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April 1944

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धैर्य पूर्वक भय का मुकाबला करने से कुछ तो स्वयं ही नष्ट हो जाती हैं। जैसे समुद्र की लहरें पैरों तक आकर लौट जाती हैं।

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जैसे किसी पहाड़ी पर चढ़ना दुर्गम दिखाई देता हैं। उसी तरह विपत्तियों का सामना करना भी असह्य मालूम पड़ता हैं। परन्तु जैसे धीरे धीरे पहाड़ी पर चढ़ जाते हैं, उसी तरह आपत्ति भी आसानी से धैर्य रखने पर धीरे-2 दूर हो जाती हैं।

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जिस कर्त्तव्य से तुम दूर होकर भागते हो, वह तो तुम्हारा सुधार करने वाला है। जिस व्यसन को तुम पकड़ने दौड़ रहे हो, वह तुम्हारा शत्रु हैं।

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मनुष्य जीवन के आधे दुःख परोपकार, पारस्परिक दया उत्साह से निवारण हो सकते हैं।


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