गीत संजीवनी-6

कर्मों के फल से न बचोगे

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कर्मों के फल से न बचोगे
कर्मों के फल से न बचोगे, चलना बहुत संभाल के।
अभी समय है अभी बदल लो, तेवर अपनी चाल के॥
कोठी कार तिजोरी भर लो, चोरी और मिलावट करलो।
खून खराबा लूट मचालो, जो जी चाहे सो सब करलो।
आयेगी किस काम हथकड़ी, यम ने रखी सम्भाल के॥
एक काम बस तन चमकाना, तरह- तरह के वेश बनाना।
वैसे तो तू बड़ा सयाना, पर न स्वयं को ही पहचाना।
रोएगा जब दर्शन होंगे, अपने ही कंकाल के॥
कभी एक क्षण दया न आयी, निर्बल को पीड़ा पहुँचायी।
पटरी लेकर नाप ऊँचाई, कितनी कर ली पाप कमाई।
तड़पेगा जब खौलायेगा, काल कढ़ाई डाल के॥
बुरे काम का बुरा नतीजा, एकादशी करे या तीजा,
शुभ कर्मों से जो मन भीजा,धन, वैभव, यश कभी न छीजा।
बोयेगा जो वह काटेगा, यही सुअक्षर भाल के॥
रहना नहीं बुद्धि के धोखे- ईश्वर के कानून अनोखे।
देख रहा सब बैठ झरोखे, तखरी तौल बाँटता चोखे।
देख दूर तक दृष्टि डालकर- ढूँढ न सुख तत्काल के॥
अभी नहीं कुछ भी बिगड़ा है, चौराहे पर आज खड़ा है।
अब भी जीवन शेष पड़ा है, अहंकार में क्यों जकड़ा है।
परमेश्वर की राह पकड़ ले, मन से कपट निकाल के॥
मुक्तक-
कैसा बुद्धिमान है मानव, ईश्वर को धोखा देता है।
सज्जनता का वेश बनाकर, दुष्ट आचरण कर लेता है॥
किन्तु कर्मफल की गहराई- मूरख समझ नहीं पाता है।
अपने हाथों खाई खोदकर, खुद ही उसमें गिर जाता है॥
चेतो अरे! समय के रहते, उज्ज्वल जीवन नीति बना लो।
कालदण्ड से बचकर भाई, सुख, यश, वैभव, सद्गति पालो॥

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