नागरिकता में देशभक्ति

June 1943

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(श्री प्रकाश जी एम.एल.ए.)

“मेरे दादा की मृत्यु एक ऐसी दुर्घटना के कारण हुई, जिसका प्रतिबन्ध सहज में ही हो सकता था। किसी ने सड़क पर लापरवाही से नारंगी का छिलका फेंक दिया था, उसी पर फिसल कर वे गिर गये। उनका स्वास्थ्य उस समय अच्छा नहीं था। गिरने से बहुत बड़ा धक्का लगा और वे फिर अच्छे नहीं हुए।”

-सी. एफ .एण्डूरुज,

नागरिकता बड़ी सरल वस्तु है अगर हम केवल इस बात को याद रखें कि दूसरों के साथ हम वैसा ही व्यवहार करें जैसी हम आशा रखते हैं कि दूसरे हमारे साथ करें। साधारण तौर से मनुष्य का वही भाव रहता है कि वह अपनी न्यायपालिका सुविधा देखता है और इसकी चिन्ता नहीं करता कि उसकी लापरवाही का परिणाम दूसरों के लिए क्या होगा ? खूब हम अपने मकान में सड़क पर या अन्य निजी या सार्वजनिक स्थान में जाते हैं या रेल पर सफर करते हैं तो हमारे सामने सदा अपने भाइयों की लापरवाही का नतीजा देख पड़ता है जिसके कारण दूसरों की जान खतरे में डाल दी जाती है। नारंगी का छिलका तो बड़ी ही निर्दोष वस्तु मालूम पड़ती है और अपने स्थान पर बड़ा सुन्दर भी होता है, परन्तु वही छिलका यदि अविवेक के साथ अनुपयुक्त स्थान पर फेंक दिया जाय तो खासा भयानक हो जाता है।

अच्छा नागरिक सदा इसका विचार रखता है कि दूसरे को उसके कारण अनावश्यक सुविधा या क्षति न पहुँचे। भारत में सबसे से बड़ी आवश्यकता यह है कि हमारे घर सुव्यवस्थित हों। घरों में ही बच्चे पाले जाते हैं और वहीं उन्हें अच्छे और सच्चे नागरिक बनने की शिक्षा दी जा सकती है। माता-पिता बाल्यावस्था में जो छोटी-छोटी पर अत्यंत आवश्यक बातों की शिक्षा देते हैं वह मन में जम जाती है और अपने जीवन का अंग हो जाती है। इसके सामने स्कूलों, कालेजों की शिक्षा, यहाँ तक कि आगे चलकर जीवन के कटु अनुभवों की भी शिक्षा कोई चीज नहीं है। अगर हम अपने घरों को देखें तो यह पाते हैं कि वहाँ सदा सभी चीजें अस्त−व्यस्त रहती हैं। सब चीजें सब जगह पर पड़ी हुई हैं और सभी काम सभी जगह लोग आदमी तात्कालिक सुविधा के अनुसार करते रहते हैं। इसी कारण फल और तरकारी के छिलके कागज के टुकड़े आदि चारों तरफ बिखरे रहते हैं और झाडू को अपना काम किये देर नहीं होती कि सारा स्थान फिर गन्दा हो जाता है। जान बूझ कर हम किसी की हानि करना नहीं चाहते पर हमें इसका ख्याल ही नहीं होता कि हम कोई अनुचित कार्य कर रहे हैं, क्योंकि हमें किसी ने बतलाया ही नहीं कि क्या करना चाहिए! बच्चे, स्त्रियाँ यहाँ तक कि वयोवृद्ध पुरुष भी घरों को सदा अस्त-व्यस्त अवस्था में रखने में सहायक होते हैं।

अपने-अपने स्थान पर हर चीज ठीक है। अस्थान में वही गंदगी है। हमें वही मिलेगा। जिसके हम योग्य है। सार्वजनिक अधिकारियों की तरफ से भी सफाई आदि का उन्हीं स्थानों में अधिक प्रबन्ध रखा जायगा जहाँ के रहने वाले उस पर जोर देते रहते हैं और खुद साफ रहते हैं जिन्हें गंदगी, गंदगी ही नहीं मालूम पड़ती जो खुद साफ नहीं रहता, उनके यहाँ सफाई कोई नहीं करता। यदि हम सदा स्मरण रखें कि छिलके, कागज आदि हमें ठीक स्थानों पर रखना चाहिए तो हमने नागरिक शास्त्र के प्रथम अध्याय की अच्छी और उपयोगी शिक्षा प्राप्त कर ली है और हम अच्छे नागरिक बनने अर्थात् सच्चा और स्थायी स्वराज्य प्राप्त करने के मान पर अग्रसर हो रहे हैं। वास्तव में सच्चा नागरिक ही सच्चा देश भक्त है।


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