विदेशों में दैव संयोगों की धारणा

November 1959

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(श्री लीलारानी)

हमारे देश की साधारण जनता, विशेषतः ग्राम वासियों में टोना टोटका का बड़ा महत्व माना जाता है। वे लोग अधिकाँश बीमारियों का इलाज इसी विधि से करते हैं और जन्म से मरण तक जितनी भी रस्में होती हैं उनमें अधिकाँश बातें ऐसी होती हैं जिनका प्रत्यक्ष में कोई अर्थ नहीं होता। आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति ऐसी बातों को कुसंस्कार या अन्धविश्वास के नाम से पुकारते है। पर हम बतलाना चाहते हैं कि ऐसी रस्में “विश्वास” योरोप और अमरीका तक के व्यक्तियों में पाये जाते हैं और जो लोग ऐसा विश्वास करते हैं उनको तदनुसार फल भी प्रायः मिलता है। हम चाहे ऐसी बातों को “संयोग” के नाम से पुकारें पर यदि उनके मूल स्वरूप की खोज की जाय तो उनका कुछ आधार उनमें कुछ तत्व भी दिखलाई पड़ता है।

आधुनिक ज्ञान और विज्ञान का आरम्भ और सबसे अधिक प्रचार अंगरेज जाति में हुआ है। इसी के द्वारा संसार के दूर-दूर के भागों में नवीन ज्ञान की ज्योति पहुँची है, और लोगों का जीवन निर्वाह के नवीन नियमों में मार्ग दर्शन हुआ है। इस अंगरेज जाति के ग्रामीण लोगों में ही नहीं बड़े से बड़े घरानों में ऐसे विश्वास प्रचलित हैं जिनको टोना टोटका के सिवाय और कुछ नहीं कह सकते। कुछ समय पूर्व मि0 बालबियन इंग्लैंड के प्रधान मंत्री थे और वहाँ शासक दल के बड़े प्रभावशाली नेता माने जाते थे। एक समय प्रसंग छिड़ने पर उन्होंने कहा कि “जिस दिन मैं पैदा हुआ था, हमारी रसोईदारिन जो एक बुढ़िया थी, मुझे कम्बल में लपेट कर सीढ़ियों पर चढ़ गई, ताकि मैं संसार में उन्नति के सोपान पर चढ़ सकूं। उसकी इच्छा थी कि मैं बहुत बड़ी पदवी प्राप्त कई, इसलिये वह मुझे एक दम छत पर ले गई और कुर्सी पर खड़ी होकर दोनों हाथों जहाँ तक सम्भव था, ऊपर की और उठा दिये।” इस प्रकार के और भी अनेकों विश्वास प्रसवकाल के सम्बन्ध में अंगरेजों में प्रचलित है। हमारे देश की भाँति बच्चे के जन्म दिन के शुभ अशुभ होने का खयाल भी रखा जाता है। इस सम्बन्ध में वहाँ एक कविता प्रचलित है जिसका भावार्थ यहाँ दिया जाता है-

“सोमवार का उत्पन्न होने वाला बच्चा सुन्दर होता है, मंगलवार का श्रीमान होता है, बुधवार का दुखी रहता है, बृहस्पतिवार वाले को दूर की यात्रा करनी पड़ती है, शुक्रवार का प्रेमशील और उदार होता है, शनिवार वाले को परिश्रम द्वारा रोटी कमानी पड़ती है और रविवार वाला सुन्दर सौभाग्यशाली, बुद्धिमान और प्रमुदित होता है।”

इसी प्रकार बालक का जन्म समय भी उसके सौभाग्य या दुर्भाग्य का कारण माना जाता है। 4, 8 और 12 अथवा 3,6,9 और 12 बजे उत्पन्न होने वाला बालक विशेष रूप से भाग्यशाली माना जाता है। अगर जन्म के समय बालक का सिर झिल्ली से ढका हो तो इसे बड़ा शुभ चिन्ह माना जाता है और उस झिल्ली को सदैव बहुत संभाल कर रखा जाता है। एक वर्ष की आयु तक बच्चे के नाखून और बाल काटना बुरा समझा जाता है और कहते हैं कि यदि पहली बार काटे हुये नाखूनों को “ऐश” नामक पेड़ के नीचे गाड़ दिया जाय तो बालक उच्च कोटि का गवैया होता है। आयु के प्रथम वर्ष में बच्चे को दर्पण दिखाना बुरा माना जाता है। बच्चे के दाहिने हाथ को धोने के बजाय गीले कपड़े से पोंछ देते हैं। ताकि बड़ा होने पर धन संग्रह करने में सफल हो सके।

जब तक गिरजाघर में ले जाकर बच्चों का “बपतिस्मा” न हो जाय तब तक उसे किसी के घर ले जाना अमंगल जन्म माना जाता है। जिस समय उसे बपतिस्मा के लिये गिरजाघर ले जाते हैं, उस समय यदि वहाँ कोई नई कर्ब खुदी दिखलाई पड़े तो यह बच्चों की मृत्यु का चिन्ह है। बपतिस्मा के अवसर पर गिरजे का उत्तरी दरवाजा खुला रखा जाता है ताकि उसमें होकर बच्चे के भीतर निवास करने वाला शैतान भाग सके। अगर बच्चा “पवित्र जल” छिड़कने से न रोवे तो इसे अशुभ माना जाता है और उसे चुपके से चिकोटी काट कर रुला दिया जाता है। अगर “बपतिस्मा” के लिये एक लड़का और एक लड़की पादरी के सामने एक ही समय लाये जायें? तो पादरी पहले लड़के को बपतिस्मा देता है? क्योंकि ऐसा न करने से कहते हैं कि लड़के की दाढ़ी-मूंछें लड़की को निकल आयेंगी।

विवाह

विवाह के सम्बन्ध में भी सर्वसाधारण में ऐसी कितनी ही धारणायें प्रचलित हैं जो केवल “विश्वास” से सम्बन्ध रखती है। उदाहरणार्थ लोगों की धारणा है कि मई में विवाह करना अशुभ होता है। इसका फल यह होता है कि प्रायः अप्रैल के अंत में विवाहों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। इसी प्रकार विवाह के दिन के सम्बन्ध में शुभ अशुभ का विचार किया जाता है। इस विषय में एक जनश्रुति लोगों में प्रायः सर्वत्र सुनी जाती है जिसका अर्थ यह है-

“सोमवार का विवाह स्वास्थ्य के लिये, मंगल पर धन के लिये, बुध का सब बातों के लिये शुभ है बृहस्पति का विवाह असफलता, शुक्र का हानि और शनिवार का भाग्यहीनता देने वाला है।”

दुलहन के लिये अपने विवाह की घोषणा सुनना, विवाह की पूरी पोशाक पहिन कर दर्पण देखना अथवा विवाह की पोशाक को दीपक के प्रकाश में देखना निषिद्ध है। दुलहन की पोशाक के सम्बन्ध में एक जनश्रुति भी प्रसिद्ध है कि “उसमें कुछ चीजें पुरानी हों, कुछ नई हों, कुछ माँगी हुई हों और कुछ पीले रंग की हो।” दुलहन जब विवाह के लिये गिरजे को रवाना होती है तो पहले दाहिना पैर घर की देहरी पर रखती है। यदि गिरजे में प्रवेश करने पर ठीक पहले वहाँ की घड़ी बजे तो यह शुभ चिन्ह है और इसके लिये देहातों की दुलहनें, जब तक घण्टा नहीं बजता, तब तक बाहर खड़ी रह कर उसकी प्रतीक्षा किया करती हैं। किसी किसी स्थान पर दो पत्थर खड़े करके और तीसरा पत्थर उनपर आड़ा रख कर नव-दंपत्ति का रास्ता रोक दिया जाता है और उन्हें उछल कर उसे पार करना पड़ता है। जो मित्र उनको इस कार्य में सहायता देते हैं उनको कुछ भेंट दी जाती है। जिस प्रकार हमारे देश के पूर्वी प्राँतों में विवाह के अवसर पर धान की खीलें फेंकी जाती हैं। उसी प्रकार अंगरेजों में भी गिरजा से लौटते समय नव-दंपत्ति पर चावल फेंके जाते थे। अब कुछ वर्षों से चावल के बजाय “कनफैटी” (चमकीले कागज की बनी छोटी-छोटी टिकुलियाँ) फेंकी जाती हैं। दंपत्ति पर पुराने जूते फेंकने का रिवाज भी अंग्रेजों में सर्वत्र प्रचलित है। दुलहन पतिगृह में प्रवेश करते समय एक पत्थर का टुकड़ा साथ में ले जाती है।

मृत्यु

जब कई व्यक्ति मर जाता है तो उसके मित्र पड़ोसी तथा अन्य परिचित लोग उसके पास इकट्ठे हो जाते हैं और उसके हाथ को छूते हैं। आजकल उसका कारण यह बतलाया जाता है कि उन व्यक्तियों को मरने वाले से किसी प्रकार का द्वेष-भाव नहीं पर प्राचीनकाल में उसका उद्देश्य प्रेतात्मा के कोप से सुरक्षित रहना था। अब से दो तीन सौ वर्ष पहले किसी-किसी स्थान में मृत व्यक्ति के नाम पर एक रोटी, एक प्याला बियर (जौ की शराब) तथा छः आना ऐसा एक व्यक्ति को दिया जाता था, जो इन को खा पीकर मरने वाले के पापों को अपने ऊपर लेता था। इस व्यक्ति को ‘सिन ईटर” (पाप-भक्षक) कहते थे और हम समझते हैं कि वह उसी श्रेणी का व्यक्ति होता होगा जैसे कि “महा ब्राह्मण” हमारे यहाँ होते हैं।

अन्य शकुन

ऊपर जिन बातों का जिक्र किया गया है उनके सिवाय और भी ऐसी सैंकड़ों धारणायें लोगों में प्रचलित हैं जिनसे लोग विपत्ति या मृत्यु आने का अनुमान लगाया करते हैं। तस्वीर का गिरना, घर में बिल्ली का मर जाना चूहों का मेज कुर्सी आदि को काटना, शीशे का टूटना, छछूँदर का घर की तरफ आना, कुत्ते का रोना, मुर्गे का आधी रात के पहले बोलना, शवयात्रा के समय घोड़े का धीरे से हिनहिनाना आदि घटनायें सदैव अशुभ समझी जाती हैं। कान में सनसनाहट होने से बदनामी और नाक में खुजली होने से क्लेश की आशंका की जाती है। दाहिना हाथ खुजलाने से रुपया मिलने की और बायाँ हाथ खुजलाने से रुपया जाने की संभावना की जाती है। पैर में खुजली होना यात्रा का चिन्ह माना जाता है। छींक भी बहुत महत्वपूर्ण शकुन माना जाता है। इसके विषय में एक कहावत है-

“सोमवार की छींक अमंगल जनक है, मंगल की किसी अपरिचित से प्रेम कराती है, बुध को छींकने से किसी का पत्र आता है, बृहस्पति की छींक से कुछ भलाई होती है। शुक्र की छींक शोक उत्पन्न करने बाली होती है और शनिवार को छींकने से दूसरे ही दिन प्रिय जन से भेंट होती है।

इस प्रकार अंगरेजों में भी हमारे देश की भाँति टोना-टोटका, जंत्र-मंत्र का काफी प्रचार है। इंग्लैंड में कितने ही लोग ‘ताबीज’ बेचते हैं और अनेक स्त्री पुरुष मनोकामनाओं की सिद्धि के लिये उनको खरीदते हैं। कितने ही लोग विपत्ति से बचने के लिये भेड़ के गाल की हड्डी, विशेष शक्ल का आलू चाँदी की अंगूठी, छछूँदर का पैर, तरह तरह के नग, कोपला, चमड़े से ढकी पारे की शीशी, ईंट का टुकड़ा आदि न मालूम क्या क्या चीजें साथ में लिये फिरते हैं?


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