हमारी जातीय विशेषता

June 1943

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(श्री स्वामी विवेकानन्दजी)

इंग्लैण्ड में एक बार एक महिला ने मुझसे पूछा- “हिन्दुओं ने क्या किया है? तुम लोगों ने कभी एक जाति को भी नहीं जीता !” अंग्रेज जाति के लिए जो साहसी वीर क्षत्रिय प्रकृति के हैं, दूसरे को विजय करना गौरव की बात समझी जाती है। यद्यपि उनकी दृष्टि से यही ठीक है, लेकिन हम लोगों की दृष्टि इसके बिलकुल विपरीत है। जब मैं अपने मन से पूछता हूँ कि भारत की श्रेष्ठता का क्या कारण है तो यह उत्तर पाता हूँ कि इसका कारण यह है कि “हम लोगों ने कभी दूसरी जाति को नहीं जीता।” यही हम लोगों के लिए अत्यन्त गौरव की बात है। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि हम लोगों का धर्म जो अन्य धर्मों की अपेक्षा सत्व के अधिक निकट है, यही एक प्रधान युक्ति है। हम लोगों पर धर्म कभी दूसरे धर्म को विजय करने में प्रवृत्त नहीं होता, यह कभी दूसरों का खून नहीं बहाता इसने सदा ही आशीर्वाणी और शान्ति वाक्यों का उच्चारण किया है, सब से प्रेम और सहानुभूति की बातें कही हैं। केवल यहीं पर दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता और सहानुभूति का भाव कार्य स्वयं में परिणत हुआ है। दूसरे देशों में धर्म केवल मत मतान्तर के ही रूप में रहा है। केवल यहीं पर हिन्दू लोग मुसलमानों के लिए मस्जिद और ईसाइयों के लिए गिरजाघर बनवाते हैं। हिन्दुओं ने अपने इन उदार भावों को संसार में कई बार फैलाया है, लेकिन बहुत धीरे और अज्ञात भाव से। भारत सभी बातों में ऐसा ही करता रहा है। भारतीय चिंतन का एक लक्षण उसका शान्तभाव उसकी नीरवता उसके पीछे जो प्रबल शक्ति रही है उसे बल वाचक शब्दों से नहीं कहा जा सकता।


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