(श्री स्वामी रामतीर्थ)
पुस्तकों में छपे हुए और कीड़ों का आहार होने के लिये अलमारियों में रखे हुए वेदान्त से काम न बनेगा, तुम्हें इसे आचरण में लाना होगा।
यदि वेदान्त आप की सर्दी अर्थात् तेज हीनता (निर्बलता) को दूर नहीं करता, यदि यह आपके बोझों को परे नहीं हटाता तो उसको ठुकरा कर अलग फेंक दो।
वेदान्त साधारण लोगों का ध्यान इसलिए आकर्षित करता है कि वह उनके धर्म ग्रंथ की शिक्षा है, शिक्षित हिन्दू को इसलिए आकर्षित करता है कि सूर्य के तले (संसार भर में) दर्शन शास्त्र कहलाने योग्य कोई भी ऐसा दर्शन नहीं है कि जो वेदान्तिक अद्वैतवाद का समर्थन न करे, और न ऐसा कोई शास्त्र विज्ञान ही है कि जो वेदान्त अथवा सत्य के पक्ष की सहायता तथा (उसके प्रचार की) वृद्धि न करे।
वेदान्त दर्शन के प्रचार का अत्यन्त सर्वोत्तम मार्ग इसको अपने आचरण में लाना है अन्य कोई भी शाहराह (राज्य पथ या सुगम मार्ग) नहीं है।
जिस समय आप अपने को एक ऐसी विचित्र अकथनीय भावना या कल्पना में ढाल देते हैं कि जो हम और आप दोनों से उत्तम है। उसी समय आप आत्मा को (वास्तव में) पाते हैं। वेदान्त आपको यही बतलाता है।
यदि आप किसी अर्थ या उद्देश्य की उपलब्धि चाहते हैं, यदि आप किसी भी पदार्थ को पाना चाहते हैं, तो उसकी परछांई के पीछे मत दौड़ो। अपने ही सिर को छुओ, अपने भीतर प्रवेश करो। इस तथ्य का अनुभव करो, तब आप देखेंगे कि तारागण आप के हाथों की ही कारीगरी है। आप देखेंगे कि विश्व के सारे पदार्थ, सब मोहने और लुभाने वाली चीजें केवल आपका अपना ही प्रतिबिम्ब अथवा परछांई है।
अमरपुरी (सुरलोक) आपके भीतर है, स्वर्ग अर्थात् आनन्द का धाम आपके भीतर है, और तब भी आप सुख को बाजारों में, अन्य पदार्थों में ढूँढ़ते हैं, अर्थात् इन्द्रियों के विषय में बाहर ढूँढ़ते हैं, कैसा आश्चर्य है। स्वर्ग अपने अन्दर है चलो, आसीम प्रवेश करो।