जागृत जीवन

October 1945

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(ले.- ब्रह्मचारी श्री प्रभुदत्त शास्त्री बी.ए., रेवाड़ी)

मानव समाज में अनेकों व्यक्ति प्रगतिशील जीवन को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, किन्तु इनमें से बहुत थोड़े ही अपने अभीष्ट सिद्धि को पाते हैं। वास्तव में सिद्धि की प्राप्ति के दो मुख्य साधन हैं-(1) बुद्धि और (2) आशा संयुक्त उद्योग। जो व्यक्ति इन दो साधनों को तत्परता से ग्रहण करता है वही सिद्धि को पाता है। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने कर्त्तव्य के पालन में सतत् जागरुक रहना ही मानव की महानता का द्योतक है। संसार में निराशा अंधकार उत्साह हीनता आदि-आदि हीन प्रवृत्तियों का ही अधिक बोलबाला है। किन्तु जागृत-जीवन को भोगने वाले वीर पुरुष अपना एक नया ही संसार रखते हैं। वे आशामय उत्साहप्रद वायुमण्डल के विधाता होते हैं। जैसे सूर्य अपनी प्रखर किरणों से गहनतम अंधकार तथा भूमि पर की अपवित्रता को प्रकाश और पवित्रता में परिणत कर देते हैं इसी भाँति जागृत आत्माएं अकर्मण्यता और निराशा के वायुमण्डल को सक्रिय एवं आशामय बना देते हैं।

इस वीर भोग्या वसुन्धरा पर निश्चय ही वे प्राणी धन्य हैं जिनमें आत्म जागृति हो गई है। जो इस जागृति को प्राप्त कर लेता है वह चिर अमर जीवन का शाश्वत आनन्द भोगता है। अपने-अपने घर में वैयक्तिक जीवन तो सभी भोगते हैं, परन्तु जागृत आत्माएं न केवल स्वयं सुख उपभोग करती हैं अपितु अखिल विश्व को अपने आत्मीय भाव से ओत-प्रोत करके सर्वहित के संपादन में अपने को लीन-समर्पण कर देती हैं। एक जलता हुआ दीपक अनेकों दीपों को जलाता है और अपनी प्रकाश की विभूति का विस्तार करता है, इसी भाँति जागृत प्राणी अनेकों को जागृत करता है। वस्तुतः क्षण भर का जागृत जीवन वर्षों के सुप्त जीवन से उत्तम है।


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