यश और धन तब भयंकर दैत्य बन जाते हैं

October 1977

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भावनात्मक सन्तुलन और मानसिक सन्तोष यदि प्राप्त न किया जा सके तो अपार सम्पदा और दिगन्त व्यापी प्रसिद्धि भी अभीष्ट सुख नहीं दे सकती। समझा जाता है कि सभी कठिनाइयों का हल और कष्टों का निदान सम्पत्ति है। यदि पास में पैसा हो तो उससे दुनिया की हर चीज खरीदी जा सकती हैं और प्रसिद्धि से मनुष्य अपने नाम को अमर करने का उद्देश्य पूरा कर सकता है। लेकिन ये उपलब्धियाँ भी मनुष्य को सुखी नहीं बना सकती हैं यदि आन्तरिक क्षेत्र में सन्तुलन न लाया जा सके तो उल्टे मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ता है। जो जिन्दगी सामान्य ढंग से बिताई जा सकती थी और अभावों को सहन किया जा सकता था, अपमान बर्दाश्त हो सकता था, उपेक्षा बर्दाश्त की जा सकती थी वही जिन्दा या समृद्धि और प्रसिद्ध के बावजूद भी नरक की यातनाओं में झुलसने लगती है और आदमी के सामने आत्म-हत्या जैसा कृत्य करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह जाता।

घटना सन् 1962 की है। क्या अमरीकी और क्या गैर अमरीकी सभी फिल्म दर्शकों की जबान पर मर्लिन-मनरो की चर्चा थी। उस वर्ष 5 अगस्त को यह अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने वाली, फिल्म प्रेमियों की चहेती अभिनेत्री प्रातःकाल अपनी कोठी में मृत पायी गयी थी। इस अभिनेत्री के पास बताते हैं कि इतनी दौलत थी, जिससे वह विश्व के सर्वाधिक सम्पन्न व्यक्तियों की गणना में आ जाती थी। उनसे भी अधिक महत्त्व था उसका। क्योंकि दुनिया का हर अमीर तो धनवान होने के साथ-साथ रसिक स्वभाव का भी था मर्लिन पर अपनी जान छिड़कता था। अमीर से अमीर और गरीब से गरीब व्यक्ति जो भी उनकी चर्चा सुनता उसकी एक झलक पाने के लिए बेचैन हो जाता। इस स्थिति को देखते हुए जब लोगों ने देखा कि मर्लिन अपनी कोठी में मृत पायी गयी हैं तो बिना सोचे समझे कह उठे उससे ईर्ष्या रखने वाली अभिनेत्रियों ने अथवा उसके निकटवर्ती लोगों ने उसकी सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए मार डाला।

लेकिन वास्तविकता और ही थी। इस बात की पुष्टि कई प्रमाणों से हो गयी थी कि मर्लिन को किसी ने मारा नहीं है, वरन् उसने आत्म-हत्या कर ली है। कोई अभाव, कोई मानसिक आघात या कोई ऐसी घटना नहीं घटी थी जिससे दुखी होकर वह आत्महत्या कर ले पर उसने आत्महत्या की थी- यह सच है। आत्महत्या के कारणों को लेकर कई अनुमान लगाये गये। उनमें सबसे अधिक तर्क संगत कारण यह बताया गया है कि मर्लिन अपनी मानसिक उलझनों में इतनी अधिक ग्रसित हो गयी थी कि उसके सामने उनसे छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या के अतिरिक्त कोई और चारा नहीं रहा।

मरलिन का बचपन बड़ी कठिनाइयों में गुजारा था। उसकी माँ आर्थिक तंगियों और पारिवारिक उलझनों के कारण इतनी दुःखी रही कि पागल हो गयी। मरलिन जब सात-आठ वर्ष की थी तो उसकी माँ पर पागलपन का भयानक दौरा पड़ा और इस कारण उसे पागल खाने भेज दिया गया। सात-आठ वर्ष की बालिका मरलिन अकेली रह गयी, न उसके खाने का कोई ठिकाना रहा न रहने का। कुछ लोगों ने दया के वशीभूत होकर उसे अनाथालय भेज दिया। विडम्बना तो यह कि तब उस बालिका का कोई निश्चित नाम भी नहीं था। उसे नारमा के नाम से अनाथालय में भर्ती करवाया गया। अनाथालय में वह करीब एक साल तक रही। साल भर बाद ठीक होकर नारमा की माँ आ गयी और अपनी लाड़ली को अपने साथ रखने लगी। नारमा की माँ ग्लैडिशबेकर ने एक फिल्म स्टूडियो में रील काटने की नौकरी कर ली थी। इसके बदले जो भी मिलता उससे माँ बेटी अपना गुजारा करतीं।

अभी माँ के संरक्षण में रहते नारमा को एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि माँ फिर पागल हो गयी। ग्लैडिशबेकर को पुनः अस्पताल भेज दिया गया। नारमा फिर अनाथ हो गयी। इस बार ग्लैडिशबेकर के एक मित्र ने नारमा को अपने घर पर रखा लिया। उसे अनाथालय नहीं जाने दिया। श्री गोडार्ड ने अपनी पत्नी से इस बच्ची को बेटी के समान समझने और उसी तरह रखने के लिए कहा। तथा इस मित्र परिवार में जैसे नारमा को अपना खोया हुआ माता-पिता का प्यार मिल गया।

किशोरावस्था की ही एक घटना ने उसे यह मानने के लिए मजबूर कर दिया कि दुनिया में स्वार्थी लोग भरे पड़े हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी की भावनाओं से क्रूर मजाक कर सकते हैं ।इस अनुभव ने उसे पैसा कमाने तथा प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया ताकि वह भी इस स्वार्थी संसार में इज्जत के साथ जी सके। मरलिन ने अपने लिए रास्ता चुना अभिनेत्री बनने का। उस समय हालीवुड की अभिनेत्रियाँ ठाट-बाट और शान-शौकत से रहने लगी थीं ।मरलिन को भी उनकी चमक-दमक ने प्रभावित किया। सुन्दर तो वह थी ही। अपनी सुन्दरता का अहसास भी उसे इतना जबर्दस्त था कि उसी के बल पर उसने फिल्म जगत में प्रवेश पाने और चमकने को स्वप्न संजोया।

गोर्डाड परिवार ने उसे पढ़ा लिखाकर योग्य बनाने के लिए स्कूल में भर्ती करवाया, पर वह अपनी सुन्दरता का जादू चलाने में ही व्यस्त रहती। यहीं से गलती आरम्भ हुई। सन् 1942 में उसने 16 वर्ष की आयु में एक स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट नवयुवक से शादी की। मरलिन चाहती थी कि उसका पति उसकी सुन्दरता के ही गुणगान किया करे, उसकी तारीफों के पुल बाँधा करे; जबकि उसका पति कामकाजी आदमी था, और मरलिन के सौंदर्य को इतना नहीं सराह पाता था जितना कि वह चाहती थी। इसी बात पर मरलिन ने अपने सम्बन्धों में तनाव पैदा किया और वर्ष बाद ही तलाक ले लिया। काश मरलिन अपने सौंदर्य को पूजने वाले के स्थान पर एक जिम्मेदार पति को गुणों की कद्र करने वाला समझती तो भले ही वह अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने वाली अभिनेत्री नहीं बनती, पर एक शान्त और सुस्थिर जीवन तो व्यतीत कर ही सकती थी।

स्वयं उसे अपनी सुन्दरता का महत्त्व नहीं मालूम था। उसे तो मरलिन एक बिकाऊ उपलब्धियाँ समझती थी जिसकी अधिक से अधिक कीमत प्राप्त करनी चाहिए। अपने पहले पति से तलाक लेकर मरलिन ने लासएंजिल्स की एक फोटोग्राफर एजेंसी में नौकरी कर ली। जो व्यापारिक विज्ञापनों के लिए लड़कियों की तस्वीरें खींचती और उन्हें व्यापारिक कम्पनियों को उनके उत्पादनों की बिक्री बढ़ाने हेतु विज्ञापनों के लिए बेच देती। इस तरह मरलिन मनरो मॉडल गर्ल्स का काम करने लगी।

सुनहरे बालों वाली, छरहरी, गठीली और सुन्दर देह-यष्टि की इस स्वामिनी ने अपनी सुन्दरता के बल पर शीघ्र ही मॉडल गर्ल के रूप में ख्याति प्राप्त कर ली। एक वर्ष में ही विज्ञापन एजेन्सियों के लिए उसका चेहरा जाना पहचाना हो गया। उसकी सुन्दरता का सम्मोहन अमेरिकी नागरिकों पर इस तरह छाया कि प्रत्येक वह चीज जिसके विज्ञापन में मरलिन का चेहरा होता था बेतहाशा लोकप्रिय होने लगी।

यह लोकप्रियता मरलिन की लोकप्रियता ही थी। इसी से प्रभावित होकर हालीवुड की एक फिल्म कम्पनी ने मरलिन की ओर हाथ बढ़ाया। यह तो वह चाहती ही थी। कुछ समय पहले उसने स्वयं फिल्म जगत में प्रवेश पाने के लिए हाथ-पैर मारे थे पर असफलता ही मिली थी। इसीलिए उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करते हुए उसने मॉडलिंग का पेशा अपना लिया था। संयोग से वह अवसर वर्ष भर में ही आ गया जब ‘ट्रवण्टियथ सेन्चुरी फोक्स’ ने उसे फिल्मों में काम करने के लिए निमन्त्रित किया। मरलिन वहाँ पहुँची और स्क्रीन टेस्ट दिया। जिस कैमरा मैन ने उसके चित्र खींचे थे, उसने मरलिन के चित्रों को देखकर यह सम्मति दी थी कि यह अभिनेत्री शीघ्र ही फिल्म दर्शकों की हृदय सामग्री बन जाएगी। उस समय मरलिन की आयु 22 वर्ष की थी। स्क्रीन टेस्ट में सफल हो जाने के बाद मरलिन को ‘स्काड हू’ नामक फिल्म के लिए अनुबन्धित कर लिया गया।

इससे पूर्व एक और घटना, उसे प्रसिद्धि दिलाने में बड़ी सहायक हुई थी। कोलम्बिया की एक कम्पनी ने उसका चित्र 50 डॉलर में खींचा था। उस कम्पनी ने मरलिन का चित्र एक कैलेण्डर छापने वाली कम्पनी को 500 डॉलर में बेच दिया। यह कैलेण्डर और उसमें चित्रित चेहरा लोगों ने इतना पसन्द किया कि उक्त कम्पनी ने इससे साढ़े सात लाख डॉलर का मुनाफ़ा कमाया। समझा जा सकता है कि फिल्म के रूपहले पर्दे पर आने से पहले मरलिन ने अपनी सुन्दरता के बल पर कितने लोगों को अपना प्रशंसक बना लिया था।

जब उसकी फिल्म बनकर तैयार हुई और प्रदर्शित हुई तो सारे सिनेमाहॉल जिनमें कि वह फिल्म चल रही थी आदि से अन्त तक दर्शकों से खचाखच भरे रहे। अपनी पहली फिल्म से ही इतनी लोकप्रियता प्राप्त कर लेने वाली मरलिन दिनों दिन ऊंचाइयों चढ़ती गयी। लेकिन जैसे-जैसे वह प्रसिद्ध होती गयी जैसे-जैसे उसके पास सम्पत्ति का अम्बार जुटने लगा, उसकी भावनाएँ असन्तुलित होने लगीं। फिल्म-जगत में रहते हुए उसने दो और विवाह किये; पर उसकी यही शिकायत रही कि मुझे सच्चा प्यार देने वाला कोई नहीं मिला। वह हमेशा ही यह कहती रहती कि मेरे पास जो भी आया और जिसने भी प्रेम करना चाहा वह या तो मेरी दौलत की ओर देखता था अथवा मेरी सुन्दर और कमनीय देह को देखकर आकृष्ट होता था।

प्रश्न उठता है कि जो शिकायत मरलिन को रही उसका कारण क्या है ? जिस सुन्दरता को मरलिन ने अभिशाप समझा उसे अभिशप्त बनाने के लिए किसी दूसरे की अपेक्षा मरलिन ही अधिक उत्तरदायी है। यदि वह प्रारम्भ में अपनी सुन्दरता को बेतहाशा दौलत कमाने का तरीका नहीं बनाती और केवल कलाकार की तरह ही जीने का प्रयत्न करती तो सम्भवतः उसके पास वह आत्मिक पूँजी भी एकत्र हो सकती थी, जिसका कि उसके पास अभाव था। यद्यपि वह कलाकार भी अच्छी थी, पर उसने अपनी कला को निखारने के स्थान पर सुन्दरता को प्रचारित करने पर अधिक ध्यान दिया। एक के बाद एक कर मरलिन ने तीन विवाह किए। पर उसे अभीष्ट सुख तीनों विवाह से नहीं मिल सका। तीसरा विवाह तो उसने प्रसिद्ध कथाकार और नाटककार आर्थर मिलर से किया था। मिलर से विवाह करने के बाद उसने स्वयं कहा था कि-जीवन में पहली बार मुझे प्रेम और सुरक्षा का आभास मिला है जिसके लिए मैं बचपन से भूखी थी। पर वह विवाह भी नहीं चल सका और शीघ्र ही दोनों में तलाक हो गया। कारण कि मरलिन ने भले ही अपना साथी बदल लिया हो और उसे पहले की अपेक्षा अच्छा साथी मिल गया हो, पर उसका अन्तःकरण तो वही था। उसकी मान्यताएँ तो सौन्दर्याभिमान से प्रेरित थीं।

36 वर्ष की आयु में बताते हैं उसने अपने चेहरे पर कहीं एकाध झुर्री देखी और यह झुर्री ही उसके लिए जानलेवा सिद्ध हुई है। उसके निकटवर्ती लोगों का कहना था कि अक्सर वह निराशावादी बातें किया करती थी और कहा करती थी कि मैं बूढ़ी हो जाऊँगी तब क्या होगा। जो लोग मेरा सौंदर्य देखकर रीझते हैं, आहें भरते हैं मेरी वृद्धावस्था के कारण वे ही लोग मेरी ओर से मुँह मोड़ लेंगे। तथा मुझे किसी एकान्त में अपना बुढ़ापा गुजारना पड़ेगा। यह स्थिति में कैसे सहन करूँगी। इन आशंकाओं से उसका भावुक हृदय घिरा रहता था। कई बार तो वह घण्टों तक शीशे के सामने बैठी रहती थी।

इस प्रकार भावनाओं का सन्तुलन बनाये रखने में असफल होने के कारण उसने अपने आसपास काल्पनिक भय के कई भूत पैदा कर लिये। वह उन भूतों को देखकर दिन-रात डरा करती, चौंक जाया करती थी। इन आशंकाओं के भूत से भयभीत होकर ही मरलिन ने एक रात ढेरों नींद की गोलियाँ खा लीं और चिर निद्रा में सो गयी। विचारशीलों का कहना है कि इतनी दौलत और इतनी ख्याति अर्जित कर मरलिन ने क्या पाया ? सिवा यातनाओं और आशंकाओं से उद्विग्न हृदय के। इससे बेहतर तो यह है कि वह अपने पास कीर्ति और सम्पत्ति के विष इकट्ठे ही नहीं करती और इकठ्ठा करना ही था तो किसी उद्देश्य के लिए उनका उपयोग करती।

सच है; सम्पत्ति और ख्याति हो पास में तथा उसके उपयोग का कोई रास्ता न हो तो ये भयानक दैत्य बन जाती हैं। आवश्यक है कि अर्जन के साथ विसर्जन की भी रूपरेखा बनायी जाय और अपनी भावनाओं को सन्तुलित साधा जाय। अन्यथा किसी विष की तरह जो विवेकपूर्वक उपयोग करने से औषधि बन जाता है, वही अविवेकपूर्वक उपयोग करने से घातक भी बन सकता है।


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