“वह इधर ही गयी होगी! कुछ भी नहीं रहने दिया है उसने। सब अपने साथ समेट ले गयी है, किसी ने अत्यन्त उद्वेग भरे स्वर में चिन्ता प्रकट की।
“हम तो सर्वथा अकिंचन ही हो गये दूसरा स्वर उभरा। साथ ही आश्वस्त भाव भी-”पर वह इस बनखंड़ से भाग कर जायेगी कहाँ? कितने अमूल्य थे हमारे रत्नाभरण। हम उसके लिए उरुबल का कोना-कोना छान मारेंगे।
घटना उरुबल की हैं। कुछ लोग वन बिहार के लिए आये थे-साथ में रूपजीवा वेश्याओं को लेकर। रागरंग में आकंठ डूबे, अपनी सुध-बुद्ध धनाढ्य पुरुषों को विलास मग्न देखकर कोई वेश्या उनके सब रत्नाभूषण चुरा कर भाग निकली थी। सुध आने पर वे लोग उसी की खोज करने के लिए वन का पत्ता-पत्ता छानने के लिए निकल पड़े थे।
वन के उस भाग में प्रवेश करते ही उन्होंने विशेष शाँति का अनुभव किया। कुछ दूर जाने पर उन पुरुषों ने एक दिव्य पुरुष को घने वृक्ष की छांव में पद्मासन लगाये बैठे हुए देखा। यह दिव्यपुरुष और कोई नहीं भगवान बुद्ध ही थे।
रत्नाभूषण चले जाने के क्षोभ से विक्षुब्ध पुरुष चोर कर्म करने वाली रूपजीवा को खोजते हुए भगवान बुद्ध के समीप पहुँचे थे। भगवान बुद्ध के तेजोदीप्त दिव्य आभा पूरित परम शान्त मुख मण्डल को देखकर अनायास ही अभिभूत हो उठे और उन्होंने उस दिव्यमूर्ति की चरण धूली अपने मस्तक से लगा दी। भगवान के कृश शरीर की स्वर्णित प्रदीप्ति से विमुग्ध हो गये थे।
आपने उसको इधर से जाते देखा है- “भद्रवर्गीय पुरुषों ने भगवान बुद्ध से निवेदन किया।”
“मुझे अपने आपके सिवा दूसरा दीख ही नहीं रहा है मित्रों! इतना ही सत्य है”-कह कर भगवान मौन हो गये।
‘भत्ते हमारा आशय एक स्त्री से है। एक ने कहा।
‘कैसी स्त्री? भगवान बुद्ध की परमपवित्र दृष्टि भद्रगणों पर टिक गयी। उनके दृष्टिपात से ही भद्रगण आहत हो उठे। लगा, वे अनुचित कर्म के कारण पीड़ित है। वह कर्म और उसकी हानि भगवान बुद्ध की दृष्टि से छिपी नहीं रह गयी हैं एक ने कहा-वह वेश्या है भत्ते। हम लोग अपनी-अपनी पत्नियों के साथ वन बिहार के लिए आये थे। पत्नी के अभाव में एक मित्र के मनोरंजन के लिए वह वेश्या हमारे पास थी। विशेष राग-रंग में लिप्त देखकर वह हमारे रत्नालंकार लेकर इसी वन खण्ड में निकल कर छुप गयी है। हमें उसी की खोज है।
वन बिहार मनोरंजन किस लिए भद्र मंदस्थित मुस्कान के साथ भगवान बुद्ध ने कहा। मुस्कान ने उन लोगों के मर्मबेध दिये। प्रतीत हुआ अपराध पकड़ा गया। सकुचाते हुए वे कुछ न कह सके। फिर भगवान ने प्रथम ही कहा-आनन्द के लिए ही न!
तो भद्रो! जगत के विषय-भोग और सुख तो नश्वर और क्षणिक हैं। उनसे नश्वर और क्षणिक आनन्द ही मिलेगा। उनके पीछे उन्मत्त भाव से दौड़ने पर इसी प्रकार पश्चात्ताप, हानि तथा क्षोभ के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलने का।
‘शाश्वत आनन्द तो शाश्वत सत्य से ही प्राप्य हैं। शाश्वत सत्य केवल आत्मा ही है। तुमने उसे खोजा होता तो रत्नालंकार का दुःख नहीं झेलना पड़ता’-भगवान बुद्ध ने कहा।
भद्रवर्गीयों के धर्म चक्षु खुले। रत्नालंकार की चिन्ता छोड़कर उन्होंने कहा-”ठीक है भत्ते! हमें स्त्री की आवश्यकता नहीं है आत्मा की खोज करनी है।”
और उन्होंने भगवान से प्रव्रज्या उपसम्पदा की याचना की।