कुछ दीर्घ जीवी महानुभावों ने अपने दीर्घ जीवन का रहस्य अपने अनुभव के आधार पर बताये हैं। पाठकों के लाभार्थ उन अनुभवों को नीचे प्रकाशित किया जा रहा है इन अनुभवों से लाभ उठाकर अन्य महानुभाव भी उन्हीं की तरह सुन्दर स्वास्थ्य के साथ दीर्घ जीवन प्राप्त कर सकते हैं।
प्रोफेसर कर्वे, उम्र 81, वर्ष पूना- ‘खूब भ्रमण करो। नियमित रूप से सुबह-शाम को टहलो। चाय की आदत न डालो।’
रेट बोर्न अमरीका, उम्र 72 साल-’पैरों से चलने-फिरने के कारण मुझमें जवानी का जोश अब तक कायम हैं। मैं अब भी प्रति सप्ताह पचास मील से अधिक चलता हूँ। पैदल चलने के कारण ही मैं जिन्दगी का आनन्द लूट रहा हूँ। घूमने से हाजमा सुधरता हैं, शरीर के विकार नष्ट होते हैं और फेफड़े अच्छी तरह कार्य करने लगते हैं। घूमना सबसे सरल और प्राकृतिक व्यायाम हैं। चाल में फुर्ती होनी चाहिये। चाय, काफी, शराब और सिगरेट से मुँह मोड़ लीजिये।’
बैजमिन, उम्र-114 वर्ष-’कर्म खाओ, ज्यादा चबाओ, सवारी पर कम बैठो, पैरों से खूब चला, गाली कम दो, हँसो ज्यादा और खूब सोओ। चिन्ताओं को हँस-हँस कर टाल दो, पेट के साथ ज्यादती न करो। शाकाहारी बनो।’
लुई क्रेमर, 70 वर्ष-गत 50 वर्ष से मैं खूब घूमता रहा हूँ। पिछले 23 वर्ष से तो मैं रोज 30-40 मीलों चला हूँ। शराब पीना मैंने बहुत वर्षों से छोड़ दिया हैं और चाय, काफी तथा तम्बाकू से मुझे नफरत हैं। शाम को दूध, भाजी और फल मेरे लिए पर्याप्त होते हैं। बिना छाने आटे की रोटी मैं लेता हूँ। पेय पदार्थों में पानी, दूध और फलों का रस मुझे प्रिय हैं। जो जीवन से निराश हो चुके हैं। उनको मेरी सलाह हैं, ‘घूमना शुरू करो, पगडंडी पकड़ लो और स्वास्थ्य के उच्चतम शिखर पर चढ़ जाओ।’
डॉक्टर मेंचनी कौफ, बलगेरिया-’दही और मट्ठे का प्रयोग बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि ये अंतड़ियों में पहुँचकर उनको शुद्ध करते हैं।’
बलगेरिया में दीर्घ-जीवियों की संख्या अधिक हैं और उनके जीवन तथा आहार का अध्ययन करके डॉक्टर साहब इस परिणाम पर पहुँचे हैं।
विक्टर डेन-’उत्तेजक मनोविकारों से दूर रहो। उनसे उम्र घटती है, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ जाती हैं और हमारे शरीर में तरह-तरह के विष पैदा हो जाते हैं। घृणा, कामुकता, क्रोध और द्वेष इत्यादि तीव्र मनोविकारों से अपने को बचाओ।’
डॉक्टर बरसन मैकफैडन, अमरीका-’अपने दाँतों से अपनी कब्र मत खोदो। अत्यधिक खाने से आदमी कम जीता है।
डॉक्टर शाहू, नागपुर-’पिण्डखजूर खाओ। इससे कब्ज दूर होगा। गरम मसाले, मिर्च, चाय, तम्बाकू और शराब से दूर रहो।’
श्री वासुदेवराव गणेश जोशी, पूना-’सुबह चार बजे से 6 बजे तक नित्यप्रति टहलो। जब मन में उदासी का अनुभव हो, अन्न छोड़कर-केवल दूध का सेवन करो।’
लगमाण्णा कोकर्ण, बेलगाँव, उम्र 80 वर्ष ‘खेतों की शुद्ध हवा में रहो, दूध पियो और ताजी शाक-भाजी का सेवन करो। भोजन करते समय पानी बिल्कुल न पियो। ठंडे जल से स्नान करो दांतों को शुद्ध रखो, रात को जल्दी सोओ और सुबह जल्दी उठो।’
शेख इस्माइल, नागापट्टम, उम्र 226 वर्ष-’खूब घूमो, चाय, सिगरेट, बीड़ी, तमाखू आदि से परहेज करो।’
एक ईरानी, उम्र 126 वर्ष-’खूब घूमिए, खूब दूध पीजिये, खूब खाइये और खूब प्रसन्न रहिये। बेफिक्री और अलमस्ती दीर्घ-जीवन की कुँजी हैं।’
विश्राम के मानी है शरीर में जंग लगाना। परिश्रम को भार मत समझो। श्रम ही पूजा है।
सरदार फीरोज दस्तूर-’नियमित रूप से आहार करो। प्रातःकाल उठो। सदा प्रसन्न रहो। दुःखों को भी हँसते हुए सहन करो। शराब और तमाखू हानिकारक हैं। खूब घूमो।’
जाहिद पाल, अवस्था 115 वर्ष-’मैंने अपनी आयु के प्रथम 40 वर्ष केवल खजूर और पानी पर बिताये थे।’
सालाक ममोसा, अवस्था 205 वर्ष-’मैंने जीवन भर घास के अतिरिक्त और कुछ नहीं खाया हैं। अपने लिए मैं स्वयं घास उखाड़ता हूँ और स्वयं पकाता हूँ। कभी-कभी परिवर्तन के लिए कच्ची घास भी खाता हूँ।
सर दिनशावाचा, अवस्था 90 वर्ष-’मैं 5 बजे सबेरे उठता हूँ और रात को नियमित समय पर सो जाता हूँ। ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ का अनुयायी हूँ। मेरे घूमने ने मेरे स्वास्थ्य को स्थाई बनाने में बड़ी सहायता पहुँचायी हैं। मैं खेलना भी पसन्द करता हूँ।’
मिसेज केथराइन प्रकेट अवस्था 112 वर्ष-’मैं अपनी रहन सहन में सदा से सादी रखती चली आ रही हूँ और कामों में काफी दिलचस्पी लेने की मेरी आदत हैं।
सर तेमुल जी, अवस्था 87 वर्ष-’मैं खान-पान में सदा से संयमी रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे कितना खाना चाहिए, क्या खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और कैसे खाना चाहिए। मैं नियमित रूप से व्यायाम करता हूँ। इस उम्र में भी मैं खूब घूमता हूँ डंड-बैठता लगाता हूँ। 75 वर्ष की उम्र तक दवा की एक बूँद की भी मुझे आवश्यकता नहीं मालूम हुई। मैं सबेरे उठ जाता हूँ। हमें यह न भूल जाना चाहिए कि शरीर के साथ अन्याय करने से उसका पाप हमें भुगतना पड़ेगा। देर से या जल्दी ही।’
सर नसरवान जी, अवस्था 73 वर्ष-मैं तड़के उठता हूँ और तभी से अथक परिश्रम आरम्भ कर देता हूँ। शारीरिक व्यायाम मनुष्य को युवा बनाये रखने में बड़ी सहायता पहुँचाते हैं। मैंने जवानी में जो व्यायाम किये, उसका मजा इस बुढ़ापे में लूट रहा हूँ। व्यायाम अनेक रोगों की अर्व्यथ औषधि हैं,किन्तु जिस समय मन और शरीर दोनों थक जाते हैं उस समय व्यायाम कदापि न करना चाहिए। नियमित रहने की आदत अच्छी हैं।’
मिसेज पीटर ड्रमंड, अवस्था 100 वर्ष-’मेरा जन्म अच्छे वंश में हुआ हैं। मैंने अपने शरीर को सदैव काम में लगाये रक्खा हैं। जीवन में जो अच्छी वस्तुएं हैं मैंने उन सबका उपयोग किया हैं। मद्यपान से मैं घृणा करती हूँ।’
सर होती मेहता-दीर्घजीवी होना मेरे हाथ की बात हैं। खूब खेलना और मस्त रहना स्वास्थ्य-वर्धक हैं। मैं कहीं भी होऊँ 5। 1/2 बजे सुबह जरूर उठ जाता हूँ। मैं काम करने में सुख अनुभव करता हूँ और पेंशन लेने की कल्पना भी नहीं करता। मैं कभी खतरनाक बीमारी का शिकार नहीं हुआ। मुझे दवाओं पर तनिक विश्वास नहीं हैं। जब कभी मुझे शरीर में कुछ खराबी मालूम होती हैं, मैं भोजन त्याग देता हूँ और उपवास करने लगता हूँ। उपवास में जल खूब पीता हूँ रात में अधिक जागना हानिकारक हैं। खुली हवा में अधिक रहो। दिल को हँसी-खुशी से उछालते रहो, मनहूसियत से सदा दूर रहो। अधिक भोजन करने से उम्र घटती है।’
इस्तम्बोल का जारा आगा, अवस्था, 160 वर्ष-’मेरी दीर्घायु का रहस्य मेरा संयमी जीवन हैं मैंने केवल शाक-भाजी और फल खाकर इतनी लम्बी उम्र पाई हैं।’
जार्ज बर्नार्डशा, अवस्था 86 वर्ष-धूम्र पान या मद्यपान न करने के कारण ही मुझमें एक युवक जैसा रक्त चाप हैं। मैं कट्टर शाकाहारी हूँ और डाक्टरों से सदा बचता रहता हूँ।’
मिसेज एक स्टन्सन, अवस्था 112 वर्ष-’मेरे दीर्घजीवन का रहस्य है काम करना और संतुष्ट रहना।’ -’जीवन सखा’