कोई ऐसी भक्ति करेगा?

June 1943

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हज़रत अबू बिन आदम की एक बार एक फरिश्ते (स्वर्ग दूत) से भेंट हुई, वह अपनी बगल में एक बहुत बड़ी पुस्तक दबाये हुए था हजरत ने फरिश्ते से पूछा-आपके हाथ में यह कौन सी पुस्तक है? और किस लिए पृथ्वी पर घूम रहे हैं? फरिश्ते ने उत्तर दिया कि में ईश्वर भक्तों की खोज किया करता हूँ और जो मिलते हैं, उनके नाम इस पुस्तक में दर्ज कर लेता हूँ। हजरत ने पूछा भाई, आपको थोड़ा कष्ट तो होगा ही, पर उस पुस्तक में यह तो देखो कि कहीं मेरा नाम भी लिखा हुआ है क्या? फरिश्ते ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया और एक पेड़ की छाया में बैठ कर पुस्तक को आदि से अन्त तक देख डाला। पर उसमें हजरत का कहीं नाम न था। स्वयं दूत चला गया। हजरत बहुत रंज करने लगे कि मैंने अपना सारा जीवन अल्लाह के लिए कुरबान कर दिया, पर सब व्यय हुआ मेरा नाम उसके भक्तों की सूची में भी न लिखा जा सका।

बहुत दिन बीत गये। हजरत को फिर एक फरिश्ते से अचानक भेंट हुई। इसका रंग ढंग भी पहले जैसा ही था, फर्क इतना ही था कि हाथ में एक बहुत ही छोटी पुस्तक थी। हजरत ने उससे भी पूछा,-भाई, तुम कौन हो? किस लिए घूम रहे हो? और जो छोटी पुस्तक तुम्हारे हाथ में है वह कैसी है। फरिश्ते ने कहा- ऐ अबू बिन आदम ! सुन, मैं स्वर्ग दूत हूँ और इस पृथ्वी पर ऐसे लोगों को तलाश करता हूँ, जिनकी भक्ति अल्लाह करता है। जो लोग ऐसे मिलते हैं उनका नाम इस छोटी पुस्तिका में दर्ज कर लेता हूँ। हजरत ने झिझकते हुए पूछा-भाई! कष्ट न हो सो मुझे यह बताओ ऐसे कितने और कौन-कौन भाग्यशाली लोग इस पृथ्वी पर हैं। स्वयं दूत ने उस छोटी पुस्तिका में लिखे हुए दस बीस नामों को एक साँस में सुना दिया इनमें सब से पहले ‘अबू बिन आदम’ का नाम था।

इस्लाम धर्म की उपरोक्त कथा एक बड़ी सच्चाई अपने अन्दर धारण किए हुए है। मुक्ति, स्वर्ग, सम्पदा आदि स्वार्थों के लिए ईश्वर का आश्रय पकड़ने वाले उसकी सेवा, पूजा, जप, कीर्तन करने वाले लोग इस संसार में बहुत हैं, इनमें बहुत से भक्त ऐसे भी मिल सकते हैं, जो दुनिया को ठगने के लिए तथा व्यापारिक आडम्बर करने के लिए हरिनाम नाम नहीं जपते, वरन् सच्चे मन से भक्ति करते हैं, तलाश किया जाय तो बेजाओं की इस भक्ति को करने वाले लोग पर्याप्त संख्या में मिल सकते हैं और इतने मिल सकते हैं, जिनकी नामावली से उस स्वर्ग दूत की सी कई पुस्तकें लिख जावें।

परन्तु आह! हजरत अबू बिन आदम जैसे तलवार की धार पर चलने वाले वे कर्मनिष्ठ कहाँ हैं जो ईश्वर की भक्ति करते, परन्तु ईश्वर उनकी भक्ति करता है। हम लोग मतलबी और खुशामदी चापलूसों पर स्वभावतः खुश रहते हैं, किन्तु यदि कोई ऐसा प्रियजन हो जो खुशामद का तो एक शब्द भी मुँह से न निकलता हो वरन् हमारी इच्छा को पूर्ण करने में, आज्ञा पालन करने के लिए अपने सर्वस्त्र की बाजी लगा देता हो तो उस व्यक्ति के लिये जितना स्नेह सत्कार हमारे मन में होगा उतना मतलबी टट्टू खुशामदी के लिए नहीं हो सकता। कोई आश्चर्य नहीं ईश्वर उन लोगों को प्रधानता देना हो जो उसकी आज्ञाओं को पालन करने में, धर्म का प्रसार करने में, अपना खून पसीना एक कर देते हैं, उत्तम आचरण रखने वाला ईमानदारी की रोटी कमाने वाले असमर्थों की सहायता करने वाला कर्म निष्ठ भले ही जप, कीर्तन, पूजा पत्री न करता हो वह ईश्वर को अधिक प्यारा होगा। दरवाजे पर पड़ा रहने वाला, पेट दिखा कर दुम हिलाने वाला श्वान भी आखिर अपने मालिक से भोजन प्राप्त कर ही लेता है पर पसीना बहाने वाले घोड़े को जिस सत्कार से भोजन मिलता है, वह बेचारे श्वान के भाग्य में कहाँ बदा है? घोड़ा न तो दुम हिलाता है और न पेट दिखाता है, वरन् शूरवीर क्षत्रिय की तरह अपना कर्तव्य पालन करने में तत्पर रहता है, उसका यह गुण उत्तम भोजन प्राप्त कराता है साथ ही मालिक का सम्मान और सत्कार भी।

संसार को ऐसे ईश्वर भक्तों की आवश्यकता है, ईश्वर को ऐसे प्रेमी चाहिए जो प्रभु की पुण्य वाटिका को ईमानदार माली की तरह अपने स्वेद कणों से सींच-सींच कर पूरा भरा रखें। स्वयं अपने आचरण का सच्चाई और ईमानदारी से परिपूर्ण रखें और दूसरों को भी उसी मार्ग में प्रवृत्त करने का प्रयत्न करें। भगवान् बुद्ध ने कहा था “मुझे तब तक मुक्ति नहीं चाहिए जब तक इस लोक में एक प्राणी बन्धन ग्रस्त है।” महाप्रभु ईसा ने मुक्ति नहीं चाही वरन् अज्ञान ग्रस्तों के पापों का बोझ अपने सिर पर लेकर असह्य वेदना सहन करने के लिए क्रूस पर चढ़ गये। आशिक वह है जो खून देने को तैयार रहे। दूध पीने वाले मजनू तो चाहे जितने मिल सकते हैं।

इस पुण्य भूमि को छप्पन लाख पेशेवर और उनसे कई गुने बिना पेशेवर भक्त मौजूद हैं। स्वर्ग दूत की हजारों पुस्तकें उनकी नामावली से भरी जा सकती है। हमारी पीड़ित, दीन हीन, दुखिया, मातृभूमि को ऐसे भक्तों की आवश्यकता है, जो स्वर्ग को कल्पना के नशे में झुकना छोड़ कर, नरक बनी हुई भूमि को स्वर्ग बनाने में अपना सर्वस्व निछावर कर दे। हजरत अबू बिन आदम वाली स्वर्ग दूत की छोटी पुस्तक खाली पड़ी है। ऐसे माई के लाल बहुत कठिनता से मिलते हैं, जिनकी भक्ति करने के लिए ईश्वर फिर प्रतीक्षा में बैठा हुआ है। अखण्ड ज्योति के पाठकों में से क्या कोई ऐसी भक्ति करेगा?


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