गंगा की महिमा

August 1959

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(श्री रामस्वरूप शास्त्री)

अपने वैदिक धर्म में गायत्री, गीता, गौ के साथ ही गंगा का विशेष स्थान माना जाता है। कुछ समय पूर्व जो देशी व विदेशी लोग हमारी मान्यताओं की खिल्ली उड़ाया करते थे और उनका विश्वास था कि हिन्दू-धर्म मिथ्या रूढ़ियों अन्धविश्वासों पर आधारित है। आज वही व्यक्ति जिन्होंने हमारी मान्यताओं को ज्ञान-विज्ञान की कसौटी पर कसा, आश्चर्यचकित हो हमारी ओर देख रहे हैं। अन्य बातों पर विचार न करके आज केवल गंगा के विषय में कुछ विचार प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनसे पता चलेगा कि हमारी मान्यतायें कितनी दूरदर्शिता व सत्य पर आधारित है?

श्री पं॰ राज जगन्नाथ जी कहते हैं “ पतन्ती स्वर्लोकादवीन तल शोकापहृतये” कि पवित्र सुरसरि का संसार के शोक शमन करने हेतु पृथ्वी पर अवतरण हुआ है।” कितनी सत्योक्ति है, पं॰ राज की! संसार का कोई दुःख चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो, चाहे आर्थिक हो, गंगा माता की कृपा से अवश्य नाश हो जाता है। साधारण नदी भी दुर्भिक्ष से कुछ न कुछ रक्षा करती है, शुद्ध वायु संचार द्वारा स्वास्थ्य प्रदान करती है, आप विचारें कि गंगा माता जो भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक— भारत वसुधा को हरित, पल्लवित, पुष्पित करती हुई जो शक्ति प्रदान करती है उसकी उपमा क्या कोई है? यहीं तक नहीं अपितु जब रेलों का बाहुल्य अपने यहाँ नहीं था तो नौका द्वारा ही व्यापार कार्य चलता था, नदियों में सब से विशेष हाथ गंगा का है। गंगा उतनी ही पुरानी है जितनी हमारी संस्कृति। आदि कवि बाल्मीकि जी “मातःशैल सुता सपत्नि वसुधा शृंगार हारावलि” का पाठ करते हुये कितना सुन्दर चित्र खींच रहे हैं। हिन्दुओं का यह विश्वास कि गंगा हमारी माता है कितना स्पष्ट सत्य है? जिस प्रकार माता योगक्षेम की चिन्ता करती, अमृत की भाँति पयपान कराती है, क्लेशों को दूर करती है, क्या गंगा माता इन बातों में किसी माता से कम है?

प्राच्य विद्वानों की दृष्टि में —हमारे यहाँ आज से 2000 वर्ष पूर्व महर्षि-चरक ने यह घोषणा कर दी थी कि गंगाजल पथ्य है। “औषधि जाह्नवी तोयं” गंगाजल औषधि है इसकी समता संसार की कोई औषधि नहीं कर सकती। चक्रपाणि दत्त ने 1060 वर्ष पूर्व ही खोज करके बताया था कि गंगाजल स्वास्थ्य वर्धक है। भोजन कुतूहल (भण्डार कर ऑरिएंटल इन्स्टीट्यूट) में गंगाजल श्वेत, स्वादु, स्वच्छ, रुचिकर, पथ्य, भोजन पकाने योग्य पाचक शक्ति वर्द्धक और बुद्धि को बढ़ाने वाला बताया गया है। इन प्राच्य विद्वानों के खोजों के अतिरिक्त आज भी शतशः जीवन से निराश व्यक्ति जिन्हें डाक्टरों वैद्यों ने असाध्य घोषित कर दिया गंगा माता की शरण में गये और स्वस्थ होकर लौटे, पर्वत शिखरों से जड़ी बूटियों का स्पर्श करता हुआ जल यहाँ आते-आते काफी दूषित हो जाता है, फिर भी साधारण जल से कई गुना स्वास्थ्यप्रद होता है अतः गंगा जल एक अनुपम पेय है संसार में कहीं उसकी समता नहीं।

पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि में-डा॰ आर॰ सी॰ नेल्सन एम॰ डी॰ का कथन है कि “नालियों का जल, शव, कूड़ा करकट भी गंगा में बहाया जाता है, इस पर भी एक अद्भुत बात है कि कलकत्ते से इंग्लैंड जाने वाले जहाज इसी गंगा के एक मुहाने हुगली नदी का मैला जल लेकर प्रस्थान करते हैं और वह जल इंग्लैंड तक बराबर ताजा बना रहता है। इसके प्रतिकूल जो जहाज इंग्लैंड से भारत आते हैं वह लन्दन से जो जल लेकर चलते हैं वह बम्बई तक ताजा नहीं रहता इन जहाजों को पोर्ट सईद स्वेज व अदन पर फिर ताजा पानी लेना पड़ता है”।

विज्ञानाचार्य श्री हैनवरी हैकिंस जो किसी समय उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के रसायन परीक्षक थे, अपने वैज्ञानिक यन्त्रों द्वारा परीक्षण करके सिद्ध किया है कि गंगाजल में हैजे के कीटाणु नष्ट करने की प्रबल शक्ति विद्यमान है। उन्होंने काशी जाकर गंगा जल की परीक्षा की और देखा कि गन्दे नालों के कीटाणु गंगाजल में मिलने के पश्चात् नष्ट हो गये। इसका समर्थन पैरिस के सुविख्यात डॉक्टर मि॰ डेरेल ने भी किया है। हैजे और आँत से मरे व्यक्तियों के शवों की जो गंगा में फेंक दिये गये थे उक्त डॉक्टर महोदय ने कुछ ही फुट नीचे शवों के पास जहाँ कीटाणुओं की आशा थी-जाँच की एक भी कीटाणु नहीं पाया।

डॉ॰ कहाविरा ने अपने प्रयोग व परीक्षण द्वारा सिद्ध किया कि गंगा जल से सन्निपात ज्वर और संग्रहणी नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार प्रमुख अंगरेजी दैनिक लिखता है कि “गंगा जल में रेडियम के समान वस्तु है, जिसमें दुष्ट व्रण नष्ट करने की अद्भुत शक्ति है।”

फ्रांसीसी यात्री टैवरनियर अपनी यात्रा विवरण में लिखता है “कि गंगा जल में जो विशेषतायें पाई जाती हैं उनके कारण अनादि काल से राजाओं से लेकर निर्धनों तक में इसका प्रयोग होता आया है। मुस्लिम शासन काल में भी बादशाहों के महलों में गंगाजल का ही प्रयोग होता था।”

मुसलमानों की दृष्टि में—इब्नबतूता ने जो चौदहवीं शताब्दी में भारत आया था लिखा है कि सुलतान अहमद तुगलक के लिए गंगाजल बराबर दौलताबाद जाया करता था। अबुल फजल ने “ आईने अकबरी” में लिखा है कि “बादशाह अकबर गंगाजल को अमृत समझते हैं और उसके आने का प्रबन्ध रखने के लिये उन्होंने कई योग्य व्यक्तियों को नियुक्त किया हुआ है, वह घर में या यात्रा में गंगाजल ही पीते हैं। खाना बनाने के लिये वर्षा जल या यमुनाजल जिसमें गंगाजल मिला दिया जाता है काम में लाया जाता है।”

डॉक्टर वर्नियर जो 1759 से 67 तक भारत में रहा, जो शाहजादा दारा शिकोह का चिकित्सक था अपने यात्रा विवरण में लिखा है “बादशाह औरंगजेब के लिये खाने-पीने की सामग्री के साथ गंगाजल भी रहता है, प्रतिदिन नाश्ते के साथ एक सुराही गंगाजल भेजा जाता है।”

कप्तान एडवर्ड मूर ने, जिसने टीपू सुलतान के साथ युद्ध में भाग लिया था लिखा है कि सन्नवर के नवाब केवल गंगाजल ही पीते थे। प्रसिद्ध इतिहास कार श्री गुलाम हुसैन ने बंगाल के इतिहास रियाजुस सलातीन में गंगा जल की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

उपरोक्त प्राच्य पाश्चात्य तथा मुस्लिम विद्वानों की सम्मतियाँ तथा प्रयोगों से यह भली भाँति स्पष्ट हो जाता है कि गंगा जल स्वास्थ्य वर्द्धक तथा रोगनाशक शक्ति में अपूर्व क्षमता रखता है। अब और आगे बढ़कर इस बात पर भी विचार करिये कि अपने यहाँ “गंगा गंगेति यो ब्रूयात् योजनानाँ शतैरपि” कहा गया है, और यह भी कहा है कि गंगा से पापी भी पवित्र हो जाते हैं, इसमें भी कुछ सत्योक्ति है या नहीं? देखिये पाश्चात्य विद्वान इस विषय में क्या कहते हैं? डॉ॰ रिचर्डसन का कहना है कि “गंगा-गंगा कहने और उसके दर्शन करने मात्र से मानव हृदय पर अत्यन्त उत्तम प्रभाव पड़ता है”। प्रसिद्ध संसार यात्री मार्कटुइन ने अपनी संसार यात्रा में लिखा है कि “गंगाजल कीटाणु नाशक तथा शुद्ध पवित्र है यही कारण है इसके पीने और स्नान करने से पापी मनुष्य के विचार भी शुद्ध और पवित्र हो जाते हैं।”

उपरोक्त उद्धरणों से विशेष कुछ कहने को स्थान ही नहीं रहता, आज संसार धीरे-2 हमारी मूल भूत मान्यताओं को मान कर उन ऋषियों के चरणों में श्रद्धावनत हो रहा है जिनकी तपस्या व खोजों के परिणामस्वरूप हमें यह रत्न मिले हैं। आइये हम सब भी गंगा माता से प्रार्थना कर कुछ ऋण से उऋण हों—

त्वत्तीरे वसतस्त्वदम्बु पिवतस्त्वद्वीचिषुप्रेंखत। स्त्वन्नामस्मरतस्त्वदर्पितदृशः स्यान्मेशरीरव्ययः॥


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