सदाचरण में दीर्घ जीवन की प्राप्ति

March 1979

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स्वस्थ शरीर एवं दीर्घ जीवन की अपेक्षा सभी करते है पर इन विभूतियों को प्राप्त करने के लिए क्या करना होता है यह भूल जाते हैं। आहार बिहार का संयम इसके लिए नितान्त आवश्यक है। नियमित दिनचर्या और प्रकृति मर्यादा को ध्यान में रखकर चलने से आरोग्य की रक्षा होती है तथा दीर्घ-आया की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त एक और भी आत अधिक महत्वपूर्ण है वह यह है कि मस्तिष्कीय सन्तुलन और आत्म संतोष बनाये रखने के लिए सदाचारी जीवन जिया जाय। विवेक और औचित्य का ध्यान रखते हुए धर्म-मर्यादाओं का पालन किया जाय। मन का शरीर पर नियंत्रण होना आवश्यक है। उत्कृष्ट चिन्तन एवं आदर्श कर्तृत्व अपनाने पर ही मानसिक सन्तुलन ठीक रहता है तथा दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। इस संदर्भ में शास्त्र कहते हैं -

य एवं शत वर्षाणि जीवति यो वा। भूयाँसि जीवन्ति सह एतद्मृतं प्राप्नोति।। (शतपथ ब्रा.)

सन्मार्ग गामी मनुष्य सौ वर्ष जीता है और अमृतत्व प्राप्त करता है।

ऋषि वशिष्ठ कहते हैं-

सर्वलक्षण हीनाऽपियः सदाचारवान् भवेत्। श्रद्धानोऽनसूयष्च षतं वर्षागि जीवति॥

अन्य विशेषताओं के न होने पर भी यदि मनुष्य आचरणवान है तो उस श्रद्धा के आधार पर भी सौ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेगा।

महाभारत में वर्णन है-

आचाराल्लभते ध्यायुराचारल्लभते श्रियम। आचारात् कीर्तिमाप्नोति पुरुषःप्रेत्य चेहच॥ (अनुशासन पर्व)

सदाचार से ही मनुष्य दीर्घायु होता है सदाचार से सम्पत्ति पाता। तथा सदाचार से ही उसे इह लोक एवं परलोक में कीर्ति प्राप्त होती है।

मार्दव सर्वभूतानाम् अनसूया क्षमा धृति। आयुष्याणि वुधाः प्राहुमियाणाँ चाविमानिनः॥ (महा. भा. उद्यी. प.)

सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति दया का भाव, किसी के गुणों में दोष न देखना, क्षमा, धैर्य, मित्रों का अपमान न करना, ये सब गुण आयु को बढ़ाने वाले हैं। विद्वानों का ऐसा मत है।

दुराचारी हि पुरुष की निन्दा करते हुए शास्त्र में वर्णन आता है-

दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निम्दितः। दुःख भागी च सततं व्याधितोऽज्पाय रंव च॥ (विष्णु पुराण)

आचार भ्रष्ट पुरुष जन समाज में निन्दा का पात्र होता है तथा सदा ही दुखी रहता है। रोग से जराजीर्ण हो अल्प आयु तक जीवित रहता है।

लक्षणैः परिहीनोऽपि सम्यगाचार तत्परः। श्रद्धालुरनसूयश्च नरो जीवेत् समाः शतम्॥

छुषचाररते लोके गर्हणीयः पुमान् भवेत्। व्याधि भिष्चाभिभूयेत् सदाल्पायुः सुदुः खभाक्॥

आचारः परमो धर्म आचारः परम तपः। आचारर्द्वधते ह्मायुराचारात् पाप संक्षयः॥ (स्केन्द्र)

देखने में सुन्दर न होने पर भी सदाचार युक्त होने से मनुष्य दीर्घजीवी हो सकता है तथा आचरणभ्रष्ट मानव सुलक्षण होने पर भी रोगाक्रांत, अल्पायु रहता और दुख भोगता है। सदाचार से आयु बढ़ती तथा पापों का नाश होता है।


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