मौन उपदेश

June 1943

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उपदेश किस प्रकार दिया जाता है, शिक्षा पैसे की जाती है? क्या मंच पर से श्रोताओं को व्याख्यान पर व्याख्यान सुनाकर उन्हें ज्ञान दिया जा सकता है? उपदेश का अर्थ है ज्ञान का सामाजिक विवरण। वास्तव में यह तो केवल एकान्त में ही हो सकता है। जो मनुष्य घंटे तक व्याख्यान सुनता है, पर जिसे उसके द्वारा अपने दैनिक जीवन को बदलने की कोई प्रेरणा नहीं मिलती उसके लिए सचमुच व्याख्यान का क्या मूल्य है? इसकी उस मनुष्य से तुलना करो जो घड़ी भर के लिए ही किसी महात्मा की शरण में बैठता है, किन्तु इतने ही से उसके जीवन का सारा दृष्टिकोण बदल जाता है। कौन सी शिक्षा उत्तम है? प्रभावहीन होकर जोर से व्याख्यान देना या चुपचाप शान्तिपूर्वक आध्यात्म ज्ञान का प्रसार करना।

अच्छा, भाषण का उद्गम क्या है? मूल, सब का मूल है शुद्ध ज्ञान। उससे अहंकार ही उत्पत्ति होती है, फिर अहंकार से विचार प्रकट होते है और अन्त में ये शब्दों का रूप धारण करते हैं। इस प्रकार शब्द उस आदि स्रोत के प्रपोत्र के भी पुत्र हैं। यदि शब्दों का कोई मूल्य हो सकता है तो स्वयं निर्णय करो कि मौन उपदेश का प्रभाव कितना शक्तिशाली न होता होगा।

-श्री रमन महर्षि,


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