अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानिए।

April 1944

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ऐ अविनाशी आत्माओं! तुम तुच्छ नहीं महान हो। तुम्हें किसी आशक्ता का अनुभव करना या कुछ माँगना नहीं हैं। तुम अनन्त शक्तिशाली हो, तुम्हारे बल का पारावार नहीं, जिन साधनों को लेकर तुम अवतीर्ण हुए हो वे अचूक ब्रह्मास्त्र हैं। इनकी शक्ति अनेक इन्द्र-वज्रों से अधिक हैं। सफलता और आनन्द तुम्हारे जन्मजात अधिकार हैं। उठो, अपने को, अपने हथियारों को, भली प्रकार पहचानो और बुद्धि पूर्वक कर्तव्य मार्ग में जुट जाओ। फिर देखें कैसे वह चीज नहीं मिलती जिन्हें तुम चाहते हो। तुम कल्पवृक्ष हो, पारस हो, अमृत हो और सफलता की साक्षात मूर्ति हो।

तुम शरीर नहीं हो, जीव नहीं हो, वरन् आत्मा, महान-आत्मा, परम आत्मा हो। तुम इन्द्रियों के गुलाम नहीं हो, आदतें तुम्हें मजबूर नहीं कर सकती। पाप और अज्ञान में इतनी शक्ति नहीं है कि वे तुम्हारे ऊपर शासन कर सके। अपने को हीन, नीच, पतित, पराधीन! और दीन हीन मानना एक प्रकार की आत्महत्या हैं। आध्यात्म शास्त्र का सन्देश है कि ऐ महान पिता के महान पुत्रों! अपनी महानता को पहचानो। उसे समझने में, खोजने में और प्राप्त करने में तत्परता पूर्वक जूट जाओ। तुम संत हो हो, आनंद पूर्वक अपनी वास्तविकता को अनुभव करो, और स्वाधीनता का-मोक्ष का-आनन्द प्राप्त करो।

मनुष्य को ‘सच्चा मनुष्य’ बनाने का प्रयत्न

दुःखी जीवन की सुखमय बनाने को एक अद्भुत योजना


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