उपार्जन का सदुपयोग भी

October 1977

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

उपार्जन में उत्साह होना सराहनीय है। इससे पुरुषार्थ जगता है, पराक्रम में प्रखरता आती है, प्रगति सम्भावनाएँ साकार होती है और सफलताओं का आनन्द मिलता है। उपार्जन के लिए उमंग न रहने पर मनुष्य अन्यमनस्क रहने लगता है और उदासीन की प्रतिक्रिया पक्षाघात की अपंगता जैसी हानिकारक सिद्ध होती है।

इतना होते हुये भी और भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जो उपलब्ध है उसका मूल्यांकन किया जाय और यह सोचा जाए कि जो हाथ में है उसका श्रेष्ठतम उपयोग कैसे किया जा सकता है? यह विवेक वृद्धि न हो तो उपार्जन का उत्साह अधिक संचय की सुविधा तो देगा, पर सदुपयोग की बात न रहने पर उपलब्ध वैभव या तो निरर्थक चला जायेगा या फिर अनर्थ मूलक दुष्परिणाम उत्पन्न करेगा।

जितना महत्त्वपूर्ण प्रगति के लिए प्रयत्न करना है, उससे भी अधिक आवश्यक यह है कि हाथ के साधनों पर नये सिरे से विचार करें और यह देखें कि उनका अनावश्यक संचय तो नहीं हो रहा है? इसका अपव्यय या दुरुपयोग तो नहीं चल रहा है? ऐसा कुछ लगे तो उन छिद्रों को बन्द करने की बात सोचनी चाहिए, जिसके कारण अब तक के प्रयत्नों का परिणाम निरर्थक नष्ट होने एवं हानिकारक प्रतिक्रिया उत्पन्न होने का खतरा निश्चित है।

उपार्जन और उपयोग यह दोनों ही तथ्य समान महत्त्व के हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक है। एक के बिना दूसरा अपंग है। अस्तु आगे बढ़ने और अधिक कमाने की जागृत आकांक्षा के साथ उस विवेकशीलता को भी जगाना चाहिए, जो उपलब्ध साधनों को सत्प्रयोजनों में लगाने की चेतावनी देती है। छलनी में दूध दुहने से तो प्रगति के लिए किया गया श्रम, मात्र थकान और पश्चाताप ही दे सकेगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118