ईमानदारी का व्यापार

July 1945

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जिस तरह और बातों में ईमानदारी की जरूरत है उसी तरह व्यापार में भी ईमानदारी से कामयाबी होती है। सब तरह के व्यापार में ईमानदारी का ख्याल सबसे पहला होना चाहिये। जिस तरह सैनिक को गौरव का और धर्मात्मा मनुष्य को दया का खयाल रहता है, उसी तरह व्यापारी सौदागर को कारीगर की ईमानदारी का खयाल होना चाहिये। छोटे से छोटे पेशे में भी ईमानदारी बरती जा सकती है। राज मजदूर भी अपना काम अच्छी तरह करके ईमानदार बन सकते हैं। कारीगरों को यश और ख्याति ही नहीं किन्तु बहुत कुछ सफलता इस बात से प्राप्त होती है कि वे जिस चीज को अपनावें वे उसमें किसी तरह का धोखा न दें। सौदागरों को भी सफलता इस बात से प्राप्त होती है कि वे जिस चीज को जैसी कह कर बेचें वह असल में वैसी ही हो। धोखेबाजी और धींगा-धींगी से चाहे हम कुछ समय के लिये सफलता प्राप्त कर लें, परन्तु स्थाई सफलता ईमानदारी से ही मिलती है। मिसाल मशहूर है कि ‘काठ की हाँडी दूसरी बार नहीं चढ़ती’ जब कलई खुल जाती है तब सारी शेखी किरकिरी हो जाती है। किसी देश का नामवरी और वहाँ की पैदावार अथवा बनी हुई चीजों की उत्तमता वहाँ सौदागरों और कारीगरों के साहस, प्रतिभा और योग पर ही निर्भर नहीं है किन्तु उनकी अकलमंदी, किफायत सारी और इन दोनों से भी बढ़कर ईमानदारी पर कहीं ज्यादा निर्भर है। यदि इंग्लैण्ड इत्यादि किसी देश के व्यापारी इन गुणों को तिलाँजलि दे दें तो उनके तिजारती जहाज दुनिया के सब मुल्कों से निकाल दिये जायं।

और कामों की अपेक्षा तिजारत में चरित्र की ज्यादा कठिन परीक्षा होती है। व्यापार में ईमानदारी स्वार्थ त्याग, न्यायपरायणता और सच्चाई की सबसे बड़ी परीक्षा होती है और वे व्यापारी, जो उन परीक्षाओं में सच्चे उतरते हैं, शायद उतनी ही इज्जत के काबिल हैं जितने वे सैनिक जो तोपों के सामने भयानक धुआँधार युद्धों में अपनी वीरता का परिचय देते हैं। हम यह जानते हैं कि अनेक व्यापारों में जो करोड़ों आदमी लगे हुए हैं वे प्रायः इस परीक्षा में सच्चे उतरते हैं और यह बात उनके लिए बड़े गौरव की है। यदि हम थोड़ी देर के लिए सोचें कि हर रोज मामूली नौकरों को, जो स्वयं बहुत थोड़ा वेतन पाते हैं कितनी बड़ी-बड़ी रकमें सौंप दी जाती हैं- दुकानदारों, मुनीमों, दलालों, बैंकों के मुहर्रिरों के हाथों में होकर हर रोज कितना रुपया आता जाता रहता है, और इन प्रलोभनों के बीच में भी विश्वासघात के काम कितने कम होते हैं, तो यह मानना पड़ेगा कि यह प्रतिदिन की ईमानदारी मनुष्य के चरित्र के लिए बड़े गौरव की बात है। व्यापारियों को एक दूसरे का भी बड़ा विश्वास रहता है, क्योंकि वे आपस में माल उधार देते रहते हैं। व्यापार के लेन-देन में यह बात ऐसी साधारण हो गई है कि हमको बिल्कुल आश्चर्य नहीं मालूम होता। एक विद्वान ने खूब कहा है कि-”मनुष्य एक दूसरे के साथ जो प्रेम रखते हैं उसका यह सर्वोत्तम उदाहरण है कि सौदागर अपने दूर-दूर के मुनीमों पर-जो शायद उनसे आधी दुनिया की दूरी पर हैं-ऐसा पक्का विश्वास रखते हैं और बहुधा उन लोगों को, जिनको उन्होंने शायद कभी नहीं देखा, सिर्फ इनकी ईमानदारी के भरोसे पर प्रचुर धन भेज देते हैं।

जो सफलता बिना धोखे या बेईमानी के प्राप्त होती है वही सच्ची सफलता है चाहे मनुष्य कुछ समय तक असफल ही रहे परन्तु उसको ईमानदार ही रहना चाहिए। चाहे सर्वस्व जाता रहे परन्तु चरित्र की रक्षा करनी चाहिये, क्योंकि चरित्र स्वयं धन है। यदि अच्छे उद्देश्य वाला मनुष्य वीरता के साथ दृढ़ बना रहे, तो उसकी सफलता भी अवश्य होगी और उसको इसका सर्वोत्तम फल मिले बिना नहीं रहेगा।


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