पितरों के प्रति कृतज्ञ रहें।

March 1979

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प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक सुकरात का कहना था कि मुझे सदैव कोई एक ‘डेमन’ निकट भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का आभास दे जाता है।

अमेरिका के एक ट्रेन ड्राइवर होरेस एल. सीवर ने अदृश्य सत्ता के ऐसे ही संकेतों को पाने की ख्याति अर्जित की थी और “किंग आफ द रोड़” कहलाने लगे थे। सन् 1890 में जब वे एक सैन्य दल लेकर इलिनास से शिकागो जा रहे थे, उन्हें इसी अज्ञात मार्गदर्शन ने बताया कि आगे खतरा है। होरेस ने गाड़ी रोक दी। पहले तो दल के कमाँडर बहुत क्रुद्ध हुए किन्तु थोड़ी खोज होने के बाद जब होरेस का पूर्वाभास सही निकला, तब सब लोग चकित भी हुए और कृतज्ञता का अनुभव भी किया। एक अन्य अवसर पर इन्हें सामने से आर रही एक गाड़ी का मीलों पहले पूर्वाभास हो गया। उन्होंने अपनी गाड़ी जो आगे बढ़ रही थी, रोक कर फिर पीछे चलाना शुरू कर दिया। वह गाड़ी आई टक्कर लगी। किन्तु एक ही दिशा होने और सतर्क रहने के कारण विशेष क्षति नहीं हुई।

अदृश्य सत्ता द्वारा मार्ग दर्शन की ऐसी घटनाओं के आये दिन प्रमाण मिलते रहते हैं। जिनमें सम्बद्ध व्यक्ति अनिष्ट से बचने और अभीष्ट को प्राप्त करने में समर्थ होते रहते हैं।

महारानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अलबर्ट मृत्यु के उपरान्त भी अपनी प्रिय पत्नी से संपर्क बनाये रहें और समय-समय पर बहुमूल्य सुझाव देते रहे।

नेपोलियन जब सेंट हेलेना में निर्वासित जीवन बिता रहा था, तो उसकी मृत पत्नी जोसेफाइन की आत्मा ने उसे उसकी मृत्यु की पूर्व सूचना दी थी। प्रख्यात उपन्यासकार राजा राधिकारमण सिंह रियासतों-रजवाड़ों की समाप्ति के बाद धनाभाव से पीड़ित थे। कन्या विवाह योग्य हो गई थी। आखिर उनकी दिवंगत माता ने उन्हें मीडियम के द्वारा जानकारी दी कि रत्न-आभूषण आदि महल की दक्षिणी दीवार में गोशाला के छप्पर के पास हैं। रजा साहब ने निर्दिष्ट स्थान में खोदकर धन पा लिया ओर अपनी चिन्ताओं से मुक्त हुए।

अमेरिका में कंसास सिटी के नागरिक आर्थक स्टिलवेल को उनकी पूर्वाभास क्षमता या अदृश्य के मार्गदर्शन ने दरिद्रावस्था से उबार कर लखपति बना दिया। वह पहले रेल ड्राइवरी, क्लर्की आदि करता रहा।

पन्द्रह वर्ष की आयु से ही उसे कुछ आवाजें सुनाई पड़ती। बार-बार सुनने पर वह उन्हें डायरी में नोट करने लगा। एक बार उसने नोट किया कि एक आवाज ने चार वर्ष के अन्दर जिनी नामक लड़की से उसके विवाह की घोषणा की है। जब वह इस नाम की लड़की को जानता भी न था। सहसा वह उसके जीवन में आई और भविष्य वाणी सही सिद्ध हो गई।

आगे चल कर वही एक आवाज उसे बार-बार सुझाव देने लगी कि तुम यह बाबूगिरी छोड़ो और रेल की पटरियाँ बनो का काम शुरू करो। लम्बी कशमकश के बाद पति-पत्नी दोनों ने सलाह की और पति ने नौकरी छोड़ दी। कसास सिटी की एक फर्म की दलाली शुरू की। आवाज उसका मार्ग दर्शन करती रही। उसने कर्ज दिया और उस मार्गदर्शन के अनुसार पटरी-निर्माण की योजना शुरू की। इस कार्य में उसे आश्चर्यजनक सफलता मिली और सात वर्ष के भीतर वह लखपति बन गया।

स्नेही मृतात्माओं द्वारा अपने प्रियपात्र के मार्ग-दर्शन और सहायता-अनुदान की छोटी बड़ी घटनाएँ जाये और उनके विवरण एकत्र किये जायें तो यह स्पष्ट हो सकता है कि भूतों के आतंक- उपद्रवों की तुलना में सूक्ष्म शरीर धारियों के स्नेह सहयोग की घटनाएँ कम नहीं है।

आम तौर से यह धारणा लोगों में घर कर गयी है कि सूक्ष्म शरीर, धारी ये लोग मनुष्यों को हानि ही पहुँचाते हैं। किन्तु यह धारणा सही नहीं है। भली-बुरी दोनों प्रवृत्तियाँ सृष्टि में सब जगह क्रियाशील देखी जाती है। तब फिर सभी सूक्ष्म देहधारी बुरे पीड़ादायक या दुष्ट क्रूर ही हों यह कैसे सम्भव हैं।

जिस प्रकार संसार में सन्त दुर्जन ही नहीं। सज्जनों उदार अन्तःकरण बालों की भी संख्या यहाँ पर्याप्त है। दूसरों का उपकार करने की सदाशयता तो सामान्यतः अधिकाँश लोगों में होती है। ऐसे ब्राह्मण वृत्ति लोगों की भी कमी नहीं हैं जो सदा अपनी श्रेष्ठ शक्तियाँ दूसरों की मदद में ही लगाते रहते हैं। उसी प्रकार सूक्ष्म शरीर धारी जीवात्माएँ भी भिन्न-भिन्न प्रकृति की होती है। विक्षुब्ध अशांत उद्विग्न मनुष्य भरने के बाद भी क्रूरकर्मों और आततायी गतिविधियों में सर लेते रह सकते हैं। किन्तु अपने प्रियजनों के प्रति सद्भाव रखकर उन्हें सहायता पहुँचाने वाले पितर भी होते हैं और ऐसे उदात्त स्वभाव के पितर भी जो सूक्ष्म शरीर धारी ब्राह्मण ही कहे जा सकते हैं। ये देवतुल्य जीवात्माएँ सत्पात्रों को बिना किसी पूर्व सम्बन्ध के भी सहायता पहुँचाती और मार्गदर्शन करती है।

हर मृत व्यक्ति उपद्रवी भूत ही बने, यह कतई जरूरी नहीं। वह पितर रूप में दयालु, पथप्रदर्शक और उदार दानी भी हो सकता है और व्यक्तियों को कई प्रकार से लाभ पहुँचा सकता है। जिन्हें दैवी शक्तियाँ, देवात्माएँ देवता आदि कहते हैं वे उच्चकोटि की आत्माएँ ही हैं। हमारे पूर्वज ऋषियों की ये आत्माएँ हमारी श्रद्धा के अनुसार सहयोग देकर प्रगति पथ में बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। ये करुणार्द्र आत्माएँ अपनी सामर्थ्य और शक्तियाँ पीड़ितों के उद्धार के लिये खर्च करने को आतुर रहती हैं। पिछड़ों को आगे बढ़ाने और पतितों की ऊपर उठाने की उनमें ललक रहती है। सन्तप्त व्यक्तियों को शीतलता शान्ति पहुँचाने के लिये वे सदा तत्पर रहती हैं। बादलों की तरह वे हर प्यासी भूमि पर पानी बरसाने को सदा दौड़ती रहती हैं। परन्तु वे मदद कर सकें इसके लिये भावनात्मक अनुकूलता तो चाहिए ही। जो व्यक्ति भूतों से डरे नहीं प्रभावित न हो, उसका भूत कुछ नहीं बिगाड़ सकते। जहाँ उनकी घुसपैठ की गुंजाइश हो वही वे उपद्रव दिखा पाते हैं। यह प्रत्येक सूक्ष्म शरीर धारी की सीमा है कि वह संवेदनात्मक अनुकूलता होने पर ही किसी व्यक्ति से सम्बन्ध बना सकता है। क्योंकि वे मुख्यतः संवेदनाओं, भावनाओं, विचारों के ही पुँज होते हैं। अतः जिस प्रकार भूतों के प्रति कोमलता, दुर्बलता न पालना ही उन्हें उत्पात का मौका देना ही है। उसी प्रकार श्रद्धा कृतज्ञता का भाव रखना ही पितरों को सहायता कर सकने का अवसर देना है। विरोध या उपेक्षा भाव रखने पर वे भी सहायता नहीं कर सकते।

अतः पितरों को जानना उनके प्रति श्रद्धा कृतज्ञता का भाव रखना उतना ही आवश्यक है और लाभ प्रद है, जितना भूतों को हस्तक्षेप का मौका न देना, उन्हें दूर ही रहने देना। भूत भगाने से अधिक ही महत्वपूर्ण है पितर बुलाना, पितरों से संपर्क रखना, सौहार्द्र स्थापित करना भूतों से डरा न जाये, तो वे कुछ न बिगाड़ सकेंगे। पितरों के प्रति सद्भाव न रहा, तो वे कुछ न सुधार सकेंगे।

जिनमें पितरों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा की प्रवृत्तियाँ होती है उन्हें ही वे सहयोग प्रदान कर पाती है। यह सहयोग संकटों की पूर्व सूचना देने, उन्नति-अवनति का पूर्व ज्ञान कराने आसन्न खतरों से बचने का उपाय बनाने लाभकारी कदम सुझाने और स्पष्ट सहायता करने जैसे अनेक रूपों में सामने आता है।

सम्राट एडवर्ड सप्तम की पत्नी महारानी एलेक्जेन्ड्रा पितरों से संपर्क में विश्वास करती थी। उन्हें एक ‘सेयान्स’ में एक पितर ने सूचना दी कि उनके पति अब कुछ ही दिनों जीवित रह सकेंगे और अपने जन्मस्थान कोबे में वे प्राणत्याग देंगे। उन दिनों सम्राट कोबे में ही थे। महारानी दूसरे ही दिन वहाँ के लिये चल पड़ी। तैयारी करते करते खबर मिली की सम्राट बीमार हैं। महारानी कोवे पहुँची तो रोग शय्या पर पड़े मूर्च्छित सम्राट ने मानों उन्हें देखने के लिये ही आँखें खोली। कुछ पल देखते रहे और फिर उनके प्राण पखेरू उड़ गये।

प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुँशी को भी सूक्ष्म शरीरधारियों प्रति कोमलता के भाव रखने से कई-बार बहुमूल्य जानकारियाँ प्राप्त हुई। भारतीय पत्रिका में वे भारतीय विद्याभवन के कुलपति के नाते नियमित एक स्तम्भ लिखते थे। इसमें उन्होंने पितरों से प्राप्त इन सहयोगों की चर्चा करते हुए बताया था कि बीजापुर जेल में उन्हें रहने के लिए उस कोठरी में भेज दिया गया, जहाँ पहले फाँसी लगा करती थी। यहाँ एक मृतात्मा ने जिसे वही फाँसी लगाई गयी थी। वहाँ एक मृतात्मा ने जिसे वही फाँसी लगाई गई थी, उन्हें सूचना दी कि आप शीघ्र जेल से मुक्त होने वाले हैं। परन्तु फिर जल्दी ही दुबारा जेल में भेजे जायेंगे। यही हुआ। वहाँ से वे छोड़े गये ओर छूटने पर डाँडी यात्रा में सम्मिलित हुए। अतः फिर बन्दी बनाये गये और कारावास का दण्ड दिया गया। श्री मुँशी ने यह भी लिखा है कि एक बार आवाहन करने पर लोकमान्य तिलक की आत्मा ने उनसे संपर्क किया था और यह संदेश दिया था कि मातृभूमि की स्वाधीनता के लिये संघर्ष करने वालों को मैं सहायता प्रदान करता रहूँगा।

इस प्रकार स्नेह पूर्ण उदार पितरों से बहूमूल्य सुझाव, सूचनाएँ, पथ निर्देश, जानकारियाँ और सहायता ही नहीं प्रण अनुदान तथा शक्ति तक प्राप्त होती है। वे सूक्ष्म शरीर धारी साधु ब्राह्मण भी होते हैं। उनको स्मरण और वन्दन उपयोगी व लाभकारी होता है उनकी मदद और मार्ग निर्देश, कृपा और करुणा जीवन में आगे बढ़ने, ऊँचा उठने में सहायता शक्ति बनकर प्राप्त हो सकती है। आवश्यकता उनके प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा का भाव रखने की है।


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