कई बार रगड़ने से गीली दियासलाई धुँआ देकर ही रह जाती है और सूखी को एक बार ही थोड़ा घिसने से एकदम जल जाती है। सूखी दिया सलाई की तरह सद्भक्त के सामने ईश्वर का नाम लेने से प्रेम की ज्वाला एकदम उबलने लगती है और विषय वासना में फँसे हुए मनुष्य को चाहे जितना सदुपदेश दो, किन्तु गीली दियासलाई की तरह कुछ असर नहीं होता है।
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जिस तरह पारे के डिब्बे में टूटे हुए सीसे को डाल देने से वह बिल्कुल गल जाता है। वैसे ही ब्रह्म के महासमुद्र आत्मा को गिर जाने से वह मर्यादा के अस्तित्व को भूल जाती है।
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मछली का सिर और दुम बेकार होता है वह खाने के काम में नहीं आता। अतः माँस खाने वाले मच्छी के बीच का हिस्सा ही रखते हैं, इसी तरह प्राचीन धर्म ग्रन्थों तथा आज्ञाओं को ऐसे छाँटना चाहिए कि वे इस समय की आवश्यकता को पूरा कर सकें।