दाँतों से अपनी कब्र न खोदिए।

February 1951

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(ले.-श्री वासुदेव शर्मा)

वर्तमान सभ्य समाज की अव्यवस्थित भोजन प्रणाली और भोजनातुरता की भयंकरता से दुखित होकर एक विद्वान ने सत्य ही कहा है कि- “हम अपने दाँतों से अपनी कब्रें खोद रहे हैं।”

बढ़ती हुई विलासिता, मिष्ट और नरम भोजन हमारे दाँतों को रसातल में पहुँचा रहे हैं। जंगली जाति के दाँत आज भी ईर्ष्या की वस्तु है। प्रकृति उनकी रक्षा कर रही है, परन्तु उनमें भी जिन-जिन लोगों के सिर पर सभ्यता, देवी का चक्कर चढ़ गया है उनके दाँत इस देवी की बलि चढ़ रहे हैं। असमय में बूढ़ा बनाने वाले इन दाँतों को क्या कहें, जो जिन्दगी के मजे को किरकिरा कर देते हैं, परन्तु इनका कोई अपराध नहीं। हमें जंगली जातियों से आज बहुत कुछ सीखना है। भले ही हम कितने ही सभ्य बनते जाएं, कितने ही रंग-बिरंगे भड़कदार शीशियों में भरे हुए नये-नये डेन्टल क्रीम, टूथपेस्ट बनाते जायें, परन्तु उनसे हम अपने दाँतों की रक्षा न कर सकेंगे। आज बेचारे टूथब्रश भी असहाय हो अपनी असमर्थता के लिये अत्यन्त दुखित है। न्यूजीलैण्ड के स्कूल मेडीकल सर्विस रिचमन्ड डून डैंटल रिकार्ड में अक्टूबर, 1920 में इन दाँतों के ब्रश और पेस्ट आदि की निरर्थकता पर लिखते हैं- “क्यों हम जनता को दाँतों के मज्जन और ब्रशों के झूठे विज्ञापन दे दे कर ठगते हैं। क्या यह सत्य नहीं है कि इनके द्वारा आज कल कोई भी दाँत का रोगी अच्छा नहीं हुआ? हम क्यों व्यर्थ इनका उपयोग किये जाते हैं। यह कैसी बात है कि जो सज्जन नियम पूर्वक इन ब्रशों और पाउडरों का उपयोग करते हैं वे ही डेंटिस्टों को अच्छी कमाई देने वाले हैं। क्या इनसे हमारे दाँतों के रोग बढ़ नहीं रहे हैं।”

चिन्ता करने की कोई बात नहीं। जो दाँत अभी जुड़ा है, जिसमें अभी जीवन है वह अच्छा हो सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं। होरेस फ्लेवर ने तो संसार को चकित कर दिया। उसके नियम कितने सरल हैं-’खूब चबाओ।’ खूब चबाने के गुण निवर्णनीय हैं। जो भोजन आदि नहीं चबाते उनके दाँत और उनकी जड़ें खुली हुई पायी जाती हैं। दाँतों में खोल, उनकी रंगत पीली व काली, मसूड़े काले, दाँत और मसूड़ों के पाल पर काले कीट की पर्त जमी मिलती है। ये सब अच्छा न चबाने वाले की अवस्थाएं हैं। अच्छा चबाने वालों के दाँत दृढ़, चौड़े, सफेद, चमकीले, मसूड़े लाल रँग के और सब दाँत एक पंक्ति में पाये जाते हैं। बैल, गाय, भैंस आदि पशु बड़े अच्छे चबाने वाले हैं उनके दाँत ऐसे ही होते हैं। क्या वे कभी दाँतौंन करते हैं? सूखी घास को चबाकर उससे पूरे शरीर का पोषण कर लेते हैं। और मनुष्य जाति दूध, घृत मिठाई से पौष्टिक पदार्थों को निगल कर भी भूखों मरती और कृशांगि बनी रहती है। पशुओं को कभी कब्जियत नहीं होती न दस्त ही उनके गुदाद्वार के आस-पास लिपटा रहता है। बारीक चबाने वाले का मल सूक्ष्म चिकना और बँधा हुआ निकलता है तथा एक ही बार में आँत साफ हो जाती है।

खूब चबाने से मीठे, तीखे, चटपटे पदार्थ भी हानि नहीं पहुँचा सकते। कारण कि वे इतने चबाये जाते हैं कि चबाते-चबाते घुल जाते हैं। और उनका मीठापन या चटपटापन सब रोल में मिल जाता है। अब उनका वह प्रदाहीपन या मीठापन शेष रहा ही कहाँ? इससे यह न समझना चाहिये कि इन हानिकारक पदार्थों का भर पेट सेवन किया जाये। अन्य भोजन के साथ और दाँत के स्वास्थ्य के अनुसार ये खाये जायें तो हानि की संभावना कम रहती है। अच्छा चबाना दांतों का बीमा है यह आपको हृदयंगम कर लेना चाहिये।

1-दाँतों में खोल आदि शक्कर-मैदा आदि पदार्थों से होती है अतः इनका सेवन सोच समझ कर करें।

2-अच्छा भोजन न चबाने से दाँत ऊंचे नीचे रहते हैं। पुष्ट नहीं होते और चर्वण करने वाले स्नायु निर्बल पड़ जाते हैं। अतः अच्छा चबाने की आदत डालें।

3-भोजन का अन्त कड़ी रोटी, फल, तरकारी आदि के द्वारा करें।

4-दो भोजन के बीच कुछ न खायें।

5-रात्रि को सोने के पूर्व दूध न पियें, यदि पीना ही हो तो मुँह को नमक आदि के कुल्ले से साफ करना चाहिये।

6-मुँह से साँस लेना छोड़ दें।

7-दिन में दो या अधिक तीन बार भोजन करें।

‘ऐड्स टू फिटनेस’ नामक एक छोटे से पर्चे के द्वारा दन्त-स्वास्थ्य के कुछ सरल और उत्तम नियम जनता में प्रचारित किये गये थे। और 15 मई, 1912 ई. को टाइम्स ने भी विशेष लेख लिख कर जनता का ध्यान इन पर आकृष्ट किया था। उन नियमों का यहाँ देना अत्यन्त लाभकारी होगा।

1-अपने दाँतों की ओर ध्यान दें। शरीर के दूसरे अंगों के समान इन्हें भी व्यायाम की आवश्यकता है। बिना व्यायाम के वे नष्ट हो जाते हैं।

2-बिना व्यायाम के आपके जबड़े भी पूरे विकास को प्राप्त नहीं होंगे। मुलायम भोजन निगलने से दाँतों को व्यायाम नहीं मिलता और न जबड़ों का ही विकास होता है।

3-प्रसिद्ध अमेरिकन होरेस फ्लेचर का किस्सा याद रखें कि वह 40 वर्ष की अवस्था में जीवन से निराश हो गया, उसने बारीक चबाना आरम्भ किया 50 वर्ष की अवस्था में वह बलिष्ठ होने लगा और 59- वर्ष की अवस्था में उसने कई कालेज और यूनिवर्सिटी के शक्ति और सहनशीलता के रिकार्ड तोड़े।

4-यदि फ्लेचरिज्म का पालन पूर्णतया न हो तो जितना पालन हो उतना करने का भरपूर प्रयत्न करना चाहिये।

5-सूखी और अच्छी कड़ी से की हुई रोटी के चबाने के मौके को कभी हाथ से न जाने दें। हलुवा, मिठाई, मुरब्बा कम खायें। फल से भोजन का अन्त करना सीखें। अन्त में रसदार ताजे फल नारंगी आदि के खाने से दाँत प्राकृतिक रूप से अच्छे साफ होते है। प्रत्येक भोजन के अन्त में मुँह को खूब कुल्ले करके साफ करें।

6-भोजन के साथ जितना कम हो सके उतना कम पानी पियें। भोजन में पानी का विशेष भाग रहता है और अच्छा चबाने वाले को पानी की आवश्यकता नहीं रहती।

7-दो भोजनों के बीच के समय में और प्रातः काल उठते ही तथा रात को सोने के पूर्व पानी पीना अच्छा है।

8-मुरब्बे, मिठाई आदि की अपेक्षा शहद, मीठे और ताजे फलों का उपयोग करें और उन्हें अच्छा समझें।

9-माँस खाना भी आवश्यक नहीं है।

10-अचार, खटाई, मसालों का सेवन संयम से करें।

11-जब भूख न हो बिलकुल न खायें और भोजन कर चुकने पर जब-तब पेट में कुछ न कुछ ठूँसा न करें।

12-विशेषकर भोजन करने के बाद बिस्किट, चाकलेट, शक्कर, गोली, मिठाई, दूध, रबड़ी, खोया, चाय आदि नहीं लें। ये वस्तुएं रात को सोने के प्रथम भी न खायें।

13-मिठाइयों की दुकानें, होटल आदि स्वास्थ्य को चौपट कर देने वाले भयंकर शत्रु हैं। जिन कालेजों में ये हों उन्हें इन दुकानों को एकदम हटा देना चाहिए इन नियमों का पालन करने से साधारण रोग जैसे सिरदर्द, दाँत-दर्द, अजीर्ण, जीमिचलाना, उबकाई आना आदी शीघ्र ही दूर हो जाते हैं।

नीम की दातौन दाँतों के लिए अमृत तुल्य है। इसका प्रयोग इस प्रकार किया जावे-

1-दाँतों से चबाकर इसकी अच्छी कूँची बनानी चाहिये।

2-एक गिलास पानी में थोड़ा नमक घोलकर उस पानी के साथ दाँत साफ करें। पानी को मुँह में भर कर नीम की कूँची आहिस्ते-आहिस्ते दाँतों पर फेरनी चाहिये। मैला पानी थूक दें। फिर दूसरा पानी लेकर दाँतों को कूँची से साफ करें।

3-दातौन को दाँतों के बीच अच्छी तरह दबा कर दातौन का दूसरा सिरा हाथ से पकड़ कर बाहर की ओर खींचना चाहिये। इससे दाँतों का व्यायाम होगा। अब उसी प्रकार दातौन को दाँतों में दबाकर अन्दर की ओर धक्का देना चाहिए।

4-दातौन जोर से सब दाँतों से चबायी जानी चाहिए। रस नीचे टपकाना चाहिये।

5-दातौन को चीर कर उसकी एक चीप से दाँत का मैल निकाल डालें।

6-नमक के पानी से कुल्ले कर मुँह साफ करें। उँगली को मसूड़ों पर फेरे जिससे वे मजबूत हों।

7-सावधानी रहे कि मसूड़ों से खून न आने पाये। आरम्भ में आहिस्ते-आहिस्ते काम लेना चाहिए। बबूल की कूची अच्छी बनती है, यह मसूड़े मजबूत कर मुख के छाले मिटाती है।

प्रातःकाल, दोपहर और सोने के पहले इस प्रकार दाँत साफ करने वाले कभी दन्त रोगी हो ही नहीं सकते। खराब दाँत वालों के दाँत अच्छे हो गये हैं और उन्होंने दाँत के डाक्टरों को आश्चर्य में डाल दिया है। पायरिया रोग तक से मुक्ति मिल जाती है।

एक अमरीकन के बाईस वर्ष की अवस्था में दाँत बिगड़ गये। वह कालेज का एक परिश्रमी विद्यार्थी था। उसे फुर्सत नहीं थी कि वह अपने दाँतों को साफ करें। दाँतों के खराब होने से उसकी स्मरण शक्ति जाती रही। किसी काम में उसका चित्त नहीं लगता था। डॉक्टर ने उसे सलाह दी कि सब दाँत धीरे-धीरे उखड़वा डालों। दाँत को उखड़वा देना और नकली दाँत उस उम्र में बिठाना इस बात की कल्पना से ही उसके रोंगटे खड़े हो गये। क्या वह और किसी उपाय से अपने प्रकृति दत्त दाँतों को बचा नहीं सकता? वह घर आया और शान्त चित्त से विचार करने लगा। उसने दन्त स्वास्थ्य पर बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़े और इस तथ्य पर पहुँचा कि दांतों से काम न लेने से वे निर्बल पड़ जाते हैं और यदि उनसे अच्छा काम लिया जावे तो वे कभी नष्ट नहीं होते। चबाने से दाँतों, के नीचे का मास विभाग और नसों में रक्त संचार की वृद्धि होती है शुद्ध रक्त के संचार से दाँत भी बलवान बनते हैं। अतः उन्हें व्यायाम देना चाहिये। उसने चार कसरतें जो नीचे दी गई है करना आरम्भ किया। इन कसरतों के करने में एक बार में दो से तीन मिनट लगते हैं और दिन में दस बार वह इन कसरतों को करता था। वह लिखता है कि - “पहले महीने तो मेरे दाँत कुछ दर्द करते रहे पर दूसरे महीने से उनका दर्द दूर हो गया। छः महीने बाद जब मैंने डॉक्टर को दाँत दिखाएं तो वह बड़ा विस्मित हुआ और बोला कि तुम्हारे दो तीन दाँत रोगी है शेष सब अच्छे हैं। दो वर्ष के बाद एक भी दाँत खराब न रहा। मेरे दाँत स्वास्थ्य, दृढ़, चमकीले और सफेद हो गये और मेरे स्वास्थ्य में कई गुना अन्तर पड़ गया। इन व्यायामों को मैं दिन में दस बार खास कर भोजन के पूर्व और पश्चात् तथा प्रातः उठते ही और रात को सोने से पूर्व और भोजनों के बीच के घंटों में किया करता था। मैंने धार्मिक रूप से अनिवार्य समझे बिना नागा इन व्यायामों को किया है।”

पहली बात यह है कि मसूड़ों के चारों और खून की अच्छी तरह दौरा हो इसके लिए-

1-झूठमूठ चबाना-मान लीजिए कि कुछ वस्तु मुँह में है। और उसे आप चबा रहे हैं। नीचे के जबड़े को इधर-उधर फेर कर दाँतों पर दबाव दें। सब दाँतों को इस प्रकार व्यायाम दें। नीचे के दाँत ऊपर के दाँतों को हल्के-हल्के दबाएंगे इससे जबड़े और दाँतों के नीचे के गद्दी और नसों में रक्त का संचार होगा। बार-बार इस प्रकार के आने से दाँत की जड़े पुष्ट होंगी और उनका पोषण होगा।

2-अब एक दाँत को उँगली से पकड़कर आगे पीछे धीरे-धीरे हिलाये। इस प्रकार सब दाँतों को बारी-बारी से हिलाओ।

3-उंगलियों के सिरे से मसूड़ों पर धीरे-धीरे रगड़कर मालिश करें। (तैल की जरूरत नहीं है)

4-प्रातः साँय दाँतों को दातौन से साफ करें।

5-पानी के कुल्ले से मुख साफ कर लें।

यहाँ यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि दातौन सबसे अच्छी नीम की होती है। इसलिये यथासम्भव उसी का उपयोग करना चाहिये।


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