इच्छा शक्ति, एक प्रबल शस्त्र

April 1944

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(डा. श्याममनोहर अग्निहोली, बीघापुर)

हमारे आस पास जैसी भी भली बुरी वस्तुएं तथा परिस्थितियाँ मौजूद हैं वे हमारी इच्छाशक्ति का कारण है। ईश्वर ने इच्छा की कि मैं एक से अनेक हो जाऊँ फलस्वरूप यह दृश्य संसार उत्पन्न हो गया इसी प्रकार ईश्वर के पुत्र जीव की जब इच्छा होती है कि मैं अमुक प्रकार की परिस्थितियाँ प्राप्त करूं तो वही उसी प्रकार की परिस्थिति प्राप्त कर लेता है।

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि कोई मनुष्य दुख, रोग, शोक आदि नहीं चाहता फिर यह क्यों प्राप्त होते हैं? उत्तर बिल्कुल स्पष्ट है। दुख, रोग, शोक की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है, यह कुविचारों के परिणाम मात्र हैं। जब मनुष्य कुविचारों को अपने मन में स्थान देता है तो अविलम्ब उसका शरीर कुकर्म करने के लिए उत्तेजित होता है और कुकर्मों की पूँछ से बँधे हुए दुख, रोग, शोक भी सामने आ जाते हैं। यह इसकी इच्छा का परिणाम है। यदि वह सुविचारों और सुकर्मों को प्रवृत्त रहे तो दुख शोक उसके पास भी नहीं फटक सकते।

कहते हैं कि माया एवं अविद्या ने मनुष्य को भुलावे में डाल रखा है। वह भुलावा यही है कि हम कुविचार और दुख को पृथक-2 वस्तुएं समझे हुए हैं। वास्तव में यह दोनों एक ही वस्तु के दो पहलू हैं। अग्नि और उष्णता एक ही वस्तु है इसी प्रकार पाप और दुख भी एक ही हैं, जो पाप की इच्छा करता है समझना चाहिए कि वह दुख की ही इच्छा करता है। इच्छा शक्ति का आकर्षण बड़ा प्रबल है जो जिस वस्तु को चाहता है वह उसे वह वस्तु मिल कर रहती है। हमें यह बात भली भाँति ध्यान रखनी चाहिए कि सद्विचार और सुख एक ही पदार्थ के दो नाम हैं। ईश्वर ने हमें इच्छा शक्ति का ऐसा प्रबल शस्त्र दिया है कि उसके द्वारा सुख, दुख आदि हर एक इच्छित वस्तु प्राप्त कर सकते हैं।


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