गीत संजीवनी-6

किये मंत्र जप माला फेरी

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किये मंत्र जप माला फेरी
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का।
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह जीवन किस काम का॥
हर पूनों हर पर्व नहाये, गंगाजी के नीर में।
पर मन डूब न पाया बिल्कुल, किसी दुःखी की पीर में।
करते रहे सफर हम निष्ठुर, मन से चारों धाम का॥
ईश्वर ने जो दिया, लगाया केवल अपने वास्ते।
स्वार्थ- पूर्ति हो जिनसे हमने, चुने वही सब रास्ते।
किया यत्न हर पल छिन हमने, अपने सुख आराम का॥
प्रगति देखकर औरों की, हम भरे द्वेष में लोभ में।
पूर्ण न हो पायी इच्छा तो, भरे तीव्र विक्षोभ में।
ध्यान रहा हर समय हमें तो, अपने ही धन धाम का॥
व्यर्थ ऐंठना अहंकार में, भरकर झूठी शान से।
किन्तु माँगते रहना, खुद के लिए सदा भगवान् से।
द्वार- द्वार दौड़ना व्यर्थ में, यहाँ सुबह और शाम का॥
मुक्तक-
ऐसा जीवन जिएँ हमारा जीवन ही पूजन बन जाए।
जन- हिताय जीवन जीना ही, जीवन का दर्शन बन जाए॥
अहं गलाकर स्वार्थ सिद्धि के सारे ताने- बाने छोड़ें।
जन सेवा ही लक्ष्य हमारा, जीवन का हर क्षण बन जाए॥
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