हम पेट और प्रजनन में ही कोल्हू का बैल न बन जायें।पूरा जीवन ही खपजाये, क्षति का वह मार्ग न अपनायें॥
परिवार पालना यह माना पावन-कर्त्तव्य हमारा है।लेकिन परिवार पालने के ही लिये न जीवन सारा हैं॥संसार न इतना छोटा-सा, इस सीमा से बाहर आयें।हम पेट और प्रजनन में ही कोल्हू का बैल न बन जायें॥
हम पर समाज का ऋण भी है, इस ऋण का भी कुछ ध्यान रहे।सामाजिक कर्त्तव्यों का भी, हमको थोड़ा-सा ज्ञान रहे॥।फँस लोभ-मोह के चक्कर में अपना कर्त्तव्य न बिसरायें।पूरा जीवन ही खप जाये, क्षति का वह मार्ग न अपनायें॥
सांसों का, श्रम का, साधन का, सेवा में अंश लगायें हम।आश्रम विधान की परम्परा की गरिमा को अपनायें हम॥देकर समाज को समयदान, जन-सेवा को आगे आयें।हम पेट और प्रजनन में ही कोल्हू का बैल न बन जायें॥
परिव्राजक, देव, भ्रमण बनकर, घर-घर में अलख जगायें हम।खुद जाकर जन-जन के द्वारे, तम नाशक ज्योति जलायें हम॥फिर ज्ञान यज्ञ की ले मशाल, घर-घर प्रकाश हम पहुँचायें।पूरा जीवन ही खप जाये, क्षति का वह मार्ग न अपनायें।
-मंगल विजय
*समाप्त*