गीत संजीवनी-6

एक ही आधार

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एक ही आधार
एक ही आधार गुरुवर, एक ही विश्वास है।
आप हैं अन्तःकरण में ,, आप ही मधुमास हैं॥
दर्द होता जब हृदय में- आप देते सांत्वना।
आपका आशीष है- उज्ज्वल भविष्यत् कामना॥
आपके संकल्प में मुखरित समय की साँस है॥
शिष्य गण हैं आपके- गुरुवर तुम्हारे पूत हैं।
अंग अवयव हैं तुम्हारे- संस्कृति के दूत हैं॥
सोचकर हम धन्य हैं- गुरुवर हमारे पास हैं॥
धन्य है वह दीप पावन- आपकी वह साधना।
लोक- मंगल हित गला जो- धन्य है आराधना॥
तुम बसो मन प्राण में- गुरुवर तुम्हीं से आस है॥
क्या करें अर्पित तुम्हें- कैसे करें हम वन्दना।
नयन में है अश्रु धारा- बस यही अभिव्यंजना॥
पत्र- पुष्प सभी समर्पित- जो हमारे पास है॥
मुक्तकः-
तन मन जीवन करें समर्पित, श्रद्घा गहन जगा देना।
हे गुरुवर, इस भवसागर से, जल्दी पार लगा देना॥

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