महात्मा शेखवादी की सूक्तियाँ

February 1951

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(डा. गोपाल प्रसाद ‘वंशी’, बेतिया)

1- शराब पीने पर बुद्धि का ठिकाना रहना आसान है, पर यदि दौलत पाकर तू मस्त न हुआ तो मर्द आदमी है।

2- अच्छे स्वभाव की स्त्री हृदय को सुख देने वाली होती है, लेकिन बुरे स्वभाव की स्त्री से तो भगवान ही बचाये, तंग जूती की अपेक्षा तो नंगे पाँव रहना बेहतर है और घर की लड़ाई से तो यात्रा की मुसीबत ही अच्छी है।

3- कमर में सुनहरी चपरास बाँधने और चाकरी में खड़े रहने की अपेक्षा जौ की रोटी खाना और जमीन पर बैठना अच्छा है।

4- युवावस्था में पापों का त्याग करना पैगम्बरों का काम है। वृद्धावस्था में तो जालिम भेड़िया भी साधु बन जाता है।

5- ऐ पेट! एक रोटी में संतुष्ट रह, ताकि दूसरों की सेवा में पीठ न टेढ़ी करनी पड़े।

6- अगर, तुझको ईश्वर की आँखों सी दृष्टि मिल जाय तो तुझे अपने से बढ़ कर कोई पतित न दिखाई पड़ेगा।

7- हे भाई! तू पवित्र रह। किसी से डर मत मलिन वस्त्र ही को धोबी पत्थर पर पिछाड़ते हैं।

8- आज्ञाकारिणी और शुद्ध चरित्र स्त्री भिखमंगे पति को भी सम्राट बना देती है। सुन्दर और लज्जावती स्त्री का दर्शन ही पुरुष के लिये स्वर्ग है।

9- अगर तू इन्साफ की पूछता है तो भाग्यहीन मनुष्य वह है, जिसके सुख से दूसरों को दुःख हो।

10- सत्पुरुष सम्पन्न होकर सेवा-धर्म ग्रहण करते हैं। जैसे फलों से लदी हुई शाखा अपना सिर पृथ्वी पर लगा देती।

11- जो पढ़े-लिखे मनुष्य मूर्खों जैसे कर्म करते हैं, वे पढ़े-लिखे मूर्ख हैं। किसी पशु पर यदि कुछ पुस्तकें लाद दी जाय तो क्या वह उनसे विद्वान या बुद्धिमान बन सकता है?


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