(श्री दिनकर प्रसाद शुल्क “दिनकर” गोहद)
अन्तर द्वन्द मिटा ले, पगले! अन्तर द्वन्द मिटा ले।
अपलक मिलन प्रतीक्षा में रे!
अचिरल प्रताप समीक्षा में रे!
विरहा नल के प्रखरातप की-
सत् शिव सुन्दर दाक्षा में रे !
गीली नयनकोर से तरलित पल पाँवड़े बिछा ले॥ अन्तर॥
कसकों की उस चिन्मयता में,
उष्ण हो की तन्मयता में,
परम साधनामय जीवन की,
अजर अमर तर मृणमयता में,
खोज क्षितिज के विस्तृत तट पर विस्मृति विहृाखता ले॥ अन्तर॥
अकुल अधराधर के स्पन्दन-
बन खाये प्रियतम के चुम्बन।
उर की प्रति हलचल में क्षण पल,
उद्भाषित हो मधुरालिंगन।
निज का प्रिय का भेद हटा ले, जीवन ज्योति जगावे।
अन्तर द्वन्द मिटा ले पगलो। अन्तर द्वन्द मिटा ले।