जीवन को पहचान (kavita)

August 1959

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जीवन को पहचान, साथी। भजले श्री भगवान, साथी॥

तू कहता यह मिट्टी है तन क्या मिट्टी होती है चेतन? सोच अरे नादान, साथी ॥1॥

तेरे मन मन्दिर में ईश्वर अजर अमर अविनाशी प्रियवर जान सके तो जान, साथी ॥2॥

समय नदी में बहे न जा तू चीर धार बढ़ मंजिल पा तू निज बल का कर ध्यान, साथी ॥3॥

जिसने निज जीवन को जाना उसको कठिन हुआ क्या पाना शाप हुए वरदान, साथी ॥4॥

जो कुछ हुआ सो हो जाने दे अब न व्यर्थ श्वासें जाने दे गति में है भगवान, साथी ॥5॥

—त्रिलोकीनाथ ब्रजवाल


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