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“मुझे रोटी न मिल तो मैं व्याकुल नहीं होता, पर प्रार्थना के बिना मैं पागल हो जाऊँगा। प्रार्थना भोजन की अपेक्षा करोड़ गुनी ज्यादा उपयोगी चीज है। खाना भले ही छूट जाये लेकिन प्रार्थना कभी न छूटनी चाहिये। प्रार्थना तो आत्मा का भोजन है। यदि हम पूरे दिन ईश्वर का चिन्तन किया करें तो बहुत ही अच्छा, पर चूँकि यह सबके लिए सम्भव नहीं, इसीलिए हमें प्रतिदिन कम से कम कुछ घण्टों के लिये ईश्वर स्मरण करना ही चाहिए”।
“प्रार्थना करना याचना, करना नहीं है वह तो आत्मा की सच्ची पुकार है। हम जब अपनी असमर्थता खूब समझ लेते है और सब कुछ छोड़कर ईश्वर पर भरोसा करते हैं तब उसी भावना का फल प्रार्थना है। प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता हैं। इसी से गूँगे, तुतले, मूढ़ सभी प्रार्थना कर सकते हैं, जीभ पर अमृत हो और हृदय में हलाहल हो तो जीभ का अमृत किस काम का? कागज के गुलाब से सुगन्ध कैसे निकल सकती है”।
“प्रार्थना करने का उद्देश्य ईश्वर से सम्भाषण करना एवं अन्तर आत्मा की शुद्धि के लिये प्रकाश प्राप्त करना है ताकि ईश्वर की सहायता से हम अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर सकें। प्रार्थना मन से न हो तो सब व्यर्थ है। प्रार्थना में जो कुछ बोला जाता है, उसका मनन कर अपने जीवन को वैसे ही बनाने का प्रयत्न करना चाहिये। तभी उसका पूर्ण लाभ है”।
“परलोक की बात तो जाने दीजिये, इस लोक के लिये भी प्रार्थना सुख-शाँति देने वाला साधन है। अतएव यदि हमें मनुष्य बनना है तो हमें चाहिए कि हम जीवन को प्रार्थना द्वारा रसमय और सार्थक बना डालें। इसीलिए मैं आपको सलाह दूँगा कि आप प्रार्थना से भूत की तरह लिपटे रहें।”
“मेरे सामने आने वाले राष्ट्रीय, सामाजिक अथवा राजनैतिक विकट प्रश्नों की गुत्थी का सुलझाव मुझे अपनी बुद्धि की अपेक्षा अधिक स्पष्टता और शीघ्रता से प्रार्थना द्वारा विशुद्ध अन्तःकरण से मिल जाता है।”
-महात्मा गाँधी,
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