(श्री मनोहरदास जी अग्रावत)
-स्त्री, तू घर की स्वामिनी बन कर जा और हाँ जितने पुरुष हों उन सबसे रानी की तरह बात कर!
-ऋग्वेद।
-स्त्री जंगल को भी राज महल बना देती है।
-रामायण।
-पिता, भाई, पति और देवर यदि अपनी भलाई चाहें तो उन्हें चाहिये कि वे अपनी पुत्री, नानी, भईया और भाभी का अनादर न करें।
-मनुस्मृति।
-स्त्री का अनादर संसार के सर्वनाश का लक्षण है।
-मनु।
-भली स्त्री संसार का ‘प्रकाश’ और बुरी संसार का अंधकार है।
-उपनिषद्।
-तेरा स्वर्ग तेरी माता के पैरों तले है।
-हजरत मुहम्मद।
-भारतवर्ष का धर्म उसके बेटों के प्रताप से नहीं, प्रत्युत उसकी बेटियों के प्रताप में स्थिर रहा है। यदि भारत की देवियों ने अपना धर्म छोड़ा होता तो यह देश कभी का अपना अस्तित्व खो चुका होता।
-स्वामी दयानन्द।
-जो दूसरों की स्त्री की ओर पाप की दृष्टि से देखता है वह परमात्मा के कोप-कटाक्ष को जाग्रत करता है और अपने लिये नरक का रास्ता पैदा करता है।
-स्मृति।
-किसी भी स्त्री के सतीत्व का अपहरण करने से पूर्व मर जाना अच्छा है। किसी स्त्री को बुरे काम से बचा लेना सबसे बड़ा पुण्य है।
-स्वामी दयानन्द।
सौंदर्य से स्त्री अभिमानित बनती और सद्गुणों से उसकी प्रशंसा होती है, किन्तु लज्जा से वह देवी बन जाती है।
-शेक्सपियर।
-स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर राष्ट्र की उन्नति या अवनति निर्भर है।
-अरस्तू।
-रोमन राष्ट्र अपनी स्त्रियों के साथ, ग्रीक जाति की अपेक्षा अधिक अच्छा बर्ताव करता था। इसी कारण रोमन राष्ट्र ग्रीक से अधिक बलवान! हो गया और ग्रीक को रोम के सम्मुख सिर झुकाना पड़ा।
-गिवन।
-भू मण्डल के प्रत्येक भाग में स्त्रियों पर अत्याचार और उनका अनादर करना असभ्यता का मुख्य चिन्ह समझा जाता है। वहशी और जंगली आदमी ही स्त्री जाति को तुच्छ दृष्टि से देखते हैं।
-राबर्टसन।
-बालक को सुशिक्षण देने के काम में केवल माता जितनी उपयोग में आती है, उतने और अच्छे शिक्षक उपयोग में नहीं आ सकते।
-जार्ज हर्बर्ट।
-अतिशय शुद्ध मन वाली और सुशिक्षिता स्त्री का साथ मिलना इतना बड़ा स्वर्गीय आनन्द है कि उसका वर्णन नहीं हो सकता।
-डिटाफ्वेल।
-बालक का भविष्य में भला या बुरा होना उसकी माता पर अवलम्बित है।
-नेपोलियन।
-परिवार के प्रेम के कारण ही बड़े-बड़े कामों में हाथ डाला जाता है। यदि स्त्री और मित्र का सुख न हो तो बहुत अधिक प्रतिष्ठा पाने पर भी मनुष्य वास्तव में सुखी नहीं हो सकता है।
-गिजो।
-जहाँ स्त्रियों का सत्कार होता है वहाँ ही देवताओं का वास होता है। जहाँ इनका मान नहीं वहाँ की सभी क्रियाएँ निष्फल सिद्ध होती हैं।
-महर्षि व्यास।