वृक्षारोपण की पुनीत परम्परा—हरियाली अमावस्या

August 1959

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हमारे पूर्वजों ने जिन सिद्धान्तों, आदर्शों और विधि-विधानों को हमारे लौकिक और पारलौकिक जीवन के लिए लाभकारी समझा, उनको उन्होंने धर्म के अंतर्गत ला दिया। व्यक्ति गत जीवन को ऊंचा उठाने के लिए जिस तरह षोडश संस्कारों की आवश्यकता है, उसी प्रकार से सामूहिक जीवन को सुसंस्कृत बनाने के लिए त्यौहारों की आवश्यकता है। हिन्दू धर्म का प्रत्येक त्यौहार एक प्रेरणा,सिद्धाँत और आदर्श लिए हुए है। इन त्यौहारों की प्रेरणा को समाज के मनः स्थल पर प्रतिष्ठापित करने के लिए उन्हें सामूहिक आयोजनों उत्सवों के रूप में मनाने की पद्धति चली है क्योंकि सामूहिक रूप से जिस उत्सव को मनाया जाता है। उसकी एक छाप उस में भाग लेने वाले के ऊपर पड़ती है।

हरियाली अमावस्या का त्यौहार जो इस वर्ष श्रावण वदी 30 मंगलवार, 4 अगस्त 59 को मनाया जायगा,हमारे भौतिक जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है। हमारे शास्त्रों में किन्हीं क्रियाओं के लाभ इस प्रकार वर्णन किये जाते हैं कि लोग असम्भव से मान लेते हैं परन्तु वास्तविकता यह नहीं है। उन संकेतों में कुछ रहस्य अवश्य छिपा रहता है। हरियाली अमावस्या विशेष प्रकार से वृक्षारोपण का त्यौहार है। वृक्षों की महत्ता को स्वीकार करते हुए अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में कहा है कि “वृक्ष वनस्पति भी मनुष्यों की ही भाँति पृथ्वी के पुत्र हैं।” अग्नि पुराण में कहा है “जो मनुष्य वृक्ष लगाता है,वह अपने तीस हजार पितरों का उद्धार करता है। जो कोई अपने वंश, धन और भावी सुख की वृद्धि चाहता हो तो उसे फल फूल वाले किसी वृक्ष को न काटना चाहिए।” पद्म पुराण में लिखा है कि “जो मनुष्य सड़क के किनारे वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षों तक सुख भोगता है जितने वर्षों तक वह वृक्ष हरा रहता है।” महाभारत में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए कहा था “वृक्ष लगाने वाले इस लोक में तो यश और कीर्ति प्राप्त करते ही हैं, मरने के बाद भी स्वर्ग लोक को जाते हैं। वृक्ष लगाने वाला अपने पितरों के साथ साथ पीछे आने वाली पीढ़ियों का भी उद्धार करता है।”

पाराशर ऋषि का मत है।

दश कूप समो वापी दशवापी समो हृदः। दश हृद समः पुत्रः दश समो द्रुमः॥

अर्थ—दस कुएं बनाने के समान एक बावड़ी खुदाने का पुण्य होता है। दश बावड़ी खुदाने के बराबर एक तालाब बनाने का पुण्य है। दश तालाब बनाने की बराबर एक पुत्र या शिष्य को धर्म परायण समाज सेवी बनाने का पुण्य है। दश समाजसेवी सन्तानों के बराबर वृक्ष लगाने का पुण्य है। पुण्य कारक शुभ कर्मों में वृक्षारोपण का सर्वोपरि स्थान है।

ऋषियों ने जिन रीति रिवाजों, मान्यताओं, कर्मकाण्डों, का जीवन में उपयोग देखा, उनकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए उनके लाभों का अत्यधिक वर्णन किया है। वृक्षों के सम्बन्ध में मनुष्य के लिए उपयोगिता का विवेचन हम नीचे की पंक्तियों में करेंगे।

भारत कृषि प्रधान देश है। इसलिए यहाँ वर्षा की ऋतु का बड़ा महत्व समझा जाता है। वर्षा का बहुत कुछ सम्बन्ध पेड़ों से है। जहाँ पेड़ अधिक होते हैं, वहाँ वर्षा भी अधिक होती है इसलिए जब भारतवर्ष में बन पर्याप्त मात्रा में थे तो यहाँ वर्षा आवश्यकतानुसार हो जाया करती थी। क्योंकि बादल वन जाने पर वृक्ष समूह अपने आकर्षण से वर्षा को खींच लेते हैं। परन्तु जब से वनों को काट कर भूमि को जुताई के उपयुक्त बनाया जाने लगा है तभी से वर्षा का क्रम अनिश्चित सा हो गया है।

पेड़ों का प्रभाव देश की जलवायु पर पड़ता है। गर्म देशों में पेड़ों की पत्तियों से पानी उड़ कर वहाँ के तापक्रम को कम करता है। परन्तु जहाँ पेड़ नहीं होते वहाँ की खुली जमीन पर सूर्य की किरणों के पड़ने से वह गर्म हो जाती है जिस के फलस्वरूप वायु भी गर्म होकर बादलों को ऊपर उठा देती है और वहाँ वर्षा नहीं होती। पेड़ों के होने से इस हानि से बचा जा सकता है।

पेड़ों का मनुष्य के स्वास्थ्य से भी सम्बन्ध है क्योंकि यह कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस को सोख लेते हैं और दिन को ऑक्सीजन गैस छोड़ते हैं। जो शरीर के लिए बहुत आवश्यक है और लाभप्रद वस्तु है। इस से फेफड़ों व खून की सफाई होती है और अनिष्टकर पदार्थों से बचाव होता है। हरी हरी घास पर प्रातः काल नंगे पैर चलने और हरी पत्तियों की ओर देखने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। फलों की सुगन्धि से मस्तिष्क के अनेकों रोग दूर हो जाते हैं। गुलाब अर्क और गुढ़ैल का शर्बत उष्णजन्य कई रोगों में काम आते है। बहुत से वृक्षों की जड़, छाल लकड़ी, स्वरस, फूल फल और पत्तियों से राम बाण औषधियाँ बनती हैं जो रोग निवारण के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होती हैं।

पेड़ों की जड़ों में कुछ ऐसा प्रभाव होता है कि वह भूमि को कटने से बचा लेते हैं। तालाब और नदियों के किनारों पर पेड़ लगाने का यही प्रयोजन होता हैं। इन से नदियों के पानी का बहाव एक सा बना रहता है। भारत में कुछ वर्षों से काफी बाढ़ें आने लगी हैं। कुछ हद तक इसका कारण भी वनों का तेजी से सफाया होना है। वनों के अभाव में हमारे देश की भूमि धीरे धीरे रेगिस्तान बनती जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्थान का रेगिस्तान उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ रहा है, इसके लिए वनों का लगाना आवश्यक है। इस लिये उत्तर प्रदेश में राजस्थान की सीमा पर अब पेड़ लगाये जा रहे हैं।

वृक्षों से हमारी ईंधन की आवश्यकता पूर्ति होती है। उनका कोयला और चीरन का बुरादा चूल्हों भट्टियों और सिगड़ियों में जलाने के काम आता है। इन से बची हुई राख खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है। वनों से शीशम, सागवान व देवदारु की लकड़ी प्राप्त होती है जो फर्नीचर, रेल के डिब्बों आदि के उपयोग में आती है। इसके अतिरिक्त तरह तरह की वस्तुएं तेल, लाख, गोंद, चन्दन की लकड़ी, कत्था, कागज और रस्सियाँ बनाने के लिए सवाई, भाबर और रबर आदि कितनी ही अन्य उपयोगी वस्तुएं वनों से प्राप्त होती हैं।

जलाने की लकड़ी के अभाव में किसान लोग गोबर को जलाते हैं जो उनके लिए ईंधन से कहीं अधिक मूल्यवान है। यदि ईंधन पर्याप्त मात्रा में मिलता रहे तो गोबर को खाद के काम में लेकर देश की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है।

वनों से किसानों को पशुओं के लिए चारा मिलता है। वह पशुओं के लिए चरागाह के काम आते हैं। भारत के वन विभाग के कुछ भाग चराई के लिए किराये पर उठा दिये जाते हैं। इनसे सरकार को 19-7-48 में 10 करोड़ की आय हुई थी।

वृक्षों की सघन छाया की यह विशेषता है कि गर्मी के दिनों में शीतलता, सर्दी के मौसम में तपश और वर्षा में ऋतु के अनेसार लाभ पहुँचाती है। इनके नीचे साधु सन्त अपनी धुनि रमाते हैं और मुसाफिर विश्राम करते हैं। पक्षी अपने घोंसले बनाते हैं। पक्षियों का भी मनुष्य जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि वह पेड़ पौधों को नष्ट करने वाले कीड़े-मकोड़ों को खाकर फसल की रक्षा करते रहते हैं। गिद्ध मरे हुए पशुओं के माँस को खा जाते हैं। यदि पशुओं का माँस सड़ता रहे तो बीमारी पैदा होने का भय रहता है। पेड़ों के अभाव में पक्षियों का भी अभाव हो जाता है।

इन्हीं लाभों को देखते हुए भारतीय संस्कृति में वृक्षों को देवता के रूप में माना जाता है और कई की तो पूजा भी की जाती है। पीपल को हिन्दू लोग जल चढ़ाते हैं और स्त्रियाँ धागा बाँधती, परिक्रमा व अन्य प्रकार से पूजा करती हैं। पीपल की छाया स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है और उसके फूलों में सन्तानोत्पादन की बड़ी शक्ति है। वैशाख ज्येष्ठ मास में जब फल लगता है तब चिड़ियाँ उस फल को खाकर शीघ्र ही गर्भ धारण कर लेती हैं। पीपल के फल खाने से बन्ध्या को भी पुत्र होता है। इसकी छाल तथा दूध दोनों औषधि के काम में आते हैं। इस वृक्ष से सब से अधिक ‘नाइट्रोजन’ निकलती है जो जीवन के लिए सब से अधिक उपयोगी गैस है। इस गैस के बिना मनुष्य क्षणभर के लिए भी जिन्दा नहीं रह सकता। अशोक की छाल बड़ी संकोचक और गर्भाशय के रक्त स्राव को रोकने की विशेष औषधि है। आँवले में अद्भुत रासायनिक शक्ति है। मस्तिष्क के लिए इसका मुरब्बा बहुत उपयोगी है। नीम की रोग निवारक शक्ति तो जगत् प्रसिद्ध है। आम तो फलों का सिर-मौर है। तुलसी को चिकित्सा जगत् में एक आश्चर्यजनक बूटी के रूप में पाया गया है। यह न केवल चिकित्सा की दृष्टि से वरन् सूक्ष्म आध्यात्मिक तत्वों के कारण भी मानव जाति के लिए परम कल्याणकारी है। गेंदा से जलन और दाह दूर होते हैं। इसी प्रकार से प्रत्येक वृक्ष में कुछ न कुछ उपयोगिता है। वृक्षों से उपरोक्त लाभों को देखते हुए ही हमारे धर्म-शास्त्रों में इसका बहुत पुण्य माना गया है।

पेड़ों की आवश्यकता को अनुभव करते हुए भारत सरकार ने भी इस ओर ध्यान दिया है। इसी उद्देश्य से श्री के.एम. मुँशी ने बन महोत्सव को विशेष प्रोत्साहन दिया था। यह महोत्सव वर्षा ऋतु में एक सप्ताह के लिये मनाया जाता है जिसमें सरकारी कर्मचारी और जनता के व्यक्ति पेड़ लगाते हैं। सरकार ने अधिक वृक्ष लगाने वालों को पुरस्कार भी घोषित किये हैं।

‘राजेन्द्र शील्ड’ वन महोत्सव में सब से अधिक वृक्ष लगाने वाले जिले को दी जाती है। ‘जवाहर शील्ड’ सब से अधिक पेड़ लगाने वाले विश्वविद्यालय को। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस ओर अधिक ध्यान दिया है। उसके द्वारा इटावा और गोवर्धन जि. मथुरा में एक-एक वन लगाया जा चुका है आगरा जिले में कई सौ मील लम्बा बन बनाने की योजना है। अन्य प्रान्तों में भी इस दिशा में काम हो रहा है। परन्तु फिर भी सरकार को इस ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि अनुमान है कि भारत में 281 लाख वर्ग मील में वन हैं। यह देश के क्षेत्रफल का कुल 22.3 प्रतिशत है जहाँ सोवियत रूस में प्रत्येक व्यक्ति के पीछे जंगल का क्षेत्र फल 3.5 हेक्टेयर (1 हेक्टेयर=2. 47 एकड़) और अमरीका में 1.8 हेक्टेयर बैठता है वहाँ भारत में यह केवल 02 हेक्टेयर पड़ता है।

हमारे ऋषियों ने वृक्षों की उपयोगिता को बहुत समझ कर इसे त्यौहार रूप में, सामूहिक रूप में मनाने का आदेश दिया है कि जब वर्षा भली प्रकार आरम्भ हो जाय तो उपयोगी वृक्षों को लगाया जाना चाहिए। आज हमारी पूर्व परम्पराएँ प्रायः समाप्त होती जा रही हैं। उनको हमें फिर में कार्य रूप से लाना है। अ. भा. गायत्री परिवार भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के महान लक्ष्य को लेकर चल रहा है उन्हें त्यौहारों की महत्ता को पुनः जाग्रत करना है गायत्री परिवार शाखाओं को चाहिए कि वह इस दिन सामूहिक रूप से वृक्षारोपण करें। अपने घर में तुलसी के वृक्ष लगा कर अन्य व्यक्तियों को भी इसकी प्रेरणा देनी चाहिए। पीपल बरगद जैसे बड़े पेड़ लगा कर उनकी रक्षा व पानी डालने के कार्य के लिए सामूहिक रूप से भार लेना चाहिए। इस अवसर पर सभी शाखाओं में सत्संग हवन होने चाहिएं और लोगों को इसके लाभों से जानकारी करानी चाहिए। इस विषय पर प्रवचन भी होने चाहिएं। यदि प्रवचन का प्रबन्ध न हो सके तो इस लेख को ही सुना देना चाहिए।


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