मानव

April 1944

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(रचयिता- श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, टेढ़ा- उन्नाव)

मानव! ये मंजुल मणियों की-टूटी लड़ियाँ अब तो जोड़ो!

नादान! अरे! गलते कब से,

अपने ही अश्रु-प्रवाहों में।

जीवन का कण-कण जला रहे,

इस चिन्ता में, इन आहों में।

तुम मृग-तृष्णा में भटक रहे,

कब से इन दुर्गम राहों में॥

किस हाव-भाव से मुसकाती-यह माया, इससे मुँह मोड़ो!

सुख-शान्ति मिलेगी क्या तुमको,

पर-पीड़न में,इस छल-बल में?

शीतल छाया हैं यहाँ कहाँ,

विष-बल्लरियों के अंचल में!

अविरल आनन्द-सुधा-धारा,

बहती निश्छल-अन्तस्तल में!

जागो, जागो, आँखें खोलो, स्वप्नों की ये कड़ियाँ तोड़ो!

मानव! ये मंजुल मणियों की, टूटी लड़ियाँ अब तो जोड़ो!


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118