जीवन के सच्चे कलाकार बनिए।

April 1953

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए.)

सफल मानव जीवन व्यतीत करना भी एक कला या आर्ट है। कलाकार जिस प्रकार एक साधारण कूची और मिट्टी की प्यालियों के थोड़े से रंग द्वारा एक परम आकर्षक चित्र का निर्माण करता है मालूमी इकतारे, सारंगी, या बाँस की एक पतली सी बाँसुरी के सहारे जिस प्रकार संगीतज्ञ मधुर संगीत की वर्षा करता है, सड़क के किनारे पड़े हुए टेढ़े, तिरछे बेढंगे पत्थर को अपनी छेनी से काट-काट कर जिस प्रकार शिल्पकार उत्तम मूर्ति का निर्माण करता है, या मिट्टी से जैसे मूर्तिकार सुन्दर बर्तनों या खिलौनों का निर्माण करता है, उसी प्रकार मानव जीवन का कलाकार संसार और समाज में उपलब्ध साधारण से उपकरणों द्वारा आनन्दमय जीवन का निर्माण करता है।

मिट्टी, स्वर्ण, लकड़ी, रंग, पत्थर, वाद्ययन्त्र सब निर्जीव पदार्थ हैं। स्वयं इनमें कोई महत्ता, शक्तियाँ आकर्षण नहीं है। ये जड़ पदार्थ हैं जो कलाकार की कला के स्पर्श से जाग उठते हैं। इन तत्वों द्वारा विनिर्मित नाना कलात्मक वस्तुओं में कलाकार के आर्ट, सूझ-बूझ, सौंदर्य, बोध और बुद्धि वैभव का ही चमत्कार है। साधारण वस्तुओं के सहारे भी सुनार, मूर्तिकार, शिल्पकार और संगीतज्ञ चित्रकार इत्यादि नाना प्रकार की एक से एक आकर्षक कलात्मक वस्तुएँ निरन्तर बनाते आ रहे हैं।

जीवन के कलाकार के पास कौन-कौन से उपकरण हैं? उसकी मिट्टी पत्थर क्या हैं? वह किस सोने-चाँदी को पिघला कर आभूषण बनाता है? उसके पास कौन से बाजे हैं जिनमें वह जीवन संगीत उत्पन्न करता है? उसका बचा पदार्थ क्या है? वह किन औजारों की सहायता से अपनी कला का सौंदर्य प्रकट करता है?

जीवन निर्माण और सामग्री

जीवन के शिल्पकार के पास मनुष्य का जीवन, समय, आयु, स्वास्थ्य, गृह सौख्य एवं परिवार इत्यादि वस्तुएँ हैं, जिनमें उसे अपनी कला का प्रदर्शन करना होता है। सच्चे जीवन के कलाकार की कैसी ही परिस्थितियाँ क्यों न हों, वह उन्हें अपने पक्ष में मोड़ने की चेष्टा करता है। नाना प्रतिकूलता, प्रतिघात, संघर्षों के होते हुए भी वह अपनी कला का चमत्कार प्रदर्शित करने लगेगा। वह ऊबड़-खाबड़ मार्ग को समतल बना लेगा, कंटकाकीर्ण स्थान को स्वच्छ, साफ-सुथरा कर लेगा, रेगिस्तान में उद्यान सृष्टि करेगा, जहाँ रास्ता नहीं दीखता, वहाँ मार्ग बना लेगा। बाहर से नरक दीखने वाली विषम परिस्थितियों में स्वर्ग का निर्माण कर लेगा। जीवन के दिन, सप्ताह, मास और वर्ष ये कच्ची धातु हैं, जिन्हें जीवन के शिल्पकार को अपनी कला के स्पर्श से आकर्षक बनाना होता है। महत्व बाह्य भौतिक पदार्थों का नहीं, उसकी कला, जीवन दर्शन, योजना और दृष्टिकोण का है। अपने मानसिक नियन्त्रण, साँसारिक पदार्थों को देखने की रीति सत्य, प्रेम, विवेक तथा धैर्य के चमत्कारी उपयोग द्वारा वह अपनी जीवन-कला का चमत्कार प्रदर्शित करता है।

जिस प्रकार उद्यान का माली अपने हाथ से लगाए हुए पुष्पों का अवलोकन कर आनन्दित होता है, उसी प्रकार जीवन का कलाकार, हृदयरूपी मंजुल उद्यान में ज्ञान, करुणा, प्रेम, सौहार्द, विवेक रूपी पुष्पों को विकसित देखकर आनंदित होता है।

जीवन कला के उद्देश्य

जीवन-कला का उद्देश्य क्या है? सौंदर्य की सृष्टि, नवीनता की उत्पत्ति, सुन्दरता का निरूपण, कम से कम वस्तुओं द्वारा अधिक से अधिक आनन्द उपभोग। जीवन कलाकार उस तथ्य को प्रकट करता है, जो सत्य है, शिव है, सुन्दर है। जीवन कलाकार अपने विघ्न बाधा संकुल इस कुरूप जगत में भी सुन्दर जीवन की सृष्टि करता है। जीवन-सौंदर्य उसका ध्येय है। यह जीवन को सुन्दरतम रूप में व्यतीत करना चाहता है। विषमता, प्रतिकूलता और कठिनाई में भी वह सौंदर्य की आभा निरखता है। जब जीवन क्षितिज पर काले-काले भयंकर मेघ आवृत होते हैं और दुर्भाग्य की बिजली कौंधती है, तब भी वह काले बादलों के किनारे-किनारे दीखने वाली रुपहली क्षीण आभा को देखकर प्रसन्न होता है। आलोचना और टीका-टिप्पणी के काँटों से घिरा रहने पर भी उसे उसके आनंदरूपी पुष्प ही दिखाई देते हैं।

जीवन का कलाकार सच्चे स्थायी सौंदर्य का पुजारी है। यह सौंदर्य कहाँ है? यह सौंदर्य है, उसके उच्च आदर्श में, पवित्रतम उद्देश्यों तथा जीवन के एक सुनिश्चित, सुकल्पित लक्ष्य में। उच्च उद्देश्यों का निर्माण वह पर्याप्त चिन्तन-मनन के पश्चात करता है, किन्तु निश्चयों में ढ़ोला नहीं रहता। अपनी शक्ति से उनमें सौंदर्य भरता चलता है। उसका दृष्टिकोण कम से कम साधनों द्वारा जीवन को सच्चे सौंदर्य से भर लेना है।

आप कहेंगे, ‘सुन्दर जीवन के लिए सौंदर्य-वृद्धि के उपकरण अपेक्षित हैं? असंख्य साज-सामान चाहिए, ढेर के ढेर वस्त्र, टीपटाप की वस्तुएँ, कहीं प्रदर्शन की फैशनेबल चीजें चाहिएं? वास्तव में जीवन को कलाकार के लिए लम्बी-चौड़ी सौंदर्य करने वाली वस्तुओं की आवश्यकता नहीं है। वह साधारण चीजें मालूमी और परिस्थितियों में ही काम चलाता है।

अल्प साधनों द्वारा जीवन-निर्माण

जीवन के सच्चे कलाकार को अधिक साधनों की जरूरत नहीं होती। वह मामूली साधनों और साधारण परिस्थितियों द्वारा ही आनन्दमय जीवन की सृष्टि करता है। छोटी शक्ति और अल्प साधनों द्वारा ही आप अपने कलात्मक दृष्टिकोण को प्रकट करना प्रारम्भ कर दीजिए। यदि आपके पास मनचाही सौंदर्य की नाना वस्तुएं हैं, तो घबराने और निराश होने की आवश्यकता नहीं है। आपके पास जो टूटी-फूटी साधारण वस्तुएँ हैं, अल्प साधन गरीबी की सम्पदा या झोंपड़ी है, उसी के सहारे अपनी जीवन कला के चमत्कारों को प्रदर्शित करना प्रारंभ कर दीजिए।

मिट्टी के दीपक को देखिए। जब चारों ओर घनघोर अन्धकार छाया रहता है, तो दीपक जिसमें छदाम की मिट्टी, अधेले का तेल और दमड़ी की क्षीण बत्ती रहती है- अर्थात् कुल मिलाकर एक पैसे की पूँजी नहीं है- सुन्दर प्रकाश से गृह को जगमग-जगमग कर देता है, तथा अपने शुभ्र प्रकाश से सैकड़ों कार्य सम्पन्न करता है। जब सहस्रों रुपये वाली बिजली क्षण भर में फेल हो जाती है, तो यह मिट्टी का दीपक, यह बिना पूँजी वाला दीपक, प्रकाशमान होता है, अपनी महत्ता प्रकट करता है, लोगों का प्यारा बनता है, प्रशंसित होता है और निज अस्तित्व को धन्य बनाता है। क्या दीपक ने कभी ऐसा रोना रोया है कि मेरे पास इतने मन तेल होता इतने सेर रुई होती, इतना बड़ा मेरा आकार होता, तभी मैं इतना प्रकाश करता?

दीपक को कर्महीन आलसी की भाँति बेकार शेख-चिल्लियों की तरह निरी कपोल कल्पना में समय व्यर्थ नष्ट करने के लिए अवकाश कहाँ? वह तो आज की परिस्थिति, आज की हैसियत तथा अपने सामने मौजूद अल्प साधनों को निरखता है। अपनी उसी दीन-हीन स्थिति का आदर करता है। और अपनी केवल एक पैसे मात्र की छोटी सी पूँजी से कार्य करता है। उसका छोटा सा कार्य है बेशक, किन्तु उस छोटेपन में भी सफलता का उतना ही महत्व है, जितना कि सूर्य के तथा चन्द्र के चमकने की सफलता का है।

फिर, आप अपने अल्प साधनों से क्यों परेशान और चिन्तित होते हैं, अपनी शक्तियों (चाहे वे साधारण ही सही) को देखिए, समझिए, तौलिए अपनी परिस्थिति, हैसियत, औकात को आ किए और अपनी छोटी सी शक्ति से ही कार्य आरम्भ कीजिए, जीवन को सुन्दर और आनन्दमय बनाइए।

इस कुरूपता का परित्याग कीजिए

उन आदतों का परित्याग कर दीजिए, जो असुन्दर, निंद्य और कुरूप हैं। व्यसन तथा व्यभिचार कुरूप और राक्षसी की आदतें हैं। वस्तुतः इन गन्दी आदतों का सहारा न कीजिए। इसी प्रकार नीच विचार रखना एक खतरा है। ईर्ष्या, क्रोध, घृणा, झूठ, छल-कपट और स्वार्थ परता की गन्दी नीति का अवलम्बन लौकिक एवं पारलौकिक दोनों ही दृष्टियों से कुरूप, हानिकारक और दुःखदायी है। भ्रष्टाचार के मार्ग पर चलने वालों को पग-पग का घृणा, अपयश, तिरस्कार, अपमान, उपहास, और अविश्वास का सामना करना पड़ता है। उनको सच्चे मित्र एवं सहयोगियों की प्राप्ति प्रायः असम्भव हो जाती है। बदनाम आदमी सबसे कुरूप है। उसमें निन्दा, द्वेष, चरित्रहीनता की सामाजिक कुरूपता है। ईर्ष्यालु, क्रोधी, कुढ़ने वाला इन भयंकर आवेशों में फँसकर वैसा भद्दा लगता है। ओछी मनोवृत्ति एक ऐसी अग्नि है जो मनुष्य के मन तथा जीवन की समस्त सुन्दरता को भस्मीभूत कर देती है। कुढ़न, द्वेष, ईर्ष्या, अशान्ति सब असुन्दर हैं, जिनके वश में हो जाने से जीव की समस्त कलात्मकता विलुप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति का चित्त सदा मरघट की तरह जलता रहता है।

अतः असुन्दर क्लाविहीन ओछे नीच विचारों का परित्याग करना ही श्रेष्ठ है। इन कुरूप आवेशों में फँस जाने से जीवन निरर्थक, अनुचित, एवं अनुपयोगी कार्यों में व्यतीत हो जाता है।

जीवन का सच्चा कलाकार वह है, जो अपने अल्प साधनों द्वारा ही अपने जीवन को शान्त, संतुष्ट, सरस और सुन्दर बनाता है। उसकी विशेषता उसकी योजना एवं जीवन दृष्टि है, साधना या परिस्थितियाँ नहीं।


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