गंगाजल का वैज्ञानिक महत्व

April 1953

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(श्री मदनगोपाल सिंहल)

हमारे धर्मशास्त्रों में गंगा-जल की बड़ी महिमा गाई गई है। यहाँ तक कहा गया है कि गंगा-जल के स्पर्श मात्र से ही बड़े-से-बड़ा पाप नष्ट हो जाता है। अनेक धर्मवेत्ताओं का कथन है कि गंगा-जल में जीवन देने की सबसे अधिक शक्ति है। इसके द्वारा मनुष्य अपने अन्तःकरण को पवित्र करने में समर्थ होता है।

धर्म ही नहीं किन्तु आयुर्वेद की दृष्टि से भी गंगाजल में जो गुण पाए जाते हैं। उन्हें देखकर भी चकित रह जाना पड़ता है। चरक ने जिसका काल आज से दो हजार वर्ष पूर्व है- गंगाजल को पथ्य माना है। चक्रमणि दत्त ने भी, जो सन् 1060 के लगभग हुए हैं, इसका समर्थन किया है। ‘भण्डारकर ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट’ में एक प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थ है ‘भोजन कुतूहल’। उसमें गंगाजल की उपयोगिता बताते हुए लिखा है- ‘गंगाजल श्वेत, स्वादु, स्वच्छ, रुचिकर, पथ्य, भोजन पकाने योग्य, पाचक शक्ति बढ़ाने वाला और बुद्धि को तीव्र करने वाला है।’

यही नहीं अपने यहाँ गंगाजल के स्वास्थ्य संबंधी गुणों पर इससे भी कहीं अधिक बल दिया गया है और अब तो विज्ञान की कृपा से गंगाजल का महत्व भारत से बाहर भी प्रकाशित हो उठा है और इस जल के गुणों पर मुग्ध होकर विदेशियों ने भी इसे अपनाना प्रारम्भ कर दिया है।

आज के विज्ञान का परीक्षण यह सिद्ध कर चुका है कि गंगाजल में शरीर की शक्ति बढ़ाने की अपूर्व शक्ति है और इसका सेवन करते रहने पर रोगी तथा दुर्बल व्यक्ति को डाक्टरी टानिक पीने की आवश्यकता नहीं रहती। इसके पीते रहने पर अजीर्ण रोग, जीर्ण ज्वर तथा संग्रहणी, तपेदिक, दमा इत्यादि रोग शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। प्लेग, हैजा, मलेरिया आदि संक्रामक रोग गंगाजल के सेवन से अदृश्य हो जाते हैं। रोगों के कीटाणुओं को नाश करने की शक्ति इसमें अद्वितीय है।

अपने इस कथन की पुष्टि में हम उन अनेक पाश्चात्य विद्वानों तथा वैज्ञानिकों को उपस्थित कर सकते हैं जिन्होंने गंगाजल की स्थूल शक्ति का निर्णय करके संसार की आंखें खोल दी हैं। डॉक्टर आर.सी. नेल्सन, एम.डी. ने लिखा है- ‘गंगा को हिन्दू पवित्र समझते हैं, उनका कहना है कि गंगा का जल शुद्ध है और कभी दूषित नहीं होता। हम लोग गंगाजल को ऐसा नहीं समझते क्योंकि भारत के प्रधान नगर काशी में ही लाखों मनुष्य अपना धर्म समझकर प्रतिदिन गंगा में स्नान कर उसे गन्दा कर देते हैं। नालियों का जल, शव और कूड़ा-कर्कट भी इसमें बहाया और फेंका जाता है। इस पर एक अद्भुत बात है कि कलकत्ते से इंग्लैंड जाने वाले जहाज इसी गंगा के एक मुहाने हुगली नदी का मैला जल लेकर प्रस्थान करते हैं और यह जल इंग्लैंड तक बराबर ताजा बना रहता है। इसके प्रतिकूल जो जहाज इंग्लैंड से भारत को प्रस्थान करते हैं वे लन्दन से जो पानी लेकर चलते हैं वह बम्बई पहुँचने के समय तक ताजा नहीं रहता। इन जहाजों को पोर्ट सईद, स्वेज व अदन पर फिर ताजा पानी लेना पड़ता है। यह एक अद्भुत सी बात प्रतीत होती है, किन्तु गंगाजल के सम्बन्ध में बैक्टीरिया सम्बन्धी जो अन्वेषण हुए हैं उनसे उपर्युक्त कथन की पुष्टि होती है।’

इतना ही नहीं पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की कसौटी पर कस कर भी गंगाजल की उपयोगिता और महत्ता को आश्चर्यकारी ही पाया है। विज्ञानाचार्यों श्री हैनवरी हैकिंस किसी समय उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश की सरकारों के रसायन परीक्षक थे। आपने गंगाजल का वैज्ञानिक यन्त्रों द्वारा परीक्षण करके यह सिद्ध किया है। गंगाजल में हैजे के कीटों को नष्ट कर डालने की प्रबल शक्ति विद्यमान है। उन्होंने स्वयं काशी जाकर गंगाजल की परीक्षा की और देखा कि काशी के गन्दे नालों का जो जल गंगा में गिरता है उसमें हैजे के लाखों कीट हैं, किन्तु गंगाजल में मिलने के कुछ समय पश्चात ही वे सब नष्ट हो गए। गंगाजल में हैजे के कीटों को नष्ट करने वाली इस बात का समर्थन पेरिस के सुविख्यात डॉक्टर मि. डेरेल ने भी किया है। भारत में जब हैजे और आँव के रोग व्यापक रूप में फैले हुए थे और इन रोगों से मरे व्यक्तियों के शव गंगा में फेंक दिये जाते थे तब उक्त डॉक्टर महोदय ने इन शवों के कुछ ही फुट नीचे गंगाजल की परीक्षा करके देखा कि हैजे और आँव के कीटाणुओं के होने की आशा थी वहाँ वास्तव में उनका एक भी कीटाणु नहीं था।

उक्त परीक्षा के उपरान्त डॉक्टर ने गंगाजल के प्रयोग से एक औषधि का आविष्कार भी किया जिसका नाम ‘बैक्टीरिया फैज’ है और जिसे वर्तमान समय में अनेक रोगों की चिकित्सा में प्रयोग किया जा सकता है।

डॉक्टर कहाविटा के प्रयोगों के अनुसार गंगाजल से सन्निपात ज्वर और संग्रहणी भी नष्ट हो जाते हैं।

अभी कुछ समय हुआ अँगरेजी के एक प्रमुख दैनिक पत्र में प्रकाशित हुआ था कि गंगाजल में दुष्ट व्रण नष्ट करने की अद्भुत शक्ति विद्यमान है। इसका कारण यह बताया गया था कि गंगाजल का प्रवाह जिस भूमि भाग पर से आया है उसमें रेडियम के समान वस्तु है, जिससे प्रवाहित जल में उपयुक्त गुण दीख पड़ता है।

डॉक्टर रिचर्डसन ने तो इससे भी अधिक आश्चर्यमय बात लिखी है और वह यह कि ‘गंगा-गंगा’ कहने और उसके दर्शन करने मात्र से भी मानव हृदय पर अत्यन्त उत्तम प्रभाव पड़ता है।

प्रसिद्ध संसार यात्री मार्क टूइन ने अपनी ‘संसार-यात्रा’ में लिखा है- ‘गंगाजल’ की मैंने स्वयं परीक्षा की है। इसमें बीमारियों के कीटाणुओं को मारने की बड़ी शक्ति है। यह जल अत्यन्त शुद्ध और पवित्र है। यही कारण है कि गंगाजल के पीने और उसमें स्नान करने से पापी मनुष्य के विचार भी शुद्ध और पवित्र हो जाते हैं।’

फ्राँसीसी यात्री टैवनियर ने भी गंगाजल के सम्बन्ध में इस प्रकार का बहुत कुछ लिखा है।

गंगाजल की इन्हीं उपयोगिताओं के कारण हमारे यहाँ अनादि काल से राजाओं से लेकर निर्धनों तक इसका प्रयोग होता आया है। केवल हिन्दुओं में ही नहीं किन्तु मुस्लिम शासन काल में बादशाहों के महलों में भी गंगाजल का ही प्रयोग होता था।

इब्न बतूता ने, जो चौदहवीं शताब्दी में भारत आया था, लिखा है- ‘सुलतान मुहम्मद तुगलक के लिए गंगाजल बराबर दौलताबाद जाया करता था।’

अबुल फजल ने ‘आइने अकबरी’ में लिखा है-

“बादशाह अकबर गंगाजल को अमृत समझते हैं और उसके आने का प्रबन्ध रखने के लिए अनेक योग्य व्यक्तियों को नियुक्त किया हुआ है। वह घर में या यात्रा में गंगाजल ही पीते हैं। खाना बनाने के लिए वर्षा जल या जमना जल जिसमें गंगाजल मिला दिया जाता है काम में लाया जाता है।

बर्नियर ने, जो सन् 1959 से 67 तक भारत में रहा और जो शाहजादा दाराशिकोह का चिकित्सक, था, अपने यात्रा विवरण में लिखा है- ‘बादशाह औरंगजेब के लिए खाने-पीने की सामग्री के साथ गंगाजल भी रहता है। प्रतिदिन सवेरे नाश्ते के साथ बादशाह के पास एक सुराही गंगाजल भेजा जाता है।’

कप्तान एडवर्ड मूर ने, जिसने टीपू सुलतान के साथ युद्ध में भाग लिया था, लिखा है- “सबन्नर के नवाब केवल गंगाजल ही पीते थे।” और भी अनेक मुस्लिम नवाबों तथा बादशाहों का इतिहास पढ़ने से यह ज्ञात होता है कि वे अपने पीने में केवल गंगाजल का ही प्रयोग करते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री गुलाम हुसैन ने बंगाल के इतिहास ‘रियाजुप्त सलातीन’ में गंगाजल की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

फारसी के सुविख्यात कवि श्री आफरी ने भागीरथी के जल का गुणगान करते हुए लिखा है- ‘गंगा के जल में गोता लगाओ ताकि पुण्य का मोती हाथ लगे। यदि तुम अपने होठों को गंगाजल से तर कर लोगे तो फिर महायात्रा (मृत्यु) के वन में प्यास से न तड़पोगे और प्रलय के भयंकर ताप में पड़कर भी न जलोगे।’

कहने का तात्पर्य यह है कि अतीव प्राचीन काल से लेकर आज के विज्ञान प्रधान युग तक गंगाजल के महत्व में कोई कमी नहीं आई है। प्रत्येक जाति और प्रत्येक देश के विद्वानों द्वारा गंगाजल की महिमा मुक्त कण्ठ से गाई गई है।


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