पूर्णाहुति यज्ञ में आप भी भाग लीजिये।

April 1953

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आगामी गायत्री जयन्ती जेष्ठ सुदी 10 (ता. 20-21-22 जून सन् 53) को होने वाले पूर्णाहुति यज्ञ में मथुरा आकर सम्मिलित होने की स्वीकृति बहुत कम लोगों को दी गई है। जितने आवेदन पत्र आये हैं उनमें से दसवाँ हिस्से को भी स्वीकृति नहीं दी जा सकती। कारण यह है कि यज्ञ को तामसिक प्रदर्शन और राजसिक अपव्यय से बचाते हुए, निश्चित मर्यादा में रखते हुए परम सात्विक बनाना है। जिससे ऋषि कल्प ब्रह्म दर्शन उत्पन्न होने का मूल उद्देश्य पूर्ण हो और अनावश्यक भीड़ जमा न हो।

यह ‘पूर्णाहुति यज्ञ’ अपने ढंग का अपूर्व यज्ञ है। (1) 125 लाख हस्तलिखित मंत्रों की स्थापना, (2) 2400 तीर्थों का जल तथा रज का एकत्रीकरण, (3) सहस्रांशु साधना के अंतर्गत देश भर में 125 करोड़ गायत्री जप, 125 लाख आहुतियों का हवन, तथा 125 हजार उपवासों के विशाल आयोजन की पूर्ति (4) गायत्री तीर्थ का निर्माण (5) एक प्रभाव शाली अखण्ड अग्नि की स्थापना (6) हमारे 24 महापुरश्चरणों की आहुति (7) 24 दिन का केवल गंगाजल पर हमारा उपवास (8) 240 नैष्ठिक गायत्री उपासकों का सम्मिलन। वह सभी कार्य ऐसे हैं जिनके द्वारा यह आयोजन छोटा होते हुए भी अपना विशेष रहस्य रखेगा।

इस मार्ग में रुचि रखने वाले प्रायः सभी व्यक्तियों द्वारा इसमें सम्मिलित होने की इच्छा रखना स्वाभाविक है। कितने ही व्यक्ति आर्थिक कारणों से, कार्य व्यस्तता में अवकाश न मिलने से, अस्वस्थता या अन्य विशिष्ठ परिस्थितियों के कारण न आ सकेंगे। कितने ही जो आसानी से आ सकते हैं उनमें से अधिकाँश को मथुरा आने की स्वीकृति नहीं मिली है। इतना होते हुए भी यह यज्ञ इतना सूक्ष्म एवं व्यापक विस्तार का है कि इसमें हर एक श्रद्धालु घर रह कर भी सम्मिलित हो सकता है, भागीदार बन सकता है।

मथुरा में तो एक बहुत ही छोटा सा कार्यक्रम नेत्रों को दिखाई देगा। वस्तुतः इसका रहस्य असंख्य आत्माओं के सच्चे संबंध समन्वय एवं सहयोग में है। युग परिवर्तन के, विश्व कल्याण के जो अत्यन्त प्रभावशाली सूक्ष्म कार्य हो रहे हैं वे किसी एक स्थान तक सीमित नहीं हो सकते, उनका क्षेत्र अत्यन्त विशाल है- लाखों करोड़ों योजनों में फैला हुआ है। उस विस्तृत फैलाव का एक बहुत ही तुच्छ सा प्रस्फुरण मथुरा में होगा। वस्तुतः तो वह भारत भूमि के कोने-कोने तक फैला हुआ है। उसमें असंख्य आत्माएं सम्मिलित हैं। अपने-अपने स्थान पर रहकर ही अधिकाँश महापुरुष इस पुण्य सत्र में अपनी अदृश्य चेतना को सम्मिलित करेंगे। जिन लोगों को मथुरा आने की स्वीकृति नहीं मिल सकी है या जो अपनी परिस्थितियों वश नहीं आ सके हैं। उनके लिए भी पूरा-पूरा अवसर इस यज्ञ में भागीदार बनने का अवसर मौजूद है। वे घर रह कर भी यज्ञ में सम्मिलित होने की भागीदारी को प्रसन्नता पूर्वक प्राप्त कर सकते हैं।

नीचे लिखे कुछ कार्यक्रम प्रत्येक गायत्री प्रेमी के संमुख उपस्थित किये जाते हैं। अब से लेकर यज्ञ के समय तक इन कार्यक्रमों के लिए प्रयत्न किया जाय तो केवल यज्ञ ‘देखने’ के लिए मथुरा आने की अपेक्षा उसका मूल्य, महत्व, महात्म्य, पुण्य और परिणाम निश्चय ही अधिक होगा। कार्यक्रम यह है-

(1) अपने आसपास के क्षेत्र में गायत्री विद्या की जानकारी का अधिक से अधिक प्रसार कीजिए। लोग इस महान् ज्ञान को आज प्रायः भूल गये हैं। आपका कर्तव्य है कि अधिक से अधिक लोगों को गायत्री महाशक्ति का परिचय करावें ताकि उनमें इस मार्ग पर चलने की इच्छा जागृत हो। भारत वर्ष में पुनः गायत्री गौरव की स्थापना करना गायत्री यज्ञ का उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होना- उस यज्ञ में भाग लेने के बराबर है।

(2) जिन लोगों की थोड़ी भी रुचि पूजा उपासना में पावें, उन्हें गायत्री मंत्र लेखन यज्ञ में सम्मिलित करें। चाहे कम से कम 240 मंत्र ही लिखें जाय पर लिखने वालों की संख्या बढ़ाने का अधिक प्रयत्न करना चाहिए। अभी यज्ञ में सवा करोड़ मंत्रों की स्थापना की ही सम्भावना है, पर यदि आप सब लोग इस दिशा में थोड़ा अधिक उत्साह दिखावें तो 24 करोड़ मंत्रों की स्थापना करके गायत्री तपोभूमि को और भी अधिक शक्ति सम्पन्न बनाया जा सकता है। आप इसके लिए प्रयत्न कीजिए।

(3) अपने समीपवर्ती तीर्थों का जल तथा रज संग्रह करें। तथा जिन स्थानों में किन्हीं विशिष्ट आत्माओं ने तपस्या की हो उन स्थानों की मिट्टी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में गायत्री मन्दिर की स्थापना के लिए भिजवाने का प्रयास करें। जल डाक से भेजने में असुविधा हो मिट्टी को जल में भिगोकर सुखा लो इस प्रकार दोनों का सम्मिश्रण हो सकता है। हर तीर्थ का एक-एक छटाँक जल तथा रज पर्याप्त है। जिन स्थानों का जल तथा रज भेजा जाय उनका पूरा परिचय तथा वर्णन भी लिखना चाहिए। आप जिन तीर्थों का जल तथा रज भिजवा सकें उसकी पूर्व सूचना हमें दे दें ताकि उन स्थानों के सम्बन्ध में निश्चिन्त रहा जाय। इस पुण्य कार्य द्वारा गायत्री तीर्थ की स्थापना में आपका भी भाग रहेगा।

(4) हमारे उपवास के 24 दिन में ता0 28 मई से 22 जून तक, यथासम्भव अपनी गायत्री साधना बढ़ा दें। और यज्ञ के तीन दिनों में 20,21,22 जून को दूध फल पर अथवा केवल नमक छोड़ कर उपवास करें। इस प्रकार एक महान व्यापक उपवास में एक भाग आपका भी हो सकता है।

(5) ता0 22 जून को अपने यहाँ एक छोटा या बड़ा सामूहिक गायत्री यज्ञ करें और गायत्री के महत्व पर प्रवचन करायें। हो सके तो कुछ सस्ता गायत्री साहित्य भी वितरण करें। इस प्रकार पूर्णाहुति यज्ञ में आप भी सम्मिलित रहेंगे।

(6) हमारे प्रतिनिधि के रूप में आप अकेले अथवा वहाँ के कुछ अन्य सज्जनों को साथ लेकर एक प्रतिनिधि मण्डल के रूप में अपने आसपास के ज्ञान वृद्ध, आयु वृद्ध लोक सेवी, भगवत् भक्त, पुण्यात्मा सत्पुरुषों के पास जावें। और उनसे हमारे उपवास के लिए, पूर्णाहुति यज्ञ की सफलता के लिए, गायत्री तीर्थ की उपयोगिता के लिए, आशीर्वाद माँगें। ऐसे मौखिक या लिखित आशीर्वाद हमें भेज दें। इन तीर्थ स्वरूप सत्पुरुषों को “गायत्री परिचय” पुस्तिकाएं भेट करके उन्हें गायत्री संस्था का परिचय अवश्य करा देना चाहिए। इसके लिये जितनी पुस्तिकाएं आवश्यक हों बिना मूल्य मँगा लें।

(7) जिन देवियों ने आजीवन अखंड ब्रह्मचर्य का व्रत लिया हुआ हो उनके चरणोदक प्राप्त करें। नैष्ठिक ब्रह्मचारिणी महिलाएं गंगा स्वरूप होती हैं। ऐसी 24 देवियों को ढूँढ़ने और उनका चरणोदक प्राप्त करने के प्रयत्न में आपका सहयोग विशेष रूप से वाँछनीय है।

(8) अपने गायत्री साहित्य को अधिकाधिक लोगों को पढ़ाइये। जो पुस्तकें कम हों उन्हें मँगाकर अपना सैट पूरा कर लीजिए। तथा श्रद्धालु व्यक्तियों को प्रेरणा कीजिए कि वे भी गायत्री साहित्य मँगाकर बार-बार स्वयं पढ़ने का स्थायी लाभ उठावें और अन्य व्यक्तियों को इस साहित्य द्वारा लाभ पहुँचाने का पुण्य लें। ऐसी प्रेरणा देते रहने से आप अनेक व्यक्तियों के सच्चे कल्याण का आयोजन कर सकेंगे।

(9) आपकी पहुँच से अधिक दूर रहने वाले साधना प्रिय, धार्मिक प्रकृति के सज्जनों के परिचय तथा पते हमें भेजिए ताकि उन्हें गायत्री उपासना के लिए प्रेरणा दी जा सके एवं आशीर्वाद प्राप्त किये जा सकें।

उपरोक्त नौ कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए आप किस प्रकार, क्या तैयारी कर रहे हैं इसकी सूचना हमें बराबर भेजते रहना चाहिए। जो जितने अंशों में इन कार्यक्रमों में सहयोग देते हैं वे उतने ही इस पूर्णाहुति यज्ञ एवं तीर्थ स्थापना में पुण्य के भागीदार हो जाते हैं। इस प्रकार कोई भी सज्जन घर रहते हुए भी इन कार्यों में सहयोग करके मथुरा आने की अपेक्षा अधिक भागीदारी प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री महा अभियान का लक्ष कोरे दर्शकों से नहीं वरन् सक्रिय कार्यकर्ताओं से ही पूरा हो सकता है। सर्वत्र कार्य का ही आदर एवं महत्व माना जाता है। दैवी शक्तियाँ भी बातून हुल्लड़ बाजों की अपेक्षा सच्चे, नैष्ठिक, प्रयत्नशील एवं शान्तचित्त उपासकों पर ही विशेष रूप से अनुग्रह करती हैं।

मथुरा आ सकना या न आ सकना कोई विशेष महत्व की बात नहीं हैं। महत्व की बात यज्ञ में सम्मिलित होना एवं भागीदार बनना है। इसके लिए हम उसी धर्मात्मा सत्पुरुषों को आमन्त्रित करते हैं। उपरोक्त 9 कार्यक्रम आपके सामने हैं। आज से ही इनमें लग जाइए और अपने इस महान आयोजन को सच्चे अर्थों में सफल बनाकर परम शान्तिदायक आत्म लाभ प्राप्त कीजिए।

मथुरा पधारने वालों को सूचनाएँ

जिन सज्जनों को यज्ञ में सम्मिलित होने की स्वीकृति दी जा चुकी है, उन्हें निम्न बातें भली प्रकार ध्यान में रखनी चाहिए।

(1) ता. 20, 21, 22 जून का उत्सव है। ता. 19 को शाम तक मथुरा आ जाना चाहिये ताकि 20 को प्रातःकाल के कार्यक्रम में सम्मिलित हो सकें।

(2) इन तीन दिनों में आँधी तथा वर्षा का योग है। इसलिए असुविधा तथा कठिनाई सहने के लिए तैयार होकर आना चाहिए।

(3) तीनों दिन उपवास, भूमि शयन, ब्रह्मचर्य आदि की निर्धारित तपश्चर्याएँ करनी पड़ेंगी। फलाहार की जो व्यवस्था यज्ञ आयोजन की ओर से होगी उसी पर निर्वाह करना पड़ेगा।

(4) वृन्दावन वाली सड़क पर गायत्री तपोभूमि में यज्ञ होगा। पुरुष वहीं ठहरेंगे। जो लोग स्त्रियाँ समेत आवेंगे उनके ठहरने की व्यवस्था शहर की धर्मशाला में कर दी जायगी। छोटे बच्चे वाली स्त्रियों को विशेष असुविधा रहेगी इसलिए वे न आवें तो ठीक है।

(5) हमारे उपवास के दिनों में कोई सज्जन बिना स्वीकृति के मथुरा आकर हमारी शान्ति भंग न करें। जो सज्जन एक सप्ताह पूर्व आवश्यक कार्यों में सहयोग देने के लिए आ सकते हों वे इसकी सूचना देदें। यदि आवश्यकता होगी तो उन्हें बुला लिया जायगा।

(6) ता. 28 मई से 22 जून तक ब्रह्मचर्य पूर्वक रहें।

(7) यज्ञ में सम्मिलित होने वाले सभी सज्जनों की वेशभूषा एक सी रहेगी। धोती एवं कुर्ता सबके सफेद और कन्धे पर पीले रंग का दुपट्टा। पैरों में लकड़ी की चट्टी या खड़ाऊँ।

(8) ऊपर लिखे हुए नौ कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए अधिक परिश्रम करना उन लोगों का विशेष कर्त्तव्य है जिनको मथुरा आने की स्वीकृति मिल चुकी है।

(9) अपने आने की पूर्व सूचना दे देने से मथुरा जंक्शन पर स्वयं सेवक मिल जांयगे जो यथा स्थान पहुँचाने में सहायक होंगे।

स्मरण रखिए यह पूर्णाहुति यज्ञ इस युग का अभूतपूर्व यज्ञ है। इसके परिणाम भी अभूतपूर्व ही होंगे। अलग-अलग 100 प्रयत्नों की अपेक्षा 100 व्यक्तियों का एक सम्मिलित प्रयत्न विशेष कारगर सिद्ध होता है। यह आयोजन भी ऐसा ही है। इसमें भाग लेने वाले अपना और दूसरों अनेक आत्माओं का महान कल्याण कर सकते हैं।


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