एक कौआ भेड़ की पीठ पर बैठा था और उसकी चमड़ी खोद खोद कर खा रहा था। भेड़ ने उसे उड़ाने की कोशिश की पर उड़ा न सकी। इस पर उसने दुखी होकर कहा-दुष्ट, यदि तू कुत्ते की पीठ पर बैठता और उसके साथ ऐसा व्यवहार करता तो उसके दाँत और नख तुझे अच्छी शिक्षा देते। कौए ने कहा- भोली भेड़ तू नहीं जानती, मैं बलवान के सामने झुक जाता हूँ और निर्बल को सताता हूँ। इसी नीति के कारण तो मैं अब तक जिन्दा हूँ।
एक गधा जंगल में चर रहा था उसने देखा कि एक बाघ मुझे पकड़ने के लिए पास ही आ पहुँचा है। बचने का कोई उपाय न देखकर गधे ने एक उपाय सोचा। वह लंगड़ा-लंगड़ा कर चलने लगा। बाघ जब गधे के पास आ गया और उसे लंगड़ाता हुआ देखा तो पूछा कि-लंगड़ाने का क्या कारण है? गधे ने कहा- मेरे पिछले पैर में एक खड़ा काँटा लग गया है। आप पहले उसे निकाल लीजिए तब मुझे खाइये नहीं तो काँटा आपके मुँह में गड़ जाएगा। बाघ की समझ में यह बात आ गई वह पिछले पैरों के पास बैठकर काँटे की देख भाल करने लगा। गधे ने अच्छा मौका देखा और बड़े जोरों से उसके मुँह पर दुलत्तियाँ लगाई। जिससे बाघ तिलमिला कर गिर पड़ा और गधा तेजी के साथ अपने प्राण बचाकर भाग गया।
एक वृक्ष के खोखले में एक बिल्ली अपने बच्चों समेत रहती थी। उसी वृक्ष के ऊपर चील का घोंसला था और नीचे सियारी रहती थी। बिल्ली ने सोचा कि इन दोनों से ही मुझे खतरा है इसलिए किसी प्रकार इन्हें वापस में भिड़ाकर नष्ट करना चाहिए। वह चील के पास पहुँची और बोली-’दीदी देखती नहीं, यह सियारी रोज पेड़ की जड़ें खोदती है वह चाहती है कि इस प्रकार एक दिन पेड़ को गिरा कर तुम्हें मार डाले। दूसरे दिन वह सियारी के पास पहुँची और कहने लगी कि-’दीदी। यह चील नहीं दुष्ट है यह चाहती है कि जब तुम चरने जाओ तभी वह तुम्हारे बच्चों को खा जाय।
बिल्ली के बहकावे में आकर चील और सियारी आपस में पक्की दुश्मन हो गई। दोनों ने चरना छोड़ दिया और एक दूसरे की निगरानी करने में बैठी रहने लगी। इस तरह कुछ दिन में दोनों भूखी प्यासी मर गई और बिल्ली निर्भीकता से रहने लगी।
जो अपना भला बुरा न सोचकर दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं उन्हें चील और सियारी की तरह मरना पड़ता है।
एक मुर्गी बड़ी दयालु थी। वह सब पर दया करती थी। एक दिन उसे रास्ते में साँप के अण्डे पड़े मिले। वह उनको लेने लगी। यह देखकर पतंगे ने कहा ओ मूर्ख मुरगी। जिन अंडों को तू ले रही है उनसे बच्चे पैदा होते ही सब को हानि पहुँचाएंगे और वह हानि पहले तुझसे ही शुरू होगी।
दुष्टों की सहायता न करनी चाहिए।
एक भूखा सुआ सेमर के पेड़ पर आ बैठा और उसके फलों को देखकर कहने लगा जब ये फल पक जायेंगे तो इन्हें खाकर तृप्त हूँगा। उस पेड़ पर रहने वाले कौए ने सुआ से कहा- भाई, यह फल उस जाति के नहीं हैं जो किसी का पेट भरने के काम आते हैं।
कष्ट से किसी को सहायता की आशा नहीं करनी चाहिए। एक बार बड़ी भारी गर्मी पड़ी चारों ओर कोलाहल मच गया। पंडितों ने बताया कि सूर्य नारायण विवाह करने वाले हैं इसलिए इतना तेज दिखा रहे हैं। सूरज के विवाह की बात सुनकर मेढ़क खुशी से टर्राने लगे। एक बुड्ढे मेंढक ने उनसे कहा तुम सूरज के विवाह में तुम्हें खुश होने की क्या जरूरत है। अभी एक सूरज इतना गरमाता है तो अब उसकी स्त्री आ जायगी तो दूनी गरमी पड़ेगी और तालाब का पानी सुख जाने से बड़ा कष्ट सहना पड़ेगा।
दुष्टों को बढ़ता देखकर खुश नहीं होना चाहिए।