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April 1953

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इस जगत में एक ही बन्धन है वह है कामना। जो मनुष्य कामना के बन्धन से मुक्त हो जाता है वही मुक्ति सुख का अधिकारी है। वह धैर्य से जीवन व्यतीत करता है। न वह चाहता है कि लम्बी आयु भोगूँ, न यह चाहता है अभी मृत्यु हो जाये। जैसे कुम्हार के चक्र से बर्तन उतार लेने पर भी चक्र अवधि न आने तक घूमता रहता है ठीक वैसे ही कर्मों का नाश हो जाने पर भी जीवन मुक्त पुरुष निष्कर्मी होकर जगत में विचरता रहता है।


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