गीत संजीवनी-6

क्रान्ति का अध्याय

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क्रान्ति का अध्याय
क्रान्ति का अध्याय लिखकर दे गये हैं आप जो-
हम कदम उससे कभी, पीछे हटायेंगे नहीं।
याद तो हरदम, सतायेगी गुरुजी! आपकी-
कायरों की भाँति हम, आँसू बहायेंगे नहीं॥
आप शंकर बन, ज़हर पीते रहे संसार का।
पर न व्रत छोड़ा, कभी भी आपने उपकार का॥
दर्द इतना भर लिया है- जिन्दगी में आपने।
ध्यान तक आया नहीं, क्षण भर कभी अधिकार का॥
किस तरह हम आपसे फिर कामना सुख की करें।
बढ़ गये जिस राह पग, पीछे हटायेंगे नहीं॥
इन्द्र- सा ऐश्वर्य पाकर, भी सदा वामन रहे।
आह तक निकली न मुख से, घात हैं कितने सहे॥
घूँट जीवन भर प्रभो, अपमान का तुमने पिया।
भूल पाते हैं न कितना, दर्द दनुजों ने दिया॥
जानते हैं देव हम, उनको बहुत नजदीक से।
किन्तु हम उनसे कभी, बदला चुकायेंगे नहीं॥
दाँव पर बाजी लगी है, जीत हो या हार हो।
प्रश्न यह उठता नहीं, अब कौन सा आधार हो॥
हम जहाँ भी हैं हमारी, हैसियत छोटी- बड़ी।
आपके चरणारविन्दों का वही उपहार हो॥
पाँव में छाले पड़ें, या आग पर चलना पड़े।
किन्तु किचिंत् भी कदम, यह डगमगायेंगे नहीं॥
आज दुनियाँ में भयानक, भेद है टकराव है।
जो हमारे हैं उन्हीं में, बैर है बिखराव है॥
उन सभी के ही लिए, गंगा बहा दी ज्ञान की।
जिन दिलों में द्वेष है, दुर्भाग्य है दुर्भाव है॥
हम सभी मिलकर रहेंगे, एक बनकर नेक बन।
आपने जो कुछ सिखाया, है भुलायेंगे नहीं॥
याद आती आपकी, पूजन प्रभो! कैसे करें।
लक्ष्य में आँखें लगीं जो, वे सलिल कैसे झरें॥
आप ओझल हो गये, तो क्या रहा संसार में।
अर्चना के थाल में, श्रद्धा सुमन कैसे धरें॥
आप जो दीपक जलाकर, रख गये हैं सामने।
लें प्रभो! विश्वास हम, उसको बुझायेंगे नहीं॥

मुक्तक-
हे! वेदमूर्ति हे! तपोनिष्ठ- हे युग- दृष्टा हे युग त्राता।
गूँजेगी सदियों तक तेरे- जीवन की प्रज्ञामय गाथा॥
श्रीराम तुम्हारे चरणों में- शत् वन्दन शत्- शत् वन्दन।
हो गया धन्य यह धरा धाम- पाकर पावन ये वरद चरण॥
भयंकर (ज़हरीले)सर्प भी बीन की स्वर लहरी सुनकर समर्पण कर देता है, ये नाद का प्रभाव ही है।

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