कितने ही मंद बुद्धि कवियों ने स्त्रियों को गिरा दिया है। वे कहते हैं कि स्त्री एक भारी बला है। साँप की तरह जहर से भरी है। घर को दुखमय बनाने वाली काल-रात्रि है। वे सब नाशवंत कविता के झूठे कटाक्ष हैं। इस असार संसार में और सब पदार्थ तो परिश्रम करने से मिल सकते हैं, पर सुलक्षणा स्त्री केवल ईश्वर की कृपा से ही मिलती है। जिसकी स्त्री सुलक्षणा होती है वह कभी दुख को दुख नहीं समझता। मुझे तो पूरा विश्वास है कि संसार अगर स्त्रियों के कहे मुताबिक चले तो दुनिया स्वर्ग बन जाय। -पोप
विधाता ने स्त्री को सुंदर बनाया है, इससे हम उसको महत्व नहीं देते। वह प्रेम के लिए बनायी गई है, अतः हम उससे प्रेम नहीं करते। हम उसे पूजते हैं, तो केवल इसीलिए कि मनुष्य का मनुष्यत्व सिर्फ उसी के कारण है।
-लैविल