नेत्र रक्षा के कुछ नियम

July 1945

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(ले.- श्री गणेश दत्त ‘इन्द्र’ आगरा)

1- जो लोग मिर्च, मसाले और खटाई अधिक सेवन करते हैं, उनकी दृष्टि कमजोर हो जाती है। लाल मिर्च का अधिक मात्रा में सेवन करना आँखों के लिए अत्यन्त अहितकर है।

2- जो लोग नियमित रूप से दातून नहीं करते उनकी आँखें खराब हो जाती हैं। दातून से यहाँ केवल दाँतों को साफ करने का मतलब नहीं हैं। दाँत तो साफ किये ही जावें साथ में जीभ को कण्ठ तक तालू को हलक तक और जबान के नीचे के गड्ढ़े को भी खूब अच्छी तरह नित्य प्रातःकाल और इसी तरह सायं काल के समय साफ करना चाहिये।

3- तमाम रोगों की उत्पत्ति पेट की खराबी से ही होती है, अतएव आँखों की खराबी को रोकने के लिये पेट साफ रखना चाहिये। कब्ज कभी नहीं होने देना चाहिये। ‘कब्ज हो जावे तो त्रिफला लेकर पेट साफ कर देना चाहिये।’

4- तंग जूते पहनने से भी आँखें कमजोर होती हैं। जिन जूतों में पंजे की अंगुलियाँ दबती हों वे नेत्रों को हानिप्रद होते हैं। पसीने से आने वाली जूतों की बदबू, मैले, गन्दे, दुर्गन्धित मोजे-जुराब भी आँखों को हानि पहुँचाते हैं। ऐसे जूते जिनमें पंजे न दबें या पैर खुले रहें, जैसे चप्पल, खड़ाऊ वगैरह आँखों के लिये हितकर हैं।

5- भोजन के बाद लकड़ी की खूँटीदार खड़ाऊं पहनकर कुछ देर टहलने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।

6- बिना किसी कारण अथवा रोग के आँखों को सेंकना या गर्मी पहुँचाना हानिकारक होता है। आँखों को सदा ठण्डी रखने का ध्यान रखना चाहिये। आग के आगे बैठ कर तापना आँखों को हानि पहुँचाता है। धुएँ से आँखों को बहुत बचाना चाहिये।

7- बिना किसी बीमारी के आँखों में अंजन या सुर्मा लगाना ठीक नहीं किसी नादान हकीम के यहाँ अथवा बाजारू दवा बेचने वालों का अंजन या सुर्मा कभी भी आँखों में नहीं डालना चाहिए।

8- ठण्डी हवा के झोंकों से और लू से आँखों को बचाते रहना चाहिये।

9- ऐसी चीजों को नहीं देखना चाहिये जिनसे आँखें चौंधिया जाती हों। सूर्य की ओर देखने से आँखें बहुत खराब हो जाती हैं। इसी तरह गैस के लैम्प, बिजली की रोशनी आदि के चौंधे से भी बचना चाहिए। मोटरों के आगे की रोशनी, टार्च, रेलों की सर्चलाइट सभी आँखों की दुश्मन हैं इनसे बचना चाहिये। टार्च या बिजली की बत्ती को खोलना और फौरन बन्द करना आँखों को अत्यन्त हानि पहुँचाता है। तेज धूप में घूमना-फिरना भी आँखों को अहितकर होता है।

10- लिखने-पढ़ने का प्रभाव आँखों पर पड़ता है। इसलिये बहुत समय तक पढ़े जाना या लिखे जाना ठीक नहीं है। जब आँखों को थकान मालूम हो तब काम बन्द कर देना चाहिए और आँखों को पूरा आराम देकर फिर कार्य शुरू कर देना चाहिये। पलकें मूँदकर लेट जाने से या हरी भरी वाटिका, जंगल आदि को देखने से नेत्रों को आराम पहुँचता है। आँखों की पलकों को बार-बार खोलने मूँदने से भी लाभ होगा।

11- पढ़ते-लिखते समय अत्यन्त तेज प्रकाश की जरूरत नहीं है। धूप में या बिजली आदि के प्रखर प्रकाश में लिखने-पढ़ने या नेत्र सम्बन्धी कार्य करने से आँखें खराब हो जाती हैं। किसी काम को करते समय प्रकाश ऐसी जगह न रखना चाहिये जिसका चौंधिया आँखों पर पड़े।

12- चलती हुई गाड़ी में लेटकर, आड़ी-टेढ़ी आँखें रखकर पढ़ने से या काम करने से आँखें खराब हो जाती है। बिना आँखों की खराबी के बहुत पास से पढ़ना, बुरी आदत है। आँखों से काम लेते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि आँखों की ऊपरी पलकें ऊपर की ओर ज्यादा न चढ़ने पावे। वे लगभग आधी आँखों को और चौथाई पुतलियों को ढांके रहें।

13- आजकल बाजारों में रबर के जूतों (रबर सोल बूट) की बिक्री बहुत है। इनके पहनने वालों की आँखें खराब हो जाती हैं। रबर मन्द वाहक है। पैरों की बाहर निकलने वाली गर्मी का वहीं निरोध होता रहता है। इससे नेत्रों को हानि पहुँचती है।

14- जो लोग अपनी आँखों को ठीक रखना चाहते हैं या जिनकी आँखें बिगड़ गई हों और ठीक करना चाहतें हों उन्हें नेती किया करना चाहिये। जल नेती उत्तम है। नाक के नथुनों से, सुबह बिछौने से उठते ही जल पीना जल नेती कहलाता है। दृष्टि दोषों को हटाने के लिए यह रामबाण है। साथ ही अनेक दूसरे रोगों को भी मिटाती है। जो जल-नेती न कर सकें उन्हें सूत की नेती करनी चाहिये। एक फुट लम्बी सूत की रस्सी, जो नाक के छिद्र में काफी ढीली जा सके और जिसका पिछला 5-6 इंच हिस्सा बिना बटा हुआ अर्थात् खुला हुआ बिखरा हो, नाक के नथुने में धीरे-धीरे डालकर मुँह में से निकाली जाय। दोनों नथुनों से यह क्रिया की जानी चाहिये। इस क्रिया को किसी अनुभवी की देख-रेख में करना चाहिए।

15- हमेशा मुँह ठण्डे पानी से ही धोया जाये। गर्दन के ऊपरी हिस्से को ठण्डे पानी से ही धोना चाहिये। क्योंकि नेत्रों की ज्योति स्थिर रखने के लिए मस्तिष्क का ठण्डा रहना जरूरी है।

16- मादक पेय का आँखों पर घातक प्रभाव होता है। कभी भी चाय, काफी, मद्य, भाँग, गाँजा, चरस, चण्डू वगैरह नहीं काम में लाना। बीड़ी, तम्बाकू आँखों के परम शत्रु हैं।

17- प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात् एक घण्टे तक आँखें मूँदकर सूर्य की ओर बैठने से आँखें स्वस्थ और सुबल होती हैं।

18- शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी, पूर्णिमा और कृष्णा पक्ष की प्रतिपदा को चन्द्रमा की ओर एकटक दृष्टि देखने से दृष्टिमाँद्य नहीं होता।

19- भोजन करने के पश्चात् हाथ धोकर गीले हाथ नेत्रों पर फेरने से उनकी ज्योति बढ़ती है।

20- नंगे पाँवों ओंस पड़ी दूब या घास पर नित्य टहलने से आँखों की ज्योति स्थिर रहती है।

आशा है इन कुछ नियमों के अनुसार व्यवहार करके पाठक अपनी आँखों की हिफाजत करते हुए ‘पश्येम शरदः शतम्’ को सत्य सिद्ध करने में सहायक बनेंगे।

=कोटेशन============================

ईश्वर अपनी पूजा कराने से खुश नहीं होता, उसे तो वह प्यारा है जो उसके पुत्रों से प्रेम करता है।

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