मिट्टी की प्राकृतिक चिकित्सा

April 1953

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(श्री डाँ. ज्ञानचन्द जी)

मिट्टी प्रकृति की मुफ्त दवा है, जो सबको घर बैठे मिल सकती है। जिस मिट्टी का प्रयोग हम चिकित्सा में करें वह बिलकुल स्वच्छ, ताजी और दुर्गन्ध रहित होनी चाहिए। उसे साफ करके प्रयोग में लेनी चाहिए। मिट्टी चार रंग की होती है- काली, पीली, सफेद और लाल।

काली मिट्टी विष को हरने वाली है। सब प्रकार के विष को तत्काल नष्ट करके शरीर को स्वस्थ करती है। साँप, बिच्छू, ततैया, पागल कुत्ते आदि के काटे जहर को दूर करने में इसका प्रयोग लाभकारी है। साँप के काटे में रोगी का मुँह खुला छोड़ कर शेष सारा शरीर आँगन में गड्ढा खोद कर मिट्टी से अच्छी तरह दबा देना चाहिए। थोड़े समय का काटा रोगी 2-3 घण्टे में तथा बहुत अधिक देर का मरणासन्न रोगी 24 घण्टे में बिलकुल स्वस्थ हो जायगा। विष खा लेने, बिजली गिर जाने, हैजा अथवा मोतीझरा होने पर रोगी के गर्दन का भाग बाहर रखकर शेष गड्ढे में इसी प्रकार दबा देना चाहिए। परन्तु यह ध्यान रहे कि जिस जमीन में रोगी को दबाया जाय, वह गरम या सूखी न हो बल्कि गीली और ठण्डी होनी चाहिए। ततैया, मधुमक्खी आदि कम विषैले डंक लगने पर तमाम शरीर को मिट्टी में दबाने की आवश्यकता नहीं, बल्कि जिस स्थान पर डंक लगा हो, उसी स्थान को जमीन में दबाना चाहिये या उस पर गीली मिट्टी की पुल्टिस बाँधना चाहिए। कुत्ते के तुरन्त काटे में भी दंशित भाग को मिट्टी में दबाना या पुल्टिस बाँधना काफी होगा।

शरीर पर कुष्ठ के दाग हर एक प्रकार के फोड़े, फफोले आदि चमड़ी के रोगों के लिए गीली मिट्टी एक बहुत ही उत्तम प्राकृतिक दवा है। क्योंकि शरीर की मिट्टी सड़ जाने से ही उसमें कुष्ठ आदि रोग होते हैं और इसीलिए सड़ी मिट्टी पर नई मिट्टी पड़ने पर घाव अच्छे हो जाते हैं। चमड़ी के रोग होने का मूल कारण यह है कि रक्त में अनेक प्रकार के दुर्गन्ध युक्त विषैले तत्व संचित हो जाते हैं। वे गीली मिट्टी के लेप से अच्छे हो जाते हैं। क्योंकि अन्दर के भागों में इकट्ठे हुए दोषों को बाहर निकालने में मिट्टी अद्भुत शक्ति रखती है।

गरमी की सूजन, मस्तिष्क और नेत्रों का विकार, प्रदर और प्रमेह आदि विजातीय द्रव्यों से उत्पन्न रोगों के लिए गेरुआ इट जैसी लाल मिट्टी काम में लायी जाती है।

सब प्रकार के चर्म रोग, हथियारों के घाव, रक्त, विकार, नासूर, फफोले, गाँठ, कोढ़, हड्डी का टूटना, बादी का दर्द आदि सम्पूर्ण दर्दों में मिट्टी बहुमूल्य औषधि साबित हुई है। इन रोगों में मिट्टी की पुल्टिस बाँधनी चाहिये। उसकी विधि यह है-काली या चिकनी मिट्टी बारीक छलनी में छानकर ठण्डे पानी में भिगोकर और उसे आटे की तरह गूँथ कर घाव पर रोटी सी बनाकर रख देना और गहरा घाव हो तो घाव में भर देना तथा साफ कपड़े की पट्टी बाँध देनी चाहिए। कुछ डाक्टरों की राय है कि घाव और मिट्टी के बीच में कपड़ा रख देना चाहिये। मिट्टी स्वच्छ और गन्दगी से रहित होनी चाहिये। यह मिट्टी दिन में दो बार बदलनी चाहिये। पेट, छाती, आँख, गला, गाल, कनपटी, मूत्राशय, जिगर और पीठ आदि भागों पर जहाँ दर्द और सूजन हो वहाँ गीली मिट्टी रखकर ऊपर से पट्टी बाँध देनी चाहिये। मिट्टी ठीक दर्द की जगह पर हो। यदि शरीर में गर्मी कम हो तो ऊपर ऊन की पट्टी भी लपेटी जा सकती है। पेडू और पेट शरीर के सब रोगों का मूल आधार है। गरमी की किसी प्रकार की बीमारी होने पर इन स्थानों पर मिट्टी की पुल्टिस बाँधने से लाभ होता है। रोग और रोगों की स्थिति देखकर दो चार घण्टे तक मिट्टी रहने दी जा सकती है। मिट्टी यदि जल्दी नर्म हो जाय, तो बदली जा सकती है। दाँत के दर्द में गाल के बाहर दूखती जगह पर मिट्टी की पट्टी बाँधनी चाहिये। पट्टी खोलने पर सूखी मिट्टी के कुछ कण किसी अंग या घाव में लगे रहें और छुटाने में तकलीफ हो तो लगा रहने दो, कुछ हानि नहीं।

सिर के दर्द में गर्दन और गले में बाँधनी चाहिये। गठिया और लकवे के रोगी को कुछ गर्म बालू में गर्दन तक दबा देने से बड़ा लाभ होता है। चिकनी मिट्टी से दूषित शरीर को कई बार रगड़ कर धोने से चमड़ी नरम, निर्मल, सुन्दर एवं रोग रहित हो जाती है। इस काम के लिए मुल्तानी मिट्ठी ठीक है, इसका उपयोग बढ़िया से बढ़िया साबुन से भी अधिक लाभदायक है। यदि स्त्रियाँ इसी से सिर धोती रहें तो उनके बाल कभी कमजोर तथा सफेद नहीं पड़ सकते हैं।

लू लगने पर पीली मिट्टी में पानी छिड़क कर लेट जाना चाहिए। और कुछ दिन तक पीली मिट्टी के ऊपर ही खाट बिछाकर सोना चाहिये। गर्मी के दिनों में आँगन में पीली मिट्टी डलवा कर खूब छिड़काव करो तो उसमें से सुगन्ध बहेगी। उस हवा में बैठे रहने से नेत्र, मस्तिष्क और मन को अतीव शान्ति प्राप्त होती है। गोबर में पीली मिट्टी मिलाकर लीपने में यही वैज्ञानिक आधार है। गोबर रोग उत्पादक कीटाणुओं को नष्ट करता है और मिट्टी शरीर को स्वास्थ्यप्रद वायु प्रदान करती है।

गोबर का वैज्ञानिक अन्वेषण अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चूल्हों में जो रोटी सिंकती है वह अधिक सुपाच्य, मधुर, पौष्टिक और गुणकारी होती है। कोयलों अथवा लकड़ी की सिकी रोटी वैसी नहीं होती।

कल्प क्रिया में तीन कोठरी कच्ची मिट्टी बनाकर उसमें डेढ़ मास पर्यन्त रहना पड़ता है। आयुर्वेद शास्त्र में तीनों कोठरियों के निर्माण का विस्तृत वर्णन है जिसमें कच्ची मिट्टी की विशेषता बार-बार बताई गई है। काली मिट्टी के छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़कर एक हाथ मोटी दीवार बनानी चाहिये। उसके अन्दर लेटे रहने के लिए काली मिट्टी का ही चबूतरा भी बनाना चाहिये। डेढ़ मास तक काली मिट्टी के वायु कण मनुष्य शरीर पर अपना चमत्कारिक प्रभाव करते हैं, फेफड़े शुद्ध होते हैं, जरा अवस्था दूर होती है, शरीर के यौवन अवयव पुष्ट होकर फिर प्रकट होते हैं।

हिस्टीरिया, भ्रम, मूर्छा आदि मानसिक रोगों में भी मिट्टी सफल औषधि है। ऐसे रोगी को हरियाले स्थान में रखना चाहिये। पीपल, बड़ और नीम के सघन वृक्ष हों, उनके बीच में थोड़ा मैदान हो, जिसमें एक-एक गज गहरी पीली मिट्टी बिछी हो, फैली मिट्टी तथा फूस के छप्परों की एक छोटी सी साफ हवादार खुली कोठरी हो। कोठरी की दीवारों पर प्रेम चित्र टंगे हो। दीवार के पीछे सितार, बाजा तथा मधुर रेकार्ड बजने का प्रबन्ध हो। रोगी के निद्राकाल में सितार की मीठी झंकार रोगी की व्याधि को हरती है। उसके सम्मुख प्रेम और आनन्द की बातें करनी चाहिये। मैदान की मिट्टी को ठंडे जल से छिड़कते रहना चाहिये। यदि सम्भव हो और विशेष गर्मी के दिन हों तो खस के दस-बीस पौधे जड़ समेत वहाँ लगा देने चाहिये खुली चाँदनी रात में रोगी को मिट्टी पर नंगे पैर टहलने का अवसर देना चाहिए। मिट्टी के ढेले को हाथ में लेकर वह सूँघे तो भी अच्छा है। अच्छा तो यह है कि रोगी के समवयस्क मित्रों को ही उसके पास अधिक बने रहने दिया जाय। उसे कठोर पीड़ा पहुँचाने वाली, भूली हुई बात याद नहीं दिलानी चाहिये। उसे ऐसा लगना चाहिए कि संसार सुन्दर है, संसार में आनन्द और प्रेम है।

अनिद्रा रोग के लिए भी यही उपचार करना चाहिये। इसके खाट के चारों और खस की जड़ों को डाल देना चाहिये जिससे जड़ में लगी मिट्टी की भीनी सुगन्ध उसके दिमाग में पहुँचे। रोगी को छेड़ना, चिढ़ाना या उससे दुःखद बातें नहीं करनी चाहिये।

अनेक रोगों में मिट्टी की पुल्टिस बाँधने की आवश्यकता नहीं होती। केवल सेंकने से ही लाभ होता है। सेंकने की विधि यह है कि मोटी फला लेन या नर्म कम्बल का टुकड़ा लेकर उसमें गर्म-गर्म मिट्टी को भरो और तह करके रोगी के अवयव पर सेको। त्वचा न जले इसका ध्यान रखो। कपड़ा सूखा न होकर गीला निचोड़ कर लेना चाहिये। इससे मिट्टी की भाप शीघ्रता से अवयव पर पहुँचती है। बवासीर के रोगी को लाल मिट्टी से सेंकना चाहिये। ईंट को चूल्हें में लाल करके कम्बल के टुकड़े में लपेट कर मस्सा के पास रख दो और अच्छी तरह भाप लगने दो। आधा घण्टे तक सेको। दिन भर में दो-तीन बार ऐसा करना चाहिए। रोगी को इट बुझा मट्ठा देना चाहिए और इट बुझा हुआ पानी भी।

रीढ़ के सेंकने के लिए 6 या 8 इंच चौड़ा और इतना ही लम्बा टुकड़ा फला लेन का लेना चाहिए जितना पूरी रीढ़ तक पहुँच सके। रोगी को औंधा लिटाकर उसकी कमर पर पहले कपड़ा बिछा दो, फिर काली मिट्टी तवे पर गरम करके सुहाती-सुहाती कपड़े के ऊपर बिछा दो और सेक लगने दो। मिट्टी ठण्डी होने पर बदल देनी चाहिए। 15 से 20 मिनट का सेक काफी है। अधिक पीड़ा होने पर अधिक देर तक सेक सकते हैं। परन्तु एक घण्टे से अधिक नहीं सेंकना चाहिए। यदि हर सेंकने से पीछे थोड़ी ठण्डक पहुँचाई जाय तो सेंकने का अधिक गुण होगा। ठंडक पहुँचने की रीति यह है कि किसी पतले कपड़े की दो तह करके उसे ठण्डे पानी में भिगोकर निचोड़ो और सेके हुए अवयव पर लगाओ। फिर शीघ्रता से उठकर अंग को सुखा डालो और तुरन्त ही सेको।

पैरों के सेंकने के लिए टखनों तक कपड़ा लपेट कर पैर नीचे लटका देने चाहिये और गर्म-गर्म मिट्टी में चारों और से दबा देने चाहिए। इसकी गरमी 105 डिग्री की होनी चाहिये। यदि पसीना भी लाना हो तो रोगी को कम्बल ओढ़ा देना चाहिये और बीच-बीच में राई का गरम पानी भी पिलाते रहना चाहिए। सिर पर ठण्डा कपड़ा रखना चाहिए। मिट्टी ठण्डी हो जाय तो बदल सकते हैं। यह सेक भी 30 मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिये। इस क्रिया से सिरदर्द निद्रानाश, जननेन्द्रिय के अवयवों की सूजन, ठंड और शीत, पैर की पीड़ा सब अच्छा हो जायगा।

मिट्टी में रोग नाश की अद्भुत शक्ति है। उससे लाभ उठाकर हम आसानी से निरोग रह सकते हैं।


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