प्रकृति का नियम है कि संघर्ष से तेजी आती है। रगड़ और घर्षण यद्यपि देखने में कठोर कर्म प्रतीत होते हैं पर उन्हीं के द्वारा सौंदर्य का प्रकाश होता है। सोना तपाये जाने पर निखरता है। नानाविधि कष्टदायक संस्कारों पर संस्कृत होने से ही किसी वस्तु को महत्व प्राप्त हुआ है। धातु का एक रद्दी सा टुकड़ा जब अनेक विधि कष्टदायक परिस्थितियों के बीच में होकर गुजर जाता है तब उसे भगवान की मूर्ति होने का या ऐसा ही अन्य महत्वपूर्ण गौरवमय पद प्राप्त होता है।
जीवन वही निखरता है जो कष्ट और कठिनाइयों से टकराता रहता है। विपत्ति, बाधा और कठिनाइयों से जो लड़ सकता है, प्रतिकूल परिस्थितियों से युद्ध करने का जिसमें साहस है, उसे ही-सिर्फ उसे ही-जीवन विकास का सच्चा सुख मिलता है। इस पृथ्वी के पर्दे पर एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ, जिसने बिना कठिनाई उठाये, बिना जोखिम ओढ़े, कोई बड़ी सफलता प्राप्त कर ली हो।
कष्टमय जीवन के लिए अपने आपको खुशी-खुशी पेश करना-यही तप का मूल तत्व है। तपस्वी लोग ही अपनी तपस्या से इन्द्र का सिंहासन जीतने में और भगवान का आसन डुला देने में समर्थ होते हैं। मनोवाँछित परिस्थितियाँ प्राप्त करने का एक मात्र-केवल मात्र- ही साधन इस संसार में है। और वह है-तपस्या। स्मरण रखिए सिर्फ वे ही व्यक्ति इस संसार में महत्व प्राप्त करते हैं जो कठिनाइयों के बीच हँसना जानते हैं, जो तपस्या में आनन्द मानते हैं।