डाक्टर क्लुराट डी.ओ. ने इस बात पर बड़ा दुख प्रकट किया है कि- ‘थकान’ की बीमारी मंदाग्नि से भी अधिक मात्रा में फैली हुई है। ऐसे आदमी मिल सकते हैं जिनका पेट साफ रहता हो पर ऐसे मनुष्य मिलना कठिन है जो थकान की बीमारी से ग्रसित न हों। काम करने के उपरान्त थकान आना वैसी ही स्वाभाविक है जैसी कि दिन के बाद रात। थकान इसलिये आती है कि हम विश्राम की आवश्यकता अनुभव करें और तब तक कि नवीन शक्ति उत्पन्न हो जाये जब तक अधिक काम न करें। हम लोग विश्राम करते हैं परन्तु वे कायदे। इसका फल वह होता है कि बहुत समय दृढ़ आराम करने के बाद भी जैसी चाहिये वैसी चैतन्यता प्राप्त नहीं होगी सवेरे सोकर उठने पर भी चहरा उदास और मन गिरा-गिरा सा रहता है।
अब विश्राम वह है जिसमें शरीर के साथ मन को भी आराम करने का मौका मिले। रात को सोते समय स्वप्नों का ताँता लगा रहना इसका अर्थ वह है कि सब काम में जुड़ा हुआ है। जिस प्रकार समर्थ से अधिक दूर पैदल चलने पर पैरों में हड कूटन होती है और विश्राम के समय में भी बेचैनी रहती है उसी प्रकार बेतरतीब और बेजा तरीके से मस्तिष्क का उपयोग करने पर मानसिक तन्तु उत्तेजित हो जाते हैं और वे सोते समय भी बिलबिलाते रहते हैं।
कोई भी मानसिक कार्य लगातार अधिक समय तक करना चाहिये। दिमागी काम अधिक से अधिक तीन चार घंटे करने के पश्चात कम से कम एक घंटा आराम अवश्य करना चाहिये। यह आराम ऐसा होना चाहिये जिसमें शरीर को ही नहीं वरन् मन को भी धैर्य मिले। कई लोग छुट्टी के समय में शतरंज जैसे कई दिमागी खेल खोलते हैं उससे उन्हें आराम मिलना तो दूर रहा और थकान बढ़ती है। मन को आराम देने का ढंग ऐसा होना चाहिये जिससे उस पर शारीरिक खिंचाव का भार कम से कम पड़े, बाहर की चिन्ताऐं को उस समय बिलकुल ही हटा देनी चाहियें और साथ-साथ यह भी प्रयत्न करना चाहिए कि शारीरिक कार्यों के कारण नाड़ियों पर पड़ने वाला दबाव मन तक कम से कम मात्रा में पहुँच पाये। ऐसा आराम यदि थोड़ी देर भी मिल जावे तो वह घंटों सोने की समझ कर सकता। नेपोलियन कुछ ही देर घोड़े की पीठ पर झपकी लेकर अपनी नींद पूरी कर लेता था।
डाक्टर क्युराट ने एक बहुत ही उत्तम विश्राम को मानसिक साधना विधि बताई है। वे कहते हैं कि आराम करने के लिये एक मुलायम बिस्तर पर चले जायो और शरीर ढीला करके चित्त लेट जाओ। कुछ देर अपने को तन्द्रा की दशा में चले जाने की भावना करो और तदुपरान्त शरीर से मन को अलग करने का अभ्यास करो। ऐसा अनुभव करो कि तुम अपने शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके अलग हटा रहे हो। पहले यह कल्पना करो कि तुम्हारा एक हाथ दूसरे कमरे में चला गया है, फिर दूसरा भी। इसी प्रकार अलग अलग कमरों में शरीर के सिर, पैर, पेट छाती आदि अंगों को भेज दो। समझो कि शरीर के सारे अंग अन्यत्र चले गये उसमें हमारा कुछ भी संबंध नहीं हैं। केवल मन यहीं पर पड़ा हुआ है यदि केवल कुछ मिनट भी तुम इन भावनाओं को विश्वास के रूप में परिलक्षित कर सकोगे तो देखोगे कि साधना से उठते शरीर में एक नवीन स्फूर्ति और उत्साह भर गया है। जब तुम्हें आराम करना हो तो इस क्रिया को अपनाओ तुम देखोगे कि इस विधि से थोड़ी देर में बहुत आराम मिल जाता है और दिमाग दूने उत्साह के साथ करने में समर्थ हो जाता है।
अध्यापक, वकील, विद्यार्थी, लेखक, संचालक, क्लर्क या ऐसे ही अन्य दिमागी काम करने वाले महानुभाव यदि अपनी थकान मिटाने के लिये डाक्टर क्युराट के इस मुद्दे को काम में सोचें तो वे बहुत कुछ लाभ उठा सकते हैं और प्राण घातिनी थकान से जो कि लकड़ी के घुन की तरह शरीर को खोखला करती रहती है छुटकारा प्राप्त करते हैं। रात को सोने से पूर्व इस विधि का प्रयोग में लाने में स्वप्नों की बाढ़ रुक जाती है और मीठी नींद आती है ऐसा भी उपरोक्त डॉक्टर साहब का मत है। यह सरल विधि पाठकों को रुपया परीक्षणीय है।