सभ्यता के लक्षण

July 1945

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सभ्य पुरुष ऐसी प्रत्येक बात से अपने आपको बचाने का प्रयत्न करता है, जो दूसरों के मन को क्लेश पहुँचाये या उनमें चिढ़ या खीझ उत्पन्न करे। मनुष्य को समाज में अनेक प्रकार की प्रकृति या स्वभाव वाले मनुष्यों से संसर्ग पड़ता है। कहीं उसका मतभेद होता है, कहीं भावों में संघर्ष होता है, कहीं उसे शंका होती है, कहीं उसे उदासी, आक्षेप, प्रतिरोध या ऐसे अन्यान्य भावों का सामना करना पड़ता है।

सभ्य पुरुष का कर्त्तव्य ऐसे सब अवसरों पर अपने आपको संयम में रख, सबके साथ शिष्ट व्यवहार करना है। उसकी आँखें उपस्थित समाज में चारों ओर होती है। वह संकोचशील व्यक्तियों के साथ अधिक नम्र रहता है और मूर्खों का भी समाज में उपहास नहीं करता। वह किसी मनुष्य से बात करते समय उसके पूर्व संबंधों की स्मृति रखता है ताकि दूसरा व्यक्ति यह नहीं समझे कि वह उसे भूला हुआ है। और वह ऐसे वाद-विवाद के प्रसंगों से बचता है जो दूसरों के चित्त में खीझ उत्पन्न करे। वह जानबूझकर संभाषण में अपने आपको प्रमुख आकृति नहीं बनाना चाहता और न वार्तालाप में अपनी थकावट व्यक्त करता है। उसके भाषण और वाणी में मिठास होती है और अपनी प्रशंसा को वह अत्यन्त संकोच के साथ ग्रहण करता है। जब तक कोई बाध्य न करे वह अपने विषय में मुख नहीं खोलता और किसी आपेक्ष का भी अनावश्यक उत्तर नहीं देता। अपनी निन्दा पर वह कान नहीं देता न किसी से व्यर्थ का हमला मोल लेता है। दूसरों की नीयत पर हमला करने का दुष्कृत्य वह कभी नहीं करता बल्कि जहाँ तक बनता है, दूसरों के भावों का अच्छा अर्थ बैठाने का प्रयत्न करता है। यदि झगड़े का कोई कारण उपस्थित हो भी जावे तो वह अपने मन की नीचता कभी नहीं दिखाता।

वह किसी बात का अनुचित लाभ नहीं उठाता और ऐसी कोई बात मुँह से नहीं निकालता, जिसे प्रमाणित करने को वह तैयार न हो। वह प्रत्येक बात में दूरदर्शी और अग्रसोची होता है। वह बात-बात में अपने अपमान की कल्पना नहीं करता, अपने प्रति की गई बुराइयों को स्मरण नहीं रखता और किसी के दुर्भाव का बदला चुकाने का भाव नहीं रखता। दार्शनिक सिद्धाँतों के विषय में वह गंभीर और त्याग मनोवृत्ति वाला होता है। वह कष्टों के सन्मुख झुकता है, कारण उनके निवारण का उपाय नहीं; दुखों को सहता है, कारण वे अनिवार्य हैं और मृत्यु से नहीं घबराता कारण आगमन ध्रुव है। चर्चा या वाद-विवाद में दूसरे लोगों की लचर दलीलें, तीक्ष्ण व्यंग या अनुचित आक्षेपों से परेशान नहीं होता बल्कि मृदु हास्य के साथ उन्हें टाल देता है। अपने विचार में सही हो या गलत, परन्तु वह उन्हें सदा स्पष्ट रूप में रखता है और जानबूझकर उनका मिथ्या समर्थन या जिद्द नहीं करता। वह अपने आपको लघुत्तर रूप में प्रगट करता है, पर अपनी क्षुद्रता नहीं दर्शाता। वह मानवी दुर्बलताओं को जानता है और इस कारण उन्हें क्षमा की दृष्टि से देखता है।

अपने विचारों की भिन्नता या उग्रता के कारण सज्जन पुरुष दूसरों का मजाक नहीं उड़ाता। दूसरों के विचारों सिद्धाँतों और मन्तव्यों का वह उचित आदर करता है। वह सदा निष्पक्ष और न्यायी होता है।

संक्षेप में सभ्य पुरुष के लक्षण हैं दूसरे के भावों, विचारों व आदर्शों के प्रति अधिक से अधिक उदार और उचित व्यवहार। “पड़ौसी से प्रेम करो” इस प्राचीन सिद्धाँत का इसे आधुनिक रूप समझना चाहिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118