दैवी-सहायता

October 1945

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(कुँ. मनबोधन सिंह जी, सब इन्सपेक्टर पुलिस)

गत मास यहाँ पर श्रीनगर (हमीरपुर) में एक काछी जिसकी अवस्था करीब 60 साल है। किसी प्रकार अचानक कुएँ में गिर गया, रात का वक्त था कोई मनुष्य पास न था अन्दर ही अन्दर चिल्लाया। कुएँ के अन्दर गिरने के एक आध घंटे बाद कुछ लोग गाँव के आये और रस्सी डाल के उसे जिन्दा निकाल लिया।

दो दिन पश्चात मैंने उसे थाने बुलाकर सब हाल पूछा तो उसने कहा कि मुझको तैरना नहीं मालूम था इसलिये जब वहाँ कुएँ के अन्दर फड़फड़ाने लगा तो कुएं में ही उसे एक दूसरी आत्मा मनुष्य रूप में मिल गई। उसने उसे (काछी को) अपने कन्धे पर बैठा लिया और कहा कि घबड़ाना नहीं। उसी कुएँ में एक साँप था जो उसके ऊपर चढ़ गया किन्तु उस परम आत्मा ने उस साँप को हाथ से हटाकर दूसरी ओर कर दिया और कह दिया कि खबरदार इसको न काटना। साँप बेचारा दूसरी तरफ कुएँ में पड़ा रहा और फिर उसके ऊपर नहीं आया। थोड़ी देर में हल्ला-गुल्ला सुनकर गाँव वाले आ गये और रस्सी डाल के जिन्दा निकाल लिया और बचाने वाला अन्तर ध्यान हो गया। इस घटना से प्रकट होता है कि ईश्वरीय शक्तियाँ अनेक अवसरों पर मनुष्य की सहायता करती हैं। परमात्मा की कृपा होने से मनुष्य मृत्यु सरीखे संकटों को भी पार कर जाता है।

जाको राखे साँइयाँ, मार न सकता कोय। बाल न बाँका कर सके, जो जग बैरी होय॥


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