अतीन्द्रिय शक्ति और उसकी पृष्ठभूमि

October 1977

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अतीन्द्रिय ज्ञान-एक्स्ट्रा सेंसरी पर्सेप्शन-अब एक वैज्ञानिक तथ्य है। सामान्यतया पाँच ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से ज्ञान सम्पादन होता है, पर अब विश्लेषण का एक विषम छठी इन्द्रिय-सिक्सथ सेन्स-भी बन गया है। मनुष्य कई बार ऐसी जानकारियाँ प्राप्त करता है जो इन्द्रिय ज्ञान की परिधि से सर्वथा बाहर की घात होती है। कान एक सीमित शब्द ध्वनियाँ सुन सकते हैं और आँखों से सीमित प्रकाश किरणों के आधार पर बनने वाले दृश्य देखते हैं। यन्त्रों ने दूरदर्शन और दूर श्रवण को सुलभ बना दिया है तो भी बिना किसी यन्त्र उपकरण से दूरस्थ दृश्यों को देख सकना और शब्दों को सुन सकना आश्चर्य का ही विषय है।

अमेरिका के मन रोग चिकित्सक डा0 एणुरीना पुहरिच ने विचार संसार विद्या पर एक पुस्तक लिखी है- ”बियोण्ड टैलीपैथी”। उसमें उन्होंने ऐसी अनेकों घटनाओं का उल्लेख किया है जिनसे सिद्ध होता है कि कितने ही मनुष्यों को समय-समय पर दूरस्थ स्थानों पर घटित हुई घटनाओं का ज्ञान बिना किसी साधन संचार के अनायास ही होते देखा गया है।

प्रामाणिक इतिहासकार ‘हिरोडोटस’ ने ईसा से पूर्व 546-560 में हुए लीडिया के राजा क्रोशस का विवरण लिखा है। उसमें कहा गया है कि राजा अपने शत्रुओं से आतंकित था। उसने किसी भविष्यवक्ता की सहायता से रास्ता निकालने की बात सोची। प्रामाणिक भविष्यवक्ता को ढूंढ़ निकालने के लिए उनसे तत्कालीन सात प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं के पास अपने दूत भेजे और कहा जिस समय मिले उसी समय वह पूछे कि- अब ड़ड़ड़ड़ क्या कर रहे हैं? इधर राजा ने अपना घड़ी-घड़ी का कार्य विवरण लिखने की व्यवस्था कर दी।

छः के उत्तर तो गलत निकले, पर सातवें उल्फी नामक भविष्यवक्ता की बात अक्षरशः सही निकली उसने दूत के बिना पूछे ही बताया-”क्रोशस इस समय पीतल के बर्तन में कछुए और भेड़ का मिला हुआ माँस भून रहा है।” पीछे राजा ने उस भविष्यवक्ता को बुलाया ओर उसके परामर्श से-कठिनाइयों से त्राण पाया।

इटली के एक पादरी अलोफ्रोन्सस लिगारी ने अर्धमूर्छित स्थिति में दिवा स्वप्न देखा कि “ठीक उसी समय रोम के बड़े पोप का स्वर्गवास हो गया है।”

उन दिनों सन् 1774 में यातायात या डाक-तार का भी कोई प्रबन्ध न था। इतनी दूर की किसी घटना की ऐसी जानकारी जब उनने अपने शिष्यों को सुनाई तो किसी को इसका कोई आधार प्रतीत नहीं हुआ। बड़े पोप बीमार भी नहीं थे फिर अचानक ऐसी यह मृत्यु किसी प्रकार हो सकती है? कुछ ही दिन बाद समाचार मिला कि पोप की ठीक उसी समय वैसी ही स्थिति में मृत्यु हुई थी जैसी कि लिगाडरी ने विस्तारपूर्वक बताई थी।

सन् 1759 की वह घटना प्रामाणिक उल्लेखों में दर्ज है जिसके अनुसार स्वीडन के इमेनुअल स्वीडन वर्ग नामक साधक ने सैकड़ों मील दूर पर ठीक उसी समय हो रहे भयंकर अग्निकाण्ड का सुविस्तृत विवरण अपनी मित्र मण्डली को सुनाया था। उस अग्निकाण्ड में घायल तथा मरने वालों के नाम तक उनने सुनाये थे जो पीछे पता लगाने पर अक्षरशः सच निकले।

खोये हुए मनुष्यों एवं सामानों के संबंध में अतीन्द्रिय चेतना सम्पन्न मनुष्य जब सही अता-पता देने में सही सिद्ध होते हैं तो यही मानना पड़ता है प्रत्यक्ष साधनों एवं इन्द्रिय ज्ञान के सहारे जो कुछ जाना जाता है बात उतने तक ही सीमित नहीं है, मनुष्य की रहस्यमयी शक्तियों के आधार पर वैसा भी बहुत कुछ जाना जा सकता है जो सामान्यतया असम्भव ही कहा जा सकता है।

विज्ञानी डा0 मोरे बर्सटीन ने लेटी वेडर के बारे में एक दिन अपने एक मित्र से सुना। इसके पूर्व विमान-यात्रा में उनका बिस्तर व सामान खो गया था, जिसमें जरूरी कागजातों वाला बक्सा भी था। विमान कम्पनी ने खोए समाना के न मिलने की घोषणा कर दी थी तथा मुआवज़े का प्रस्ताव रखा था, जिसे वर्सटीन ने अस्वीकार कर खोज जारी रखने को कहा था।

अब मित्र से सुन वर्सटीन को अपने सामान की चिन्ता तो जाती रही। भीतर की जिज्ञासा-वृत्ति उमड़ उठी। वे चल पड़े लेडी लेडी वन्डर से मिलने। वहाँ सर्वप्रथम वर्सटीन ने पूछा-बताइये, पेरिस में मैंने जो बिल्ली पाल रखी थी उसका नाम क्या था ? लेडी वंडर ने उसे विस्मित करते हुए बताया-भर्तिनी। फिर वर्सटीन ने अपने सामान की बाबत पूछा। लेडी वन्डर ने बताया-तुम्हारा सामान न्यूयार्क हवाई अड्डे में है।

पहले तो वर्सडीन को अविश्वास हुआ। क्योंकि न्यूयार्क हवाई अड्डा छाना जा चुका था। पर फिर उसने हवाई अड्डे के अधिकारियों को फोन किया-”महोदय, मुझे विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि मेरा सामान न्यूयार्क हवाई अड्डे के भवन के ही भीतर है। कृपया दुबारा तलाश करें।” तलाशी शुरू हुई और सामान सचमुच मिल गया।

ड़ड़ड़ड़ की आत्मवेत्ता महिला फ्लोरेन्स किसी वस्तु को छूकर उससे संबंधित व्यक्ति के बारे में जो कुछ बताती थी, उसका प्रायः 80 प्रतिशत सच होता रहा। गुमशुदा की तलाश, हत्याओं की जाँच तथा अन्य खोजबीन के मामलों में पुलिस भी उसकी सहायता लेती रही।

अतीन्द्रिय क्षमता विकसित करने का एक क्रमबद्ध विज्ञान है-योग। आज तो हर क्षेत्र में नकली ही नकली की भरमार है। नकली योग भी इतना बढ़ गया है कि उस घटाटोप में से असली को ढूंढ़ निकलना कठिन पड़ रहा है। तो भी तथ्य अपने स्थान पर यथावत् अडिग है। यदि अन्तःचेतना पर चढ़े हुए कषाय-कल्मषों को प्रयत्नपूर्वक धो डाला जाए तो आत्मसत्ता की प्रखरता जग पड़ेगी और उसके साथ-साथ ही अतीन्द्रिय परोक्षानुभूतियों होने लगेंगी। अप्रत्यक्ष भी प्रत्यक्षवत् परिलक्षित होने लगेगा।

प्रयत्नपूर्वक आत्मबल को बढ़ाना और सिद्धियों के क्षेत्र में प्रवेश करना यह एक तर्क और वान सम्मत प्रक्रिया है किन्तु कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि कितने ही व्यक्तियों में इस प्रकार की विशेषताएँ अनायास ही प्रकट हो जाती है। उन्होंने कुछ भी साधन या प्रयत्न नहीं किया तो भी उनमें ऐसी क्षमताएँ उभरी जो अन्य व्यक्तियों में नहीं पाई जाती। असामान्य को ही चमत्कार कहते हैं। अस्तु ऐसे व्यक्तियों को चमत्कारी माना गया। होता यह है कि किन्हीं व्यक्तियों के पास पूर्व संबंधित ऐसे संस्कार होते हैं जो परिस्थितिवश अनायास ही उभर आते हैं। वर्षा के दिनों अनायास ही कितने पौधे उपज पड़ते हैं, वस्तुतः उनके बीज जमीन में पहले से ही दवे होते हैं। यही आत उन व्यक्तियों के बारे में कही जा सकती है जो बिना किसी प्रकार की अध्यात्म साधनाएँ किये ही अपनी अलौकिक क्षमताओं का परिचय देते हैं।

भविष्य दर्शन की विशेषता को अतीन्द्रिय क्षमता के अंतर्गत ही गिना जाता है। इस विशेषता के कारण संसार भर में जिन लोगों ने विशेष ख्याति प्राप्त की है उनमें एन्डरसन सेमवेंजोन, पीटर हरकौस, हेंसक्रेजर आदि के नाम पिछले दिनों पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठों पर छाये रहे हैं।

प्रथम विश्व युद्ध के दिन, पहली नवम्बर-आठ वर्षीय एन्डरसन घर की बैठक में खेल रहा था। सहसा वह रुका। माँ के पास पहुँचा और उसका हाथ पकड़ उसे बैठक में ले गया, जहाँ उसके भाई नेल्सन की फोटो लगी थी। नेल्सन कनाडा की सेना का कप्तान था और मोर्चे पर था। एन्डरसन ने भाई की फोटो की और संकेत करते हुये माँ से कहा-”माँ, देखो तो, भैया के चेहरे पर बन्दूक की गोली लग गई है और वे जमीन गिर कर मर गये है।”

“चुप मूर्ख! ऐसी अशुभ बात तेरे दिमाग में कहाँ से आई? अब कभी ऐसे कुछ न बोलना, न ऐसा सोचा करो।” माँ ने झिड़का। पर एन्डरसन तो अपनी बात पर जिद-सी करने लगा। इस घटना के दो-तीन दिन बाद जब तार आया कि-”1 नवम्बर 1918 को गोली लगने के कारण नेल्सन की मृत्यु हो गई है।” तो पूरा परिवार शोक में डूब गया। पर एन्डरसन की बातें याद कर वे सब विस्मय से भी भर उठे।

इसके बाद तो मुहल्ले-पड़ोस में उसने कई बार ऐसी भविष्य संबंधी बातें बताईं कि लोग उसे ‘सिद्ध भविष्यवक्ता’ मानने लगे। घर वालों ने उसका ध्यान बँटाने के लिए उसे शीघ्र ही एक खान की नौकरी में लगा दिया। पर थोड़े ही दिनों में एन्डरसन ने यह कहते हुए इस नौकरी को छोड़ दिया कि-”मैं उन्मुक्त आत्मा हूँ। योग के संस्कार मुझ में है। निरन्तर आत्म-परिष्कार ही मेरा लक्ष्य है। भौतिक परिस्थितियों से पैसे रुपयों के लोभ से मैं बँधा नहीं रह सकता?

इसके बाद एन्डरसन व्यापारी जहाजों द्वारा विश्व भ्रमण के लिए निकल पड़ा। इसी बीच उसने अपने शरीर का व्यायाम, योगाभ्यास, संयम और परिश्रम द्वारा विकास कर अतुलित बल अर्जित किया। लोहे की छड़ कन्धे पर रख उसने 15-20 व्यक्तियों तक को लटका कर चल फिर लेना, कार उठा लेना, शक्तिशाली गतिशील मोटर को हाथ से रोक देना, उन्मत्त और क्रुद्ध सांडों को पछाड़ देना आदि के करतब उसके लिए मामूली बात हो गई। उसने इनके सफल प्रदर्शन किये और ख्याति पाई।

लोग कहने लगे कि यह कोई पूर्व जन्म का योगी है। पूर्व जन्म में किये गये योगाभ्यास का प्रभाव और प्रकाश इसमें अब भी शेष है। 60 वर्ष से अधिक की आयु में भी एन्डरसन लोहे की नाल दानों हाथ से पकड़ कर सीधी कर देते हैं। शारीरिक शक्ति के साथ ही उन्होंने अतीन्द्रिय सामर्थ्य भी विकसित की और वे जीन डिक्सन कीरों तथा टेनीसन से भी अधिक सफल भविष्यवक्ता माने जाते हैं। एन्डरसन भारत आकर योग एवं ज्योतिष संबंधी ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। यद्यपि उनकी यह आकांक्षा परिस्थितियों वश पूर्ण नहीं हो सकी है।

इंग्लैण्ड में सैमवेंजोन नाम एक व्यक्ति हुआ है। उसे बाल्यावस्था से ही पूर्वाभास हुआ कि बाहर गये पिताजी एक ट्राम से घर आ रहे हैं और वह ट्राम दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से वे घायल हो गये है। माँ को वेंजोन ने यह बताया तो मिली झिड़की। पर जब कुछ समय बाद आहत पिताजी घर आये और उन्होंने बताया कि ट्राम दुर्घटना से ही वे आहत हुए हैं, तो दुखी माँ विस्मित भी हो उठी।

बाल्यावस्था में ही सैमवेन्जोन ने अनेक बार पूर्वाभ्यास की अपनी शक्ति का परिचय दिया। उसके घर में क्रिसमस पर प्रीतिभोज दिया गया। मित्रों, पड़ोसियों, परिजनों ने उपहार दिये। सबके जाने के बाद माँ ने सैमवेजोंन से उपहार का एक डिब्बा दिखाकर पूछा-”तू बड़ा भविष्यदर्शी बनता है, बता इस डिब्बे में क्या है?” डिब्बा जैसा आया था, वैसा ही बन्द था। सैम ने वे सारी वस्तुएं गिन-गिनकर बता दीं जो उस डिब्बे में बन्द थी।

बिना किसी ‘लेन्स’ या यन्त्र के डिब्बे के भीतर की वस्तु का यह ज्ञान उस तथ्य को द्योतक है कि विचारों और भावनाओं की दिव्य तथा सूक्ष्म शक्ति द्वारा बिना किसी माध्यम के गहन अन्तराल में छिपी वस्तुओं को भी देखा-जाना जा सकता है।

अपने एक परिचित पेंटर के बारे में एक दिन ऑफिस में बैठे वेन्जोन ने सहसा चलचित्रवत् दृश्य देखा कि वह एक दीवार की पेंटिंग करते समय सीढ़ियों से लुढ़क कर गिर पड़ा है। तीन दिन के भीतर ही यह दुर्घटना इसी रूप में हुई और मोहल्ले ने एक मकान की दीवार की रंगाई के समय सीढ़ी से फिसल कर गिरने से उक्त पेंटर की मृत्यु हो गईं । वेन्जोन का पूर्वाभ्यास सत्य सिद्ध हुआ।

प्रख्यात भविष्यवक्ता पीटर हरकौस की विलक्षण अतीन्द्रिय शक्ति विश्व प्रसिद्ध है। वह घटनास्थल की किसी भी वस्तु को छूता और उसे उस स्थान से संबंधित अतीत में घटी, वर्तमान में घट रही तथा भविष्य में घटित होने वाली घटनाएँ स्पष्ट दिखने लगती।

पेरिस में कई शीर्षस्थ अधिकारियों की उपस्थिति में हरकावैस का आह्वान किया गया कि वह अपनी अतीन्द्रिय सामर्थ्य का प्रदर्शन करें। पीटर हरकावैस को कंघा, कैंची, घड़ी, लाइटर और बटुआ देकर कहा गया कि आप इनके आधार पर एक मामले का पता लगाएँ। पीटर ने पाँचों को छुआ और ध्यानमग्न हो गया। उसने दो वस्तुओं की अनावश्यक कहकर लौटा दिया। फिर बटुए को हाथ में थाम खोया हुआ-सा बोलने लगा- ”एक गंजा आदमी है। वह सफेद कोट पहने है। एक पहाड़ी के पास छोटे से मकान में वह रहता है, जिसके बगल से रेलवे-लाइन गुजरती हैं। मकान से कुछ दूर एक गोदाम है। दोनों स्थानों के बीच एक शव पड़ा है। यह हत्या का मामला है। यह हत्या किसी निकोला नामक व्यक्ति द्वारा उसे जहर मिला दूध पिलाकर की गई है। लगता है यह सफेद कोट धारी गंजा ही निकोला है-जो इन दिनों जेल में है और वह शव एक महिला का है। निकोला भी मर गया है।

पीटर हरकौसा की सभी बातें तो सही थी। पर जेल में बन्द निकोला जीवित था। तभी अधिकारियों को समाचार दिया गया कि दो घण्टे पहले निकोला ने आत्महत्या कर ली है।

सन् 1950 में जब प्रसिद्ध संग्रहालय ‘वेस्टमिनिस्टर एवे’ से ‘स्कोन’ नामक हीरा चोरी गया, तो पूरे ब्रिटेन में तहलका मच गया। गुप्तचरों और पुलिस की दौड़ धूप व्यर्थ गई। चोरी का सुराग तक नहीं मिला। तब पीटर हरकौस की सहायता ली गई। हरकौस लन्दन पहुँचा। एवे के दरवाजे की एक लोहे की चादर का टुकड़ा अपने हाथ में लेकर पीटर बताने लगा-पाँच लड़कों ने ‘स्कोन’ को चुराया है और कार द्वारा ग्लासगो ले गए हैं। हीरा एक महीने में मिल जाएगा। चोरों के भागने का रास्ता भी हरकौस ने नक्शे में बता दिया। अन्त में एक माह में हीरा मिला और हरकौस की हर बात सत्य निकली।

एसटरडम में एक आर एक फौजी कप्तान का लड़का समुद्र में गिर गया। शव मिल नहीं रहा था। पीटर हरकौस ने अपनी अन्तःदृष्टि से शव को तलाशने का स्थान बताया। वह मिल गया।

वेल्जियम के जार्ज कानेर्लिस के हत्यारों का पता भी हरकौस ने ही लगाया था। अमेरिकी वैज्ञानिकों डा0 अन्डिया पूरिया के आमन्त्रण पर पीटर अमरीका गए। वहाँ उन पर कई प्रयोग किये गये। डा0 पूरिया की संरक्षिका के सहसा देहान्त से वे प्रयोग बीच में ही रोक दिन गया। पर जो हुए वे भी महत्त्वपूर्ण थे।

पीटर हारकौस ने स्वयं ही “साइक” नाम से अपना संस्मरण-संग्रह लिखा व प्रकाशित कराया है; जो उसकी अतीन्द्रिय-शक्तियों पर प्रकाश डालता है।

पूर्वाभ्यास की यह क्षमता कई व्यक्तियों में असाधारण तौर पर विकसित होती हैं द्वितीय महायुद्ध में ऐसे लोगों को दोनों पक्षों ने उपयोग किया था। हिटलर के परामर्श मण्डल में पाँच ऐसे ही दिव्यदर्शी भी थे। उनका नेतृत्व करते थे विलयम क्राफ्ट।

इसी मण्डली के एक सदस्य श्री डी0 व्होल ने तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मन्त्री लार्ड हेली फिक्स को सर्वप्रथम एक भोज में अनुरोध किए जाने पर हिटलर की योजनाओं का पूर्वाभ्यास दिया। वे सच निकलीं और श्री व्होल की फौज में कैप्टन का पद दिया गया। श्री डी0 व्होल हिटलर की अनेक योजनाओं की जानकारी अपनी दिव्य दृष्टि से दे देते। ब्रिटेन तदनुसार रणनीति बनाता। फौजी अफसरों की जिम्मेदारियाँ सौंपते समय भी उनके भविष्य बाबत श्री डी0 व्होल से सलाह ली जाती। उन्हीं के परामर्श पर माउन्ट गोमरी की फील्ड मार्शल बनाया गया। उनकी सफलताएँ सर्वविदित है। जापानी जहाजी बेड़े को नष्ट करने की योजना भी श्री व्होल की सलाह से बनी थी। महायुद्ध की समाप्ति बाद श्री व्होल ने ब्रिटिश शासक को परामर्श देने का कार्य छोड़ दिया था और धार्मिक लेखन का अपना पुराना काम करने लगे थे।

प्रत्यक्ष इन्द्रिय शक्ति हमारे सामान्य जीवन निर्वाह में अतीव उपयोगी भूमिका सम्पन्न करती है। वह न हो तो फिर हम जीवित माँस पिण्ड की तरह इधर-उधर लुढ़कते ही मौत के दिन पूरे करेंगे। मानवी प्रगति में उसकी परिष्कृत ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रिय शक्ति है। उस दिव्य-क्षमता को यदि हम उपलब्ध कर सकें तो उस आधार पर खुलने वाला सफलताओं का नया द्वारा हमें देवोपम स्तर तक पहुँचा सकने में समर्थ हो सकता है।


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