दैवी कृपा द्वारा प्राण रक्षा

August 1959

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(पं. रामप्रताप तिवारी)

पुनर्जन्म और परलोक पर विश्वास करने वाले हिन्दू-मात्र का यह विश्वास है कि संसार में जिन पदार्थों और शक्तियों को हम प्रत्यक्ष देखते रहते है, उनके सिवा विश्व में और भी ऐसी अनेकों बहुसंख्यक शक्तियाँ मौजूद हैं जिनका हमको नेत्रों से अथवा अनुमान द्वारा कुछ भी पता नहीं लग सकता। वे अलौकिक अथवा दैवी शक्तियाँ प्रायः हमारे आस-पास ही उपस्थित रहती हैं, पर जब तक कोई उपयुक्त अवसर नहीं आता और हमारे तथा उनके बीच सम्बन्ध होने का कोई उचित कारण उपस्थित नहीं होता तब तक अस्तित्व का ज्ञान होना कठिन होता है।

पाठकों ने समाचार पत्रों में अनेकों बार ऐसी घटनायें पढ़ी होंगी जिनमें किसी व्यक्ति की प्राण रक्षा भयंकर विपत्ति में पड़ जाती है फिर भी आश्चर्य जनक ढंग से हो गई। कई बार ऐसी घटनायें पढ़ने में आई हैं कि जब कोई दुष्ट आततायी किसी निरीह बालक या अबला को मारने पर उतारू हुआ तो अचानक किसी सर्प ने आकर उसे गिरफ्तार कर लिया अथवा किसी अन्य प्रकार से उसके दुष्ट मनोरथ में विघ्न पड़ गया। इसी प्रकार कितने ही पाप कर्मों का भेद स्वप्न द्वारा प्रकट हो गया और अपराधी को उसी के आधार पर दण्ड मिल गया। एक बार हम ने पढ़ा था कि एक देहाती होटल वाले को स्वप्न में दिखलाई पड़ा कि दो व्यक्ति उसके यहाँ चाय पीने को आये। जब वे लोग वहाँ से चले गये तो सुनसान मार्ग में एक ने दूसरे को मार कर उसका रुपया ले लिया और लाश को वहीं झाड़ियों के बीच में गाड़ दिया। दूसरे दिन वास्तव में वैसी ही आकृति के, जैसी स्वप्न में देखी थी, दो व्यक्ति उसके यहाँ आये। इससे उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुन कर उसने उनका पता ठिकाना जान लिया। जब वे लोग होटल से चले गये तो वास्तव में एक ने दूसरे की हत्या करके उसका रुपया ले लिया। दस-पाँच दिन बाद जब एक व्यक्ति के आकस्मिक रूप से गायब हो जाने की बात चारों तरफ फैली और होटल वाले ने भी उसे सुना तो उसे उसे अपने स्वप्न का ध्यान आया और उसने अपना सन्देह एक पुलिस अधिकारी को कह सुनाया। पुलिस द्वारा जाँच करने पर उन्हीं झाड़ियों में लाश मिल गई और हत्याकारी भी पकड़ लिया गया। पहले तो उसने ऐसी स्वप्न की बात को यों ही उड़ा दिया और इसे होटल वाले ही का षड़यंत्र बतलाया, अन्त में उसे सत्य बात स्वीकार करनी पड़ी और फाँसी पर चढ़ना पड़ा।

इसी प्रकार अमरीका की एक युवती प्रथम योरोपीय महायुद्ध के समय “लूसिओनिया” नामक जहाज से इंग्लैंड की यात्रा करने वाली थी। वहाँ उसे अपनी एक सहेली के विवाह में प्रधान सहचरी के रूप में भाग लेना था। उसने बड़े उत्साह के साथ यात्रा की तैयारियाँ कीं। पर उसकी माता इस यात्रा से सहमत न थी और उसने अपनी पुत्री के घर से रवाना होते समय कहा कि “अगर यह लड़की इस जहाज से गई तो हम उसे फिर जिन्दा न देखेंगे।” तो भी वह उसके विरोध की परवाह न करके न्यूयार्क पहुँच गई। दूसरे दिन दोपहर के 12 बजे जहाज रवाना होने वाला था। दिन भर वह घूम-घूम कर न्यूयार्क स्थित मित्रों से मिलती रही। सब ने उसे बधाई व तोहफे दिये पर रात के समय जैसे ही वह सोने को गई उसके कान में एक अदृश्य आवाज सुनाई दी कि “इस जहाज पर सवार होने वाला फिर नहीं लौटेगा।” इससे उसे बड़ी बेचैनी हुई और रात का ज्यादा भाग जागते हुये ही बीता। सुबह होने पर रात के संघर्षमय विचार लुप्त हो गये और फिर उसके मन में साहस का संचार हुआ और वह अपने सामान को यात्रा के लिए ठीक करने लगी। जैसे ही सामान जहाज पर ले जाने को कुली ने दरवाजा खटखटाया कि उसको फिर वही प्रेरणा का स्वर सुनाई दिया—”अब भी समय है, आज के जहाज पर सवार होने वाला नहीं लौटेगा।”

अब उसका साहस जाता रहा और उसने बिना दरवाजा खोले ही कुलियों को लौटा दिया। फिर वह दौड़ी-दौड़ी जहाज पर गई और अधिकारियों से कहा कि मेरा पासपोर्ट नहीं आया है, इस लिये मैं जाने में असमर्थ हूँ। जहाज के अधिकारी उसे उसी समय स्थान देने को तैयार थे कि पासपोर्ट आता रहेगा, पर वह कुछ और बहाना बनाकर चली आई। घर लौटने पर उसके अनेक मित्रों ने उसकी ऐसी अस्थिर बुद्धि पर उलाहना भी दिया। पर एक सप्ताह बाद ही जब सब लोग चाय के टेबल पर बैठे गप शप कर रहे थे, अचानक टेलीफोन की घंटी बज उठी। छोटी बहिन संदेश सुनने को गई और उसे सुनते ही उसका चेहरा पीला पड़ गया। उनके एक मित्र ने उसे बतलाया कि ‘लूसिटेनिया जहाज आयरलैण्ड के पास जर्मन गोताखोर नाव द्वारा डुबा दिया गया। उसके हजार-बारह सौ व्यक्तियों में से शायद ही कोई बचा हो।” पाठकों को यह बतलाने की आवश्यकता नहीं कि इस यात्री जहाज को डुबाने के ऊपर ही अमरीका ने भी जर्मनी के विरुद्ध घोषणा कर दी थी और वह मित्र दल में सम्मिलित हो गया था।

हमारे देश में भी ऐसी घटनाओं का अभाव नहीं है। पुराने जमाने में तो अनेकों भक्तों की भगवान ने जैसी चमत्कारी रीति से रक्षा की है, उसकी बात तो सभी धर्म प्रेमी जानते है, पर अब भी कभी-कभी दैवी सहायता के ऐसे स्पष्ट उदाहरण सुनने में आते हैं कि अविश्वासियों को भी विवश होकर दैवी सत्ता पर विश्वास करना पड़ता है। हाल ही में ऐसी ही एक घटना अनूपशहर (यू.पी.) के पास खुशालगढ़ में हुई थी जिसका विवरण विलखुना निवासी भक्त रामशरणदास जी ने “ज्योतिष्बही” में प्रकाशित कराया है, नीचे हम उसका साराँश दे रहे हैं—

“अभी उस दिन हमने सुना कि खुशालगढ़ का एक पाँच वर्ष का बालक हैजे से मर कर गंगाजी के हाथी डुबाऊ पानी में डाल दिया गया। वहाँ किसी अदृश्य शक्ति ने उसकी रक्षा की और उसे जीवित करके बाहर निकाल दिया। इस घटना की चर्चा उन दिनों स्थान-स्थान पर हो रही थी और लोग उस बालक के दर्शन करने जा रहे थे। हम भी उसके दर्शन करने के लिये अनूपशहर पहुँचे और रौचेरा गाँव के श्री मनवीरसिंहजी के साथ खुशालगढ़ गये। वहाँ लड़के के पिता ठाकुर महावीर सिंह जी मिले और उन्होंने सब घटना भी सुनाई, पर बालक वहाँ न था। वह अपनी माँ के साथ ननिहाल चला गया था जो सिंगौली ग्राम में है। हम खुशालगढ़ से वापस लौट कर स्वामी स्वतः प्रकाश हरिबाबा के स्थान पर ठहर गये और दूसरे दिन हसनपुर के पं.छज्जूमल जी पुरोहित के साथ सिंगौला जा पहुँचे। वहाँ लड़के के मामा श्री धनपाल सिंह जी बड़े प्रेम से मिले और बचे हुये बालक को बुलाकर हमसे मिलाया। हम अगले दिन शिशुको लेकर हरिबाबा के आश्रम पर आये और हजारों मनुष्यों की विराट सभा के बीच में उसे खड़ा करके सारी घटना को श्राद्योपाँत जनता को सुनाया। इसे सुनकर बड़े-बड़े नास्तिकों को बोलती बन्द हो गई और सब लोग सनातन धर्म की जयजयकार करने लगे। बाद में श्री प्रभावकुमार अग्रवाल ने शिशु का फोटो खींचा। घटना ज्यों की त्यों इस प्रकार है—

यह बालक जिसका नाम कुँवरपाल है, 5 वर्ष 2 महीने की आयु का है। वह अपने पिता ठा. महावीरसिंह के साथ अनूपशहर गया था और वहाँ उसने बाजार से लेकर कई चीजें खाईं और पानी पिया। इससे उसे वमन और दस्त होने लगे और हैजे का रूप धारण कर लिया। पिता बड़े घबराये और उसे डॉक्टर के पास ले गये, जहाँ इंजेक्शन लगाया गया। पर लाभ कुछ भी नहीं हुआ और एक घंटे में बालक मर गया। डॉक्टर ने भली भाँति देख कर मरा हुआ बतलाया। अब तो पिता फूट-फूट कर रोने लगे। अंत में उन्होंने बाजार से कपड़ा खरीदा और उसमें बालक को लपेट कर तथा गाँठें लगाकर गंगाजी के खूब गहरे जल में ले जाकर छोड़ दिया। जब पिता रोते-धोते ग्राम में पहुँचे तो वहाँ भी हाहाकार मच गया। घर वालों के शोक का तो कहना ही क्या था।

“लड़के को संध्या के 4 बजे जल में डाला गया था जहाँ नाव की बल्ली भी नहीं लगती थी। पर भगवान की विचित्र लीला देखिये कि रात के 9 बजे वेस्टरगंज के सदर घाट पर शकोई नामक गाँव के एक पंडितजी भजन करने आये तो उन्होंने एक बालक को जंजीर पकड़े हुये ‘चाचा’ ‘चाचा’ पुकारते सुना। उन्होंने जल में उतर कर उसे बाहर निकाल लिया और अपने घर ले गये। जब शिशु से पूछा गया कि तुम इस गहरे जल में कैसे तैरते रहे तो उसने कहा कि दो सफेद दाढ़ी वाले महात्मा मुझे हाथों पर उठाकर यहाँ तक ले आये और मुझे जंजीर पकड़ कर खड़े रहने को कह कर चले गये।” पंडित जी बच्चे को थाने में भी ले गये और वहाँ भी उसने यही बात कही। दूसरे दिन जब वह उसे लेकर खुशालगढ़ पहुँचे तो सब लोग बड़े शोक की अवस्था में थे और बालक के घर वालों को भोजन करने के लिए समझा बुझा रहे थे। इतने में बालक दौड़ कर अपने माता पिता से लिपट गया। सब लोग आश्चर्य चकित हो गये और गाँव में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। सब लोग “गंगा मैया की जय” कहकर चिल्लाने लगे। अभी तक बालक का नाम कुँवरपाल था, उसे बदलकर अब गंगाप्रसाद रख दिया गया। पंडित जी को खूब दक्षिणा आदि दी गई और अनूपशहर जाकर बड़ी धूमधाम से गंगा रामजी का पूजन किया गया।”

दैवी- सहायता के ऐसे उदाहरणों से निःसन्देह मनुष्य की बुद्धि चकित रह जाती है। वास्तव में यह विचार करना कि हमारे इस जीवन का अन्त होते ही सब कुछ मिट्टी में मिल जाता है और सब भलाई बुराई यहीं समाप्त हो जाती है, एक बड़ा संकीर्ण विचार है। इस दृश्य जगत के बाद भी बहुत कुछ मौजूद है और उसका परिचय हमें कभी कभी ऐसी ही घटनाओं द्वारा प्राप्त हुआ करता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118