाने और वे सब पते छपा लेने का प्रबंध कर लिया जाय। चंदा आगे पीछे भी भेजा जा सकता है पर सदस्यता के स्थायी होने की जानकारी प्राप्त होना आवश्यक है । इससे एक बहुत भारी कठिनाई का हल हो जायगा। पाठक अनुग्रहपूर्वक अपने निश्चय की सूचना इसी मास देने की अनुकम्पा कर सकें तो इससे मेरे कंधे पर आई हुई अनेक नई जिम्मेदारियों में से एक के हलका करने का बड़ा उपकार होगा। पत्र व्यवहार में, उसी प्रकार अपना पता हिन्दी भाषा में स्पष्ट अक्षरों में अपने ग्राहक नम्बर समेत लिखने की कृपा किया करें तो यह भी मेरे लिए एक बड़ी सुविधा की बात होगी।

अखण्ड ज्योति का महान् मिशन गत 20 वर्षों में बहुत कुछ कार्य कर चुका। उसे सफल कहा जा सकता है। आचार्य जी के कार्य सफल रहे हैं इसमें कुछ आश्चर्य की बात नहीं हैं। अब इस मिशन का उत्तरार्ध मेरी अयोग्यता और अनुभव हीनता के कारण लड़खड़ा सकता है, असफल हो सकता है। इन कठिन घड़ियों में परिवार के परिजनों का स्नेह सद्भाव एवं सहयोग अभीष्ट है। परिवार के सदस्यों को आचार्य जी तो अपना बन्धु आत्मीय और स्नेह भाजन मानते रहे हैं। कुछ गुरुजनों को छोड़ कर शेष के प्रति वे पुत्र भाव रखते रहे हैं। मेरी भी स्वाभाविक मातृ ममता वैसी ही रहेगी। इन परिवर्तन की घड़ियों में परिजनों के प्रति असीम मातृभाव रखते हुए उनसे भी ममता एवं आत्मीयता की आशा रखूँगी। उस भारी उत्तरदायित्व को निबाहने में माता की कृपा, श्री आचार्य जी के आशीर्वाद के बाद स्वजनों के सद्भाव को ही प्रमुख आधार माना है। यह आधार दुर्बल साबित न होगा ऐसा मुझे विश्वास है।


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