क्या आप जानते हैं कि किन उपदेशकों का, किन नेताओं का, किन वक्ताओं का, मान होता है? क्या बड़े सुन्दर भाषण करने वाले का? उनका मान तब तक ही होगा जब तक कि उनके दोषों के बारे में सब बातें लोगों को मालूम नहीं हैं। उनके दोष मालूम होते ही उनके वाक्य कोई नहीं सुनना चाहता। साथ ही यह भी देखा गया है कि जब कोई साधारण स्थिति का शीलवान व्यक्ति सभा में खड़ा होता है तो तुरन्त करतल ध्वनि होने लगती है। इसकी ओर लोग टकटकी लगाये रहते हैं। इससे भी मामूली बात लीजिए-व्यापार में सफलता किसे प्राप्त होती है? यहाँ भी दूसरे शक्ति की तरह बुद्धि का काम है ही, पर एक दूसरी शक्ति की नितान्त आवश्यकता रहती है। आप उसी दुकान पर सदा माल खरीदने जावेंगे, जहाँ पर सच्चाई, आदर और मृदुता दिखलाई पड़ेगी। बड़े-बड़े कार्यों में ही नहीं बल्कि मामूली बातों में भी शीलवान पुरुष की शक्ति बड़ी जान पड़ती है। शारीरिक बल भी शील के सामने फीका पड़ जाता है और बुद्धि स्तंभित होकर चुप रह जाती है। नीचे वृत्तियों पर उसका ऐसा दबाव पड़ जाता है कि वे अपना प्रभाव डाल ही नहीं सकतीं। मानव समाज में यह सिद्धान्त सदैव काम कर रहा है। शीलवान की आज्ञा तुरन्त पालन की जाती है क्योंकि उसके चेहरे में एक ऐसी शक्ति झलकती है कि जो आज्ञा पालन करा ही लेती है। जो उसके सामने आता है वह तुरन्त ही इसके प्रभाव के वशीभूत हो जाता है।
उसके विचार और कृत्य सबके सब नये रंग में रंगे जाते हैं। रामायण की इस बात में कुछ अर्थ अवश्य है कि भरत जी पर मेघ भी अपनी छाया करते थे।